डभाण:तीर्थंकर प्रभु महावीर के प्रतिनिधि जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी अहमदाबाद प्रवास के पश्चात अब आनंद, वडोदरा, भरूंच, अंकलेश्वर आदि क्षेत्रों की ओर जनकल्याण करते हुए अग्रसर है। आज आचार्य प्रवर का रतनपुर से प्रातः मंगल विहार हुआ। कल सायं खेड़ा से पूजरप्रवर विहार कर यहां पधारे थे। विहार के दौरान मार्गस्थ गांवों के निकट स्थानीय जन शांतिदूत के दर्शन कर नतमस्तक हो अभिवंदना कर रहे थे। जैसे जैसे सूर्य आकाश में बढ़ता जा रहा था उसका आतप भी वृद्धिंगत होने लगा। तेज धूप में लगभग 13 किलोमीटर विहार कर अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण डभाण स्थित श्री बंगलोज में प्रवास हेतु पधारे।
धर्मसभा में प्रवचन पाथेय प्रदान करते हुए गुरुदेव ने कहा – ज्ञान का कोई आर–पार व ओर–छोर नहीं है। हम देखें वर्णमाला के थोड़े से शब्दों के माध्यम व योग से कितने–कितने ग्रंथों का निर्माण किया जा सकता है। इस दृष्टि से शब्दों का भी बड़ा महत्व होता है। हमारा जीवन काल बड़ा सीमित है। ऐसे में हमें ज्ञान के सार को ग्रहण कर लेना चाहिए। सारभूत ज्ञान प्राप्त करने की दिशा में व्यक्ति वैसे आगे बढ़े, जैसे हंस अथाह पानी से मोतियों को ग्रहण कर लेता है।
गुरुदेव ने आगे कहा कि आचार्य स्वयंभव ने अपने संसारपक्षीय पुत्र के लिए चौदह पूर्वी शास्त्रों के निचोड़ रूप में एक नए आगम दशवेआलियं सूत्र की रचना की। वह आगम आज भी नव दीक्षित साधुओं के ज्ञान प्राप्ति का माध्यम बना हुआ हैं ज्ञान प्राप्ति के लिए जरूरी है हम नींद को, हास्य को व गपशप को बहुमान न दें। व्यक्ति एकाग्रचित्त बने और आलस्य, प्रमाद आदि से दूर रहें। जो व्यक्ति ज्ञान का सम्मान करता है उसे ही ज्ञान की प्राप्ति होती है। ज्ञान का अपमान व धमंड करने वाले को नहीं। व्यक्ति ज्ञानार्जन द्वारा सार को ग्रहण करे यह काम्य है।
इस अवसर पर नडियाद के श्री सुशील भटेवरा, सुश्री प्राची, शेफाली, रिया, स्थानकवासी समाज से श्री सज्जन दुगड़, श्री बंगलोज के श्री राजूभाई पटेल, श्री साजन चोपड़ा आदि ने शांतिदूत के स्वागत में विचारों की प्रस्तुति दी। तेरापंथ महिला मंडल की बहनों ने गीत का संगान किया।