नई दिल्ली:भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई ) अब पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाने जा रहा है। कागजी मुद्रा के निपटान को अधिक हरित और सतत बनाने के प्रयासों के तहत केंद्रीय बैंक कटे-फटे और अमान्य बैंक नोटों का उपयोग लकड़ी के विकल्प के रूप में पार्टिकल बोर्ड (wooden particle board) निर्माण में करेगा। इस उद्देश्य से आरबीआई ने ऐसे बोर्ड निर्माताओं को अपने पैनल में शामिल करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
आरबीआई की वर्ष 2024-25 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, देश में हर साल कटे-फटे नोटों या उनसे बने ब्रिकेट्स का कुल वजन लगभग 15,000 टन होता है। पारंपरिक रूप से ऐसे नोटों का निपटान भूमि भराव या ईंधन के रूप में जलाने के माध्यम से किया जाता है, जो पर्यावरणीय दृष्टिकोण से टिकाऊ नहीं माना जाता। इस चुनौती से निपटने के लिए आरबीआई अब वैकल्पिक, पर्यावरण-अनुकूल समाधानों की ओर अग्रसर है।
नोट छपाई पर 25% अधिक व्यय, 500 रुपये का बोलबाला
वार्षिक रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2024-25 में बैंक नोटों की छपाई पर खर्च 25% बढ़कर 6,372.8 करोड़ रुपये पहुंच गया, जो कि 2023-24 में 5,101.4 करोड़ रुपये था। इस अवधि में प्रचलन में मौजूद नोटों की संख्या में 5.6% और मूल्य में 6% की वृद्धि दर्ज की गई।
वर्तमान में ₹500 मूल्यवर्ग के नोटों की हिस्सेदारी कुल मुद्रा के मूल्य के हिसाब से 86% है, जो पिछले वर्ष की तुलना में मामूली रूप से घटी है, लेकिन इसका प्रभुत्व अब भी बरकरार है।
युवा पीढ़ी में डिजिटल भुगतान का वर्चस्व: 99.5% करते हैं यूपीआई का उपयोग
सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी “व्यापक मॉड्यूलर सर्वेक्षण: दूरसंचार-2025” के मुताबिक, 15-29 वर्ष आयु वर्ग के लगभग 99.5% युवा मोबाइल हैंडसेट के माध्यम से यूपीआई के जरिये डिजिटल लेनदेन करने में सक्षम हैं।
सर्वेक्षण के अनुसार:
- 97.1% युवाओं ने पिछले तीन महीनों में मोबाइल फोन का इस्तेमाल किया।
- ग्रामीण क्षेत्रों में 96.8% और शहरी क्षेत्रों में 97.6% युवाओं ने मोबाइल से कॉल या इंटरनेट का उपयोग किया।
- स्मार्टफोन उपयोग के मामले में ग्रामीण युवाओं की हिस्सेदारी 95.5% जबकि शहरी क्षेत्रों में 97.6% रही।
ई-रुपये का चलन बढ़ा, सीमापार भुगतान की तैयारी
रिजर्व बैंक ने यह भी बताया कि डिजिटल मुद्रा यानी ई-रुपया (CBDC) का प्रसार तेज़ी से हो रहा है। मार्च 2025 के अंत तक प्रचलन में ई-रुपये का कुल मूल्य 1,016 करोड़ रुपये पहुंच गया, जबकि यह मार्च 2024 में केवल 234 करोड़ रुपये था।
सीबीडीसी को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयोग की दिशा में भी कदम उठाए जा रहे हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि सीमापार भुगतान के लिए ई-रुपये का पायलट प्रोजेक्ट लाने की संभावना पर विचार चल रहा है, हालांकि इस पर कोई निश्चित समयसीमा नहीं दी गई है।
निष्कर्ष:
भारतीय रिजर्व बैंक की यह रिपोर्ट न केवल पर्यावरण हितैषी मुद्रा प्रबंधन की ओर संकेत करती है, बल्कि देश की डिजिटल प्रगति और युवाओं में डिजिटल भुगतान की पैठ को भी दर्शाती है। यह स्पष्ट है कि भारत तेज़ी से नकदी आधारित अर्थव्यवस्था से डिजिटल और हरित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है।