डीसा:डीसा की धरती पर विराजमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी डीसावासियों पर अपनी आध्यात्मिक कृपा बरसा रहे हैं। जनता भी इस सुअवसर का लाभ उठाने को आतुर दिखाई दे रही है। शुक्रवार को डीसा प्रवास का अंतिम दिन था।
‘अक्षय समवसरण’ में उपस्थित डीसा की जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि व्यक्ति के जीवन में क्षमा का बहुत महत्व होता है। क्षमा एक धर्म है। जैन शासन में तो संवत्सरी महापर्व का समारोह का समायोजन होता है वह क्षमा का पर्व है। क्षमा अर्थात सहन करना। किसी ने कुछ बोल दिया तो भी सहन करना। क्षमा देना यानी माफ कर देना। माफ करना उदारता का हेतु है। किसी ने गलती कर दी, नुकसान कर दिया अब माफी मांग रहा है तो माफ कर दिया। यह क्षमा करना उदारता है। शक्तिशाली होने पर भी क्षमा रखना बड़ी बात होती है। ताकत नहीं है, प्रतिकार नहीं कर सकता वह क्षमा करे इतनी बड़ी बात नहीं किन्तु क्षमता होते हुए भी क्षमा कर देना महानता होती है। ईंट का जवाब पत्थर से नहीं क्षमा के फूलों से दे। टीट फोर टेट ये इंग्लिश का सूक्त है। पर यह सामान्य बात हो सकती है, उत्तम बात यह है कि मेरा बुरा किया तो भी में उसका बुरा नहीं करूं यह भाव रहने चाहिए। संसार की नीतियाँ अलग व अध्यात्म, शांति तथा क्षमा का मार्ग अलग होता है। शिकायत न करना साधु की साधुता है, क्षमा धर्म है। जिसके पास क्षमा का खड्ग है, दुर्जन भी उसका कुछ नहीँ बिगाड़ सकता।
गुरुदेव ने दृष्टांत के माध्यम से प्रेरणा देते हुए आगे कहा कि क्षमा के मैदान में घास-पूस नहीँ होता, अतः आग भी शांत रहती है। सामने वाला कुछ सुना रहा है, उस समय मैं हो जाओ, बोलने वाला कितना बोलेगा? बोलना आग में ईंधन डालने के समान है, वचन का प्रहार आदमी को कुपित कर सकता है। साधु तो क्षमा-शील होते ही हैं अपेक्षा है गृहस्थ भी क्षमा-शील रहें। ताकत होने पर भी उसका उपयोग न कर क्षमा प्रदान करना महानता होती है। व्यक्ति जीवन में क्षमा, शांति, न्याय, नीति की अनुपालना करें, यह काम्य है।
प्रवचन सभा में साध्वीवर्या संबुद्धयशा जी ने सारगर्भित वक्तव्य प्रदान किया। अभिव्यक्ति के क्रम में श्री रतनलाल मेहता, महाराणा प्रताप विद्यालय की ओर से हर्षद भाई एम. सेवक, श्रीमती संगीता बोरदिया ने अपने विचार रखे। ज्ञानशाला ने ज्ञानार्थियों ने चौबीसी की ढाल पर प्रस्तुति दी।