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Home ओपिनियन

लोकसभा परिसीमन: दक्षिणी राज्यों की चिंता और स्टालिन की रणनीति

ON THE DOT TEAM by ON THE DOT TEAM
March 6, 2025
in ओपिनियन, राजनीतिक
Reading Time: 1 min read
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तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने

File Photo

लोकसभा सीटों के परिसीमन का मुद्दा दक्षिणी राज्यों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बनता जा रहा है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके अध्यक्ष एम. के. स्टालिन ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार पर दबाव बढ़ाते हुए बुधवार को एक सर्वदलीय बैठक आयोजित की। इस बैठक में उन्होंने प्रस्ताव रखा कि 2026 से अगले 30 वर्षों के लिए 1971 की जनगणना के आधार पर संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया जाना चाहिए। साथ ही, उन्होंने सभी दक्षिणी राज्यों को एकजुट करने के लिए एक संयुक्त कार्रवाई समिति (JAC) के गठन का सुझाव दिया।

दक्षिणी राज्यों की चिंता

तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिणी राज्यों को इस बात की चिंता है कि अगर हाल की जनगणना के आधार पर परिसीमन किया गया तो उनकी लोकसभा सीटें कम हो सकती हैं। वहीं, उत्तर भारत के हिंदी भाषी राज्यों में संसदीय सीटों की संख्या बढ़ने की संभावना है। यह अंतर इसलिए पैदा हुआ है क्योंकि दक्षिणी राज्यों ने जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण पा लिया है, जबकि उत्तर भारतीय राज्यों में जनसंख्या वृद्धि दर अपेक्षाकृत अधिक रही है। इससे दक्षिणी राज्यों का संसदीय प्रतिनिधित्व घटने और उन्हें मिलने वाली आर्थिक सहायता में कमी आने की आशंका है।

सर्वदलीय बैठक और भाजपा का बहिष्कार

चेन्नई में हुई इस बैठक में डीएमके के अलावा एआईएडीएमके, कांग्रेस, वामपंथी दल और अभिनेता से नेता बने विजय की पार्टी तमिलगा वेट्री कषगम (TVK) ने भाग लिया। हालांकि, भाजपा, नाम तमिलर काची (NTK) और तमिल मनीला कांग्रेस (मूपनार) ने इस बैठक का बहिष्कार किया।

स्टालिन का प्रस्ताव और संघीय ढांचे पर प्रभाव

स्टालिन ने परिसीमन के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से संसद में आश्वासन देने की मांग की। उन्होंने कहा कि परिसीमन की प्रक्रिया संघीय ढांचे और दक्षिणी राज्यों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिए खतरा हो सकती है। स्टालिन ने यह भी स्पष्ट किया कि तमिलनाडु परिसीमन के खिलाफ नहीं है, लेकिन संसद में राज्य का वर्तमान प्रतिनिधित्व 7.18% है, जिसे किसी भी परिस्थिति में नहीं बदला जाना चाहिए।

क्या कहता है इतिहास?

देश में अब तक 1952, 1962, 1972 और 2002 में परिसीमन हो चुका है। लोकसभा में वर्तमान 543 सीटें 1971 की जनगणना पर आधारित हैं। 42वें संविधान संशोधन के तहत 2001 तक परिसीमन को रोक दिया गया था, जिसे बाद में 2026 तक बढ़ा दिया गया। अब परिसीमन की प्रक्रिया शुरू करने के लिए 2026 के बाद की जनगणना के आंकड़ों का उपयोग अनिवार्य होगा।

क्या होगा परिसीमन का असर?

रिपोर्ट्स के अनुसार, अगर परिसीमन 2021 या 2031 की जनसंख्या के आधार पर हुआ तो तमिलनाडु की लोकसभा सीटें 39 से घटकर 31, कर्नाटक की 28 से 26, आंध्र प्रदेश की 42 से 34 और केरल की 21 से 12 हो सकती हैं। वहीं, उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान जैसे राज्यों में लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ सकती है। कुछ विशेषज्ञों का अनुमान है कि परिसीमन के बाद दक्षिण भारत की संसदीय भागीदारी 19% तक गिर सकती है, जबकि उत्तर भारत की हिस्सेदारी बढ़कर 60% हो सकती है।

विशेषज्ञों का सुझाव

राजनीतिक वैज्ञानिक मिलन वैष्णव के विश्लेषण के अनुसार, आनुपातिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए लोकसभा सीटों की संख्या को 543 से बढ़ाकर 848 करना होगा। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि केवल 1971 की जनगणना को आधार बनाना समस्या का समाधान नहीं है, क्योंकि जनसंख्या निरंतर बढ़ रही है। इसके बजाय, सभी राज्यों के लिए अलग-अलग आधार तय करने की जरूरत है।

 

दक्षिणी राज्यों को आशंका है कि परिसीमन से उनके राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों पर असर पड़ेगा, इसलिए वे 1971 की जनगणना को आधार बनाने की मांग कर रहे हैं। दूसरी ओर, केंद्र सरकार का कहना है कि परिसीमन से दक्षिणी राज्यों की सीटों में कटौती नहीं होगी। यह मुद्दा आने वाले समय में और तूल पकड़ सकता है, क्योंकि इसका असर भारत के राजनीतिक संतुलन पर गहरा पड़ सकता है।

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