यह समय नवरात्रि के पावन पर्व का है, जब मां के नौ स्वरूपों की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है। 4 अप्रैल को नवरात्रि का सातवां दिन है, जिसे मां कालरात्रि की उपासना के लिए समर्पित किया जाता है।
मां कालरात्रि का दिव्य स्वरूप
मां कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत भयानक प्रतीत होता है, किंतु वे अपने भक्तों को सभी कष्टों से मुक्त कर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। उनका शरीर अंधकार की तरह काला है, बिखरे हुए लंबे बाल और बिजली के समान चमकने वाली माला उनके गले की शोभा बढ़ाते हैं। उनके चार हाथों में खड्ग, लौह शस्त्र, वरमुद्रा और अभय मुद्रा सुशोभित हैं।
भय से मुक्ति का प्रतीक
मां कालरात्रि की उपासना से समस्त भय नष्ट हो जाते हैं और नकारात्मक शक्तियों का विनाश होता है। भक्तों को किसी भी प्रकार की चिंता करने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि माता शुभ फल प्रदान करने वाली हैं। इसी कारण उन्हें ‘शुभंकारी’ भी कहा जाता है।
अज्ञानता का नाश करने वाली देवी
मां कालरात्रि को अज्ञानता को नष्ट करने और ब्रह्मांड से अंधकार दूर करने के लिए जाना जाता है। उन्होंने दैत्यों का संहार करने हेतु अपने शरीर का रंग परिवर्तित किया था। उनकी आराधना के लिए मध्य रात्रि का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। मां का प्रिय रंग नारंगी है, जो तेज, ज्ञान और शांति का प्रतीक है।
मां की उपासना का महत्व
मां कालरात्रि की साधना के लिए मन, वचन और काया की पवित्रता आवश्यक मानी जाती है। माता की कृपा से साधक को अग्नि, जल, जीव-जंतु और शत्रु का भय नहीं सताता। उनकी आराधना से आत्मबल और तेज बढ़ता है। भक्तों को मां को रोली-कुमकुम लगाकर, मिष्ठान, पंचमेवा और फल अर्पित करना चाहिए। साथ ही, सिद्धकुंजिका स्तोत्र और अर्गला स्तोत्र का पाठ करना भी शुभ होता है। मां को गुड़ और हलवे का भोग लगाने से विशेष कृपा प्राप्त होती है।
नवरात्रि के इस शुभ अवसर पर मां कालरात्रि की आराधना से समस्त कष्टों का निवारण करें और उनके आशीर्वाद से सुख-समृद्धि प्राप्त करें।