सरदारशहर, चूरु:मैं सब जीवों को क्षमा करता हूं, सभी जीव मुझे क्षमा करें। सभी प्राणियों के प्रति मेरी मैत्री भावना है, मेरा किसी से वैर-विरोध नहीं। इस भावना को मन में आदमी को प्रतिदिन कम से कम एक बार अवश्य दोहरा लेना चाहिए। इससे मन निर्मलता को प्राप्त हो सकता है। दस प्रकार के धर्मों में एक धर्म क्षमा को बताया गया है। शक्ति होने पर भी क्षमा की भावना रखना महत्त्वपूर्ण और अच्छी बात होती है। सभी के प्रति मैत्री की भावना हो, किसी से वैर, विरोध न हो तो सर्वत्र शांति और समृद्धि की कामना की जा सकती है। भौतिक जगत में कई जगह यह कहने, सुनने और देखने में आता है कि ईंट का जवाब पत्थर से देना है, दिया जाता है अथवा दिया गया है। आध्यात्मिक जगत में यह भावना सही नहीं मानी गई है, ईंट का जवाब तो अचित्त फूलों अर्थात् अपने कोमल और मधुर व्यवहार से देने का प्रयास होना चाहिए। कोई आपका अहित चाहने वाला, कष्ट पहुंचाने वाला हो तो भी उसके प्रति मैत्री और कल्याण की भावना रखने का प्रयास करना चाहिए। यदि कहीं विरोध हो तो उसे विनोद मानकर उनको क्षमा करने का प्रयास करना चाहिए। उक्त क्षमा, शांति और मैत्री के सूत्र जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, तेरापंथ धर्मसंघ के सरदार आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सोमवार को सरदारशहर में युगप्रधान समवसरण में उपस्थित सरदारशहरवासियों को प्रदान की।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि संत तो शांत ही होते हैं। संत तो क्षमा की मूर्ति होते हैं। संतों को अनुकूल अथवा प्रतिकूल दोनों ही परिस्थितियों में अपनी समता और शांति में रहने का प्रयास करना चाहिए। संत सेवा, क्षमा, करुणा औ दया को धारण करने वासले होते हैं। गृहस्थ भी अपने विचारों में उदारता लाए, क्षमा की भावना का विकास करे, सबके प्रति मैत्री का भाव रखे तो सर्वत्र शांति की स्थापना हो सकती है। क्षमा रूपी धर्म को जीवन व्यवहार में उतारने का प्रयास हो तो सबका कल्याण हो सकता है।
सरदारशहर की धरती पर लगभग 22 दिनों का लम्बा प्रवास कर रहे आचार्यश्री महाश्रमणजी की नियमित वाणी से न केवल सरदारशहरवासी लाभान्वित हो रहे हैं, अपितु देश-विदेश में प्रतिदिन आचार्यश्री की कल्याणवाणी का श्रवण करने वाले श्रद्धालु भी उत्प्रेरित हो रहे हैं। ऐसे स्वर्णिम सुअवसर का लाभ प्राप्त कर सरदारशहरवासी गदगद नजर आ रहे हैं। आचार्यश्री ने भी लोगों की पुरजोर प्रार्थना पर प्रतिदिन प्रातः नगर भ्रमण को निकल रहे हैं तो मानों उनके साथ पूरा सरदारशहर नगर भ्रमण को निकल जा रहा है। प्रातःकाल गुरु की सेवा, दर्शन और निकट उपासना का अवसर प्राप्त कर सरदारशहरवासी भावविभोर बने हुए हैं। इतना ही नहीं आचार्यश्री अनेकानेक श्रद्धालुओं को उनके घरों के निकट अथवा घरों, व्यावसायिक प्रतिष्ठनों अथवा नोहरों आदि के पास दर्शन देते, मंगलपाठ सुनाते अथवा यथावसर पावन पाथेय प्रदान कर रहे हैं। सरदारशहर में जन्मे और तेरापंथ के सरदार के रूप में जन-जन का कल्याण करने वाले महान संत आचार्यश्री महाश्रमणजी की ऐसी कृपा प्राप्त कर लोग कृतार्थ बन रहे हैं।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्याजी ने भी श्रद्धालुओं को अभिप्रेरित किया। वहीं आचार्यश्री के आगमन के बाद से ही लोगों की भावनाओं की अभिव्यक्ति निरंतर जारी है। कार्यक्रम के दौरान साध्वी वीरप्रभाजी ने अपने आराध्य के समक्ष अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति अर्पित की। सरदारशहर निवासी/प्रवासी उपासक श्रेणी के सदस्यों ने गीत का संगान किया। सुश्री नेहा दूगड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए स्वयं द्वारा आचार्यश्री की पेंटिंग प्रदर्शित किया। स्थानीय अणुव्रत समिति की उपाध्यक्ष श्रीमती सुमन भंसाली व श्रीमती मनीषा बैद ने अपनी अपनी अभिव्यक्ति दी। श्रीमती विनीता दफ्तरी व श्री भानुप्रकाश बरड़िया ने गीत का संगान किया।