गांधीधाम:गुजरात का गांधीधाम वर्तमान में धर्ममय बना हुआ है। चारों ओर आध्यात्मिक का आलोक प्रसारित हो रहा है। हो भी क्यों न जब जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, मानवता के मसीहा, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ गांधीधाम में पन्द्रहदिवसीय पावन प्रवास कर रहे हैं। आचार्यश्री की इस कृपा को प्राप्त कर गांधीधाम का जन-जन निहाल है। प्रतिदिन होने वाले मंगल प्रवचन में श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ रहा है। सभी आचार्यश्री की वाणी का रसपान कर स्वयं के जीवन को धन्य बना रहे हैं। रविवार को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में ‘जैन जयतु शासनम्’ का कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें जैन शासन के विभिन्न आम्नाय के श्रावक-श्राविकाओं की विशेष उपस्थिति थी।
गांधीधाम प्रवास के पांचवे दिन रविवार को ‘महावीर आध्यात्मिक समवसरण’ में आयोजित प्रातःकाल के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में श्रद्धालुओं की विशाल उपस्थिति थी। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व मुनि राजकुमारजी ने गीत का संगान किया।
समुपस्थित जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि जैन शासन में तीर्थंकर का संभवतः सर्वोपरि स्थान होता है। तीर्थंकरों की वाणी को सुनने का अवसर मिले तो बहुत अच्छी बात हो सकती है। श्रद्धा भाव से सुने तो वह कल्याणी वाणी कल्याण का निमित्त भी बन सकती है। तीर्थंकर हर जगह उपलब्ध नहीं होते। आदमी को आगमवाणी के माध्यम से आदमी अपनी चर्या को आगे बढ़ा सकता है। शास्त्र की एक-एक वाणी जीवन को नवीन दिशा प्रदान करने वाली हो सकती है। शास्त्रों की वाणी पर मनन करने से वैराग्य भाव की संपुष्टि हो सकती है, आत्मिक सुख मिल सकता है। शास्त्र में अनित्यता की बात भी आई है। यह मनुष्य जीवन अनित्य है। जैसे वृक्ष का पका हुआ पत्ता गिर जाता है, उसी प्रकार मनुष्य का जीवन भी एक दिन समाप्त हो जाता है, इसलिए प्रेरणा दी गई कि आदमी को समय मात्र भी प्रमाद नहीं करना चाहिए।
आदमी अनित्यता का चिंतन करता है, मोह-मूर्छा पर चोट हो सकती है और आदमी का संसार से ममत्व कम हो सकता है। गृहस्थ आदमी है तो उसके पास अपना मकान, धन, दुकान, प्रतिष्ठा आदि भी हो सकता है। इन सभी चीजों का आदमी के जीवन के साथ संयोग होता है। संसार में जिसका संयोग होता है, उसका वियोग भी होता है। आज जो प्राप्त है, वह कभी जा भी सकता है। मान लिया जाए किसी को बहुत पैसा प्राप्त होता है, लेकिन कभी वह पैसा कभी जा भी सकता है। पैसा इस जीवन भर भी साथ रहेगा, कहा नहीं जा सकता। लक्ष्मी को चंचल कहा गया है, प्राण, जीवन और जवानी भी चंचल है। पद-प्रतिष्ठा भी कभी प्राप्त है तो कभी नहीं भी हो सकता है। ये सभी संयोग से प्राप्त हैं तो उनका कभी वियोग भी हो सकता है।
इन सभी बातों से इतर कोई पद, प्रतिष्ठा, पैसा आदि रहे न रहे, लेकिन श्रावकत्व तो गृहस्थों के साथ तो रह ही सकता है। इसलिए आदमी को पद, प्रतिष्ठा, लोभ, मोह, मूर्छा का त्याग कर आध्यात्मिक साधना करने का प्रयास करना चाहिए। जैन समाज के लोगों में धर्म की प्रभावना रहे। लोगों के जीवन में नशामुक्तता रहे। जैन शासन में साधना करें और जैन शासन की उन्नति के प्रति भी जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। दूसरों की जितनी धार्मिक-आध्यात्मिक सेवा कर सकें, अच्छी साधना आदि करने का प्रयास होता रहे।
‘जैनं जयतु शासनम्’ कार्यक्रम के अंतर्गत बृहद् जैन समाज एवं मूर्तिपूजक जैन समाज-गांधीधाम के अध्यक्ष श्री चंपालाल पारेख, अखिल कच्छ दिगम्बर जैन समाज-गांधीधाम के अध्यक्ष श्री अश्विन जैन, स्थानकवासी छह कोटि जैन संघ-गांधीधाम के अध्यक्ष श्री प्रदीप मेहता, श्री अचलगच्छ जैन संघ के मंत्री श्री जीतूभाई छेड़ा, स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री अशोक सिंघवी, पूर्व अध्यक्ष श्री नरेन्द्रभाई संघवी, आठ कोटि मोटी पक्ष के अध्यक्ष श्री रोहितभाई शाह, डेवलपमेंट कमिश्नर श्री भानू जैन, ईस्ट कच्छ के पुलिस अधीक्षक श्री सागर वाघमार, जेडीए के पूर्व चेयरमेन श्री मधुकांत भाई शाह, इण्टरनेशनल महावीर जैन मिशन-यूके इंग्लैण्ड श्री अरविंद जैन ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी।
आचार्यश्री ने इस कार्यक्रम के संदर्भ में पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि अहिंसा, संयम, तप, समता, अनेकांत की बात है, ऐसे तत्त्व जैन शास्त्रों में मिलते हैं। जितना संभव हो सके, उसे अपने जीवन में उतारने का प्रयास होता रहे। दूसरों की सेवा करते हुए कल्याण की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।