कुंभ मेले का आयोजन भारत की सनातन परंपराओं और धार्मिक आस्थाओं का प्रतीक है। यह पर्व हर 12 वर्ष में प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित किया जाता है। इनमें प्रयागराज के संगम में स्नान का विशेष महत्व है।
संगम का महत्व
संगम का अर्थ है तीन नदियों का मिलन। प्रयागराज में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम होता है। मान्यता है कि इन तीन पवित्र नदियों के जल में स्नान करने से व्यक्ति अपने पापों से मुक्त हो जाता है और मोक्ष प्राप्त करता है।
पौराणिक कथा
कुंभ मेले की उत्पत्ति समुद्र मंथन की घटना से जुड़ी हुई है। समुद्र मंथन के दौरान जब देवताओं और असुरों ने अमृत कलश (कुंभ) प्राप्त किया, तो अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर चार स्थानों पर गिरीं – हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक। इन स्थानों को पवित्र मानते हुए कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।
कहानी के अनुसार, गरुड़ ने अमृत कलश को सुरक्षित रखने के लिए आकाश में उड़ान भरी और जहां-जहां उन्होंने कलश को रखा, वहां अमृत की बूंदें गिरीं। इन्हीं स्थानों पर संगम का विशेष महत्व है।
संगम स्नान का आध्यात्मिक प्रभाव
- पापों का नाश: यह विश्वास है कि संगम में स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
- आध्यात्मिक शुद्धि: संगम स्नान से मन और आत्मा की शुद्धि होती है।
- मोक्ष की प्राप्ति: कुंभ में संगम स्नान को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना गया है।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण: गंगा और यमुना के जल में पाए जाने वाले खनिज और जड़ी-बूटियों से स्वास्थ्य लाभ भी होता है।
धार्मिक अनुष्ठान और मान्यताएं
कुंभ मेले के दौरान स्नान के अलावा भक्त पूजा, ध्यान, दान और कथा श्रवण जैसे धार्मिक कार्य भी करते हैं। संत और साधु-महात्मा इस अवसर पर विशेष प्रवचन देते हैं।
संगम का आधुनिक संदर्भ
आज भी करोड़ों श्रद्धालु कुंभ में संगम स्नान करने आते हैं। यह आयोजन भारतीय संस्कृति और सनातन परंपराओं के प्रति लोगों की गहरी आस्था का परिचायक है।
निष्कर्ष:
संगम स्नान कुंभ मेले की आत्मा है। यह न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि भारतीय संस्कृति की एकता और पवित्रता का भी प्रतीक है। पौराणिक कथाओं और आध्यात्मिक मान्यताओं के साथ संगम स्नान व्यक्ति को आत्मिक शांति और मोक्ष की ओर प्रेरित करता है।