जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में मंगलवार दोपहर जो हुआ, वह सिर्फ एक आतंकी हमला नहीं था। यह एक सुनियोजित नरसंहार था—जिसमें इस्लामिक आतंकवादियों ने सिर्फ हिंदू होने की वजह से निर्दोष भारतीयों को गोली मार दी। यह हमला इंसानियत के चेहरे पर वह ज़ख्म है, जो अब सिर्फ घाव नहीं—एक खुला संदेश बन चुका है।
“क्या तुम हिंदू हो?”
कर्नाटक से आए मंजूनाथ राव, अपनी पत्नी और बेटे के साथ कश्मीर की वादियों का आनंद लेने आए थे। लेकिन वे नहीं जानते थे कि उनकी धार्मिक पहचान ही उनकी मौत की वजह बन जाएगी। आतंकियों ने न जाति पूछी, न भाषा—सिर्फ एक सवाल पूछा:
“क्या तुम हिंदू हो?”
जब जवाब ‘हाँ’ में मिला, तो अगले ही पल गोलियों की बौछार शुरू हो गई।
एक इतिहास जो खुद को दोहरा रहा है
यह घटना कोई पहली नहीं है। 1990 के दशक में कश्मीरी पंडितों का पलायन, 2019 में पुलवामा हमला, और अब का पहलगाम नरसंहार—हर बार एक ही पैटर्न सामने आया है:
मजहब के नाम पर हिंदुओं को निशाना बनाना।
इस्लामिक कट्टरता से प्रेरित आतंकवादी संगठन भारत के बहुलतावादी चरित्र और हिंदू जीवनशैली को तहस-नहस करना चाहते हैं। उनका मकसद साफ है, इसे हमें समझना है।
अब ‘भाईचारे’ की बांसुरी फेंकने का समय आ गया है
हर बार जब ऐसी घटनाएँ होती हैं, तो कुछ लोग ‘सांप्रदायिक सौहार्द’ की दुहाई देते हैं। लेकिन जब सिर्फ हिंदू होने की वजह से किसी की हत्या हो, तो क्या चुप रहना ही सही विकल्प है?
आज अगर कोई इस नरसंहार की निंदा नहीं करता, तो वह भी उस साज़िश का हिस्सा है जो निर्दोषों के खून में लिपटी है।
यह हमला नहीं, एक संदेश था
यह संदेश उन सभी हिंदुओं के लिए था जो देश में शांति से रहना चाहते हैं। यह बताने की कोशिश थी कि अब उनकी पहचान ही उनकी मौत का कारण बन सकती है। लेकिन हमें समझना होगा—यह सिर्फ एक जाति, भाषा, राज्य पर हमला नहीं, बल्कि सनातनी की आत्मा पर हमला है।
अब निर्णायक कार्यवाही ज़रूरी है
सरकार की निंदा और बयानबाज़ी अब काफी नहीं है। अब वक्त है निर्णायक एक्शन का।
हर उस आतंकी को खत्म किया जाए जो मजहब के नाम पर भारत की धरती को लहूलुहान कर रहा है। सुरक्षा एजेंसियों को धार्मिक कट्टरपंथ के खिलाफ स्पष्ट रणनीति के साथ उतरना होगा।
यह सिर्फ कश्मीर की बात नहीं—यह पूरे भारत का सवाल है
अगर आज हमने एकजुट होकर आवाज़ नहीं उठाई, तो कल यह आग हर गली, हर शहर, हर घर तक पहुँच सकती है—और पहुँच भी रही है।
मृतकों को श्रद्धांजलि। ओम शांति।
अब और खून नहीं। अब निर्णायक बदला।
Very True