सूरत:युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सान्निध्य से उधना वासी नित्य धर्माराधना से लाभान्वित हो रहे है। गुरुदेव चार दिवसीय प्रवास मानों उधना वासियों के लिए किसी चातुर्मास से कम नहीं रहा। सकल समाज का उत्साह, उमंग, आराध्य की दर्शन, सेवा हेतु तेरापंथ भवन में दिनभर लोगों का तांता लगा रहा। गुरुदेव के साथ साथ विशाल साधु साध्वी समुदाय कि आराधना का भी श्रावक श्राविकाओं ने पूरा लाभ उठाया। उधना के विधायक श्री नरेंद्र भाई पटेल भी गुरुदेव के दर्शनार्थ पहुंचे। कल गुरुदेव का उधना से सिटीलाइट तेरापंथ भवन के लिए प्रस्थान होगा जहां तीन दिवसीय प्रवास निर्धारित है।
आज के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में मुनि विजयराज जी की स्मृति सभा का समयोजन हुआ। ज्ञातव्य है कि आप लाडनूं जैन विश्व भारती में प्रवास करा रहे थे। गत 18 नवंबर को आपका देवलोकगमन हो गया था। वर्तमान में आज तेरापंथ धर्मसंघ में दीक्षा पर्याय में सबसे वरिष्ठ संतों में थे।
मंगल प्रवचन में गुरूदेव ने कथानक के माध्यम से प्रेरणा देते हुए फरमाया शास्त्रों में राजा के तीन लक्षण बताए गए है – सज्जनों की रक्षा करना, असज्जन व दुर्जनों पर अंकुश लगाना व आश्रितों का भरण-पोषण करना। किए हुए कर्मों को भोगे बिना छुटकारा नहीं मिलता। कर्मों का नियम सभी के लिए समान है। जीवन में बुरे कर्मों से बचने का प्रयास करना चाहिए और सदाचार युक्त जीवन जीना चाहिए। कर्मवाद जैन धर्म का प्रमुख सिद्धांत है। इसको सीधा समझे कि जैसी करनी वैसी भरनी। व्यक्ति जैसा बोएगा उसी प्रकार उसे फल भी प्राप्त होगा।
मुनि श्री विजयराज जी ने संदर्भ में गुरुदेव ने कहा कि उन्हें लगभग 77 वर्षों का दीक्षा पर्याय प्राप्त हुआ। मुनिश्री को देखा तो उनमें मुझे काफी विनम्रता लगी। मेरे से बड़े थे तो भी बहुत विनय का प्रयोग करते थे। मैं तो उनसे उम्र से भी छोटा और दीक्षा पर्याय में भी छोटा था। विद्यालय आदि में उन्होंने कई कार्य किए। उनकी विद्यालयों आदि में कार्यक्रम की विशेष रुचि रहती थी। गौर वर्ण था, विदेशी जैसे लगते थे। मुनि श्री निर्मल कुमार जी और इनकी जोड़ी थी। पिछले कई वर्षों से जैविभा में थे। वयोवृद्ध मुनिश्री थे। उनकी आत्मा उत्तरोत्तर श्रेणी आरोहण करे। मंगलकामना।
इस अवसर पर मुख्यमुनि श्री महावीर कुमार जी, साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी ने सारगर्भित उद्बोधन प्रदान किया। मुनि कोमल कुमार जी ने अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन मुनि श्री कुमारश्रमण जी ने किया।
गुरुदेव के प्रवचन से पूर्व उधना तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम का भी गठन हुआ।