भगवान महावीर के संदेशों द्वारा नवीन कार्यक्रम को रोचक व आकर्षक ढंग से प्रस्तुति देकर महावीर के संदेश की प्रासंगिता को उजागर किया जा सकता है। हिंसा की समस्या का समाधान भगवान महावीर की अहिंसा से ही संभव है। माननीय आलम अली ने मुस्लिम समाज का प्रतिनिधीत्व करते हुए कहा
कि जैन समाज बहुत बढ़ा विशाल समाज है । वे गणाधिपति पूज्य गुरुदेव श्रीतुलसी व आचार्य श्री महाप्रज्ञजी के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित हैं । आलम
अली ने महावीर की जीवनी व उनके आदर्शो की अच्छी प्रस्तुति दी है।
क्या है भगवान महावीर का अर्थशास्त्र :
आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने एक सुंदर व उपयोगी पुस्तक लिखी – भगवान महावीर स्वामी का अर्थशास्त्र का सवाल यह है कि महावीर वीतराग थे। आध्यात्म शास्त्र के प्रवक्ता थे | फिर उन्होंने अर्थशास्त्री की चर्चा क्यों की ? उत्तर मिलता है कि भगवान करूणावान थे। साधु-साध्वी, श्रावक – श्राविका इन चार तीथों की स्थापना कर वे… तीर्थक बने थे । सर्वज्ञ थे व अपने द्वारा निर्मित चारों तीथों का उद्धार करना चाहते थे । तिन्नाण तरयाण भव सागर से तरना एवं तराना उनके जीवन का सूत्र था । सर्व विदित है कि साधु-साध्वी सर्वव्यापी है, सर्वत्यागी है । प्रतीत होता है कि श्रावक श्रावीका इन तीथों के लिए भगवान महावीर ने 12 अणुव्रत का पाथेव दिया । .’ उन बारह व्रतों में एक व्रत है – इच्छा परिणाम और अपरिग्रह पर्यायवाची शब्द है । श्रावक सम्बोध में आचार्य तुलसी ने लिखा है।
इच्छा परिणाम अणुवत अपिरिग्रह का ।।
हो जाता है शमन आर्थिक विग्रह का।।
आवश्यकता आकांक्षा दोनों एक नहीं है । आकांक्षा पर तो अंकुश यही सही है ॥ अर्थ जीवन की आवश्यकता है । निःसंदेह जीवन-निर्वाह के लिए धन की उपयोगिता है, आवश्यकता है । समस्या तब पैदा होती है, जब मानव अर्थ (धन) को ही सबकुछ मान लेता है । कई लोगों के लिए तो पैसा ही भगवान है। कहा भी है – रे पैसा तु भगवान तो वहीं है , पर भगवान की कसम भगवान से कम नहीं है। मानव जीवन प्रदार्थ के प्रयोग से चलता है और प्रदार्थ की प्राप्ति अर्थ से होती है । व्यवहार जगत में अर्थ और प्रदार्थ दोनों की अनिवार्यता है । अनादिकाल से जीवन अर्थ एवं पदार्थ के साथ रचा पचा है । अतः संभव नहीं है पर मानव का अर्थ का दुरूपयोग न करें । इस वैकल्पिक सूत्र में लिखा है – सभी जीव जीना चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता।’
सच्चे जीवा इच्छंति जिविंत न नरीज्झीऊं
धन के प्रति लोगों का इतना अधिक आकर्षण है कि इस अर्थ के कारण न जाने कितने अनर्थ हो जाते हैं। इस धन के कारण परिवार बिखर जाता है । धन
मौत का प्रबल हेतु है । सच है जहां अर्थ की आवश्यकता से अधिक संग्रह किया जाता हैं, वहां मानव की लोभ प्रवृत्ति प्रबल होती है और यह लोभ कभी-कभी जानलेवा बन जाता है । जैसे एक भाई धनवान है दुसरा गरीब तो कभी कभी भाई की संपत्ति हड़पने के लिए वह भाई अपने सगे भाई को जान से मरवा देता है ।
अर्थशास्त्र की प्रासंगकिता: आधुनिक युग में चारों तरफ हिंसा, आतंक, भ्रष्टाचार, अन्याय,लूटखसोट, चोरी आदि कारण आकांक्षा अनंत इच्छाए व संग्रहवृत्ति है । समस्या के मूल कारण को नष्ट करने के लिए भगवान महावीर के अर्थशास्त्र की उपयोगिता और प्रासंगकिता स्वतः सिद्ध हो रही है। महावीर स्वामी ने कहा बिना अर्थ गृहस्थ जीवन निर्वाह संभवन नही है । इसलिए वर्तमान में वे आध्यात्मिक अर्थशास्त्र का अनुसरण करें, जिसमें मानवीय गुणों का पूर्णरुप से निखार हो सके । आध्यात्मिक अर्थशास्त्र का फलित है । सुख-शांति की प्राप्ति जहां इच्छाओं पर नियंत्रण है और आवश्यकता अनुसार उपयोग किया जा सकता है, वहां जीवन का आनंद व शांति का प्रवाह बहने लगता है । भगवान महावीर का अर्थशास्त्र शांति का शास्त्र है, लोग विजयों का शास्त्र है।