डेस्क:कश्मीर के नाम को लेकर एक बार फिर से नई बहस छिड़ सकती है। इसकी वजह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का एक बयान है। अमित शाह ने गुरुवार को कहा कि यह संभव है कि कश्मीर का नाम हिंदू धर्म के पूजनीय ऋषि कश्यप के नाम पर रखा गया हो। उन्होंने यह बात दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में ‘जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख थ्रू द एजेस’ नामक पुस्तक के विमोचन के दौरान कही। शाह ने कहा, “हम सभी जानते हैं कि कश्मीर को कश्यप की भूमि कहा जाता है। यह संभव है कि कश्मीर का नाम ऋषि कश्यप के नाम पर पड़ा हो।”
अमित शाह ने कहा, “हर चर्चा में इतिहासकारों को कोसने का काम न करें। उनको जो करना था, वो कर दिया। हमें अब कौन रोक सकता है। देश स्वतंत्र हुआ है और देश में ऐसा शासन है जो देश के विचारों से चलता है। अब हमारा काम है कि हम इतिहास को प्रमाणों और तथ्यों के साथ संकलित करें।” अमित शाह ने किताब का उदाहरण देते हुए चरक, सुश्रुत जैसे तमाम विद्वानों और महापुरुषों का नाम लिया और बताया कि कैसे इन्होंने कश्मीर के इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
उन्होंने कहा, “हम सभी जानते हैं कि कश्मीर को (ऋषि) कश्यप की भूमि भी कहा जाता है। हो सकता है कि इनके नाम से ही कश्मीर का नाम पड़ा हो।” अमित शाह ने कश्मीर से बौद्ध धर्म का संबंध भी बताया। उन्होंने कहा कि सम्राट कनिष्क के समय में बौद्ध धर्म की चतुर्थ काउंसिल कश्मीर में ही संपन्न की गई थी जहां अनेक प्रकार के नवाचारों को स्थान दिया गया था। बौद्ध धर्म की चौथी संगीति, 72 ईस्वी में कश्मीर के कुंडलवन में आयोजित की गई थी।
शाह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर ने भारत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और केंद्र सरकार कश्मीर की सांस्कृतिक गरिमा को पुनर्स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने आगे कहा, “भारत दुनिया का एकमात्र देश है जहां सांस्कृतिक सीमाएं हैं, भौगोलिक नहीं।” उन्होंने शंकराचार्य, सिल्क रूट और हेमिश मठ का जिक्र करते हुए कहा कि यह दर्शाते हैं कि कश्मीर भारतीय संस्कृति से जुड़ा हुआ है। उन्होंने यह भी कहा कि लद्दाख में मंदिरों के विध्वंस और कश्मीर में संस्कृत के इस्तेमाल का उल्लेख भारतीय संस्कृति के साथ कश्मीर के “अटूट संबंध” को दर्शाता है।
उन्होंने कहा कि ‘सिल्क रूट’ से लेकर मध्य एशिया तक और शंकराचार्य मंदिर से लेकर हेमिस मठ तक; तथा व्यापार से लेकर अध्यात्म तक, दोनों की मजबूत नींव कश्मीर की संस्कृति में मौजूद है। शाह ने कहा कि अनुच्छेद-370 ने यह गलत धारणा दी कि कश्मीर का भारत के साथ एकीकरण अस्थायी है। उन्होंने कहा, ‘‘कई लोग मुझसे अक्सर पूछते हैं कि अनुच्छेद-370 और आतंकवाद के बीच क्या संबंध है। वे नहीं जानते कि अनुच्छेद-370 ने घाटी के युवाओं के मन में अलगाववाद के बीज बोए थे।’’
शाह ने कहा, ‘‘देश के कई अन्य हिस्सों में मुस्लिम आबादी है। वे क्षेत्र आतंकवाद से प्रभावित क्यों नहीं हैं?’’ गृहमंत्री ने कहा कि कुछ लोग कहते हैं कि कश्मीर पाकिस्तान की सीमा के करीब है, इसलिए यहां समस्या आई। उन्होंने सवाल किया, ‘‘लेकिन गुजरात भी पाकिस्तान की सीमा के करीब है। राजस्थान भी पाकिस्तान की सीमा के करीब है। वहां आतंकवाद क्यों नहीं पनपा?’’
शाह ने कहा कि अनुच्छेद-370 ने यह गलत धारणा दी कि कश्मीर का भारत के साथ एकीकरण अस्थायी है और इसने अलगाववाद के बीज बोये, जो बाद में आतंकवाद में बदल गए। गृहमंत्री ने कहा कि दुर्भाग्य से कश्मीर में आतंकवाद के कारण 40,000 से अधिक लोगों की जान चली गई। उन्होंने कहा, ‘‘मोदी सरकार ने कश्मीर में न केवल आतंकवाद को, बल्कि आतंकवाद के ढांचे को भी खत्म किया।’’
शाह ने कहा कि कश्मीर का विकास दशकों तक लटका रहा, वर्षों तक कश्मीर में खून-खराबा होता रहा और देश को चुपचाप यह सब देखना पड़ा। उन्होंने दावा किया, ‘‘अनुच्छेद-370 के खात्मे के बाद कश्मीर में आतंकवाद की घटनाओं में 70 प्रतिशत की कमी आई है और इससे साबित हो गया है कि अनुच्छेद-370 ने आतंकवाद को बढ़ावा दिया। 2018 में कश्मीर में पत्थरबाजी की 2,100 घटनाएं हुईं, लेकिन 2024 में पत्थरबाजी की एक भी घटना नहीं हुई।’’