जब पूरा देश ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता पर गर्व कर रहा था, जब एक बहादुर महिला सैन्य अधिकारी—कर्नल सोफिया कुरैशी—ने पाकिस्तान को घुटनों पर लाकर भारत की शक्ति का परचम लहराया था, तब एक मंत्री—हां, मंत्री—ने उनकी वर्दी की नहीं, उनकी पहचान की बात की। उनकी बहादुरी नहीं, उनका धर्म देखा।
क्या यह देश अब इतनी गिरावट पर आ गया है कि शौर्य से ज़्यादा अहम नाम और मज़हब हो गया है?
विजय शाह, मध्य प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री, ने कर्नल सोफिया पर जो टिप्पणी की, वह न सिर्फ़ अमर्यादित और सांप्रदायिक थी, बल्कि हर उस महिला के मुंह पर तमाचा थी, जो इस देश की किसी भी वर्दी में अपना खून-पसीना बहा रही है।
पूछिए—क्या यह वही भारत है जो ‘नारी शक्ति’ का जयघोष करता था?
हाई कोर्ट को खुद संज्ञान लेना पड़ा। पर भाजपा नेतृत्व अब भी खामोश है। क्यों?
क्या एक महिला अधिकारी की गरिमा का अपमान इस पार्टी के लिए कोई मुद्दा नहीं है? क्या कर्नल सोफिया की बहादुरी सिर्फ इसलिए कमतर हो गई क्योंकि उनका नाम ‘सोफिया’ है?
कौन तय करेगा इस देश में ‘देशभक्ति’ का नामांकन फॉर्म? और किस धर्म से पास होना ज़रूरी है?
कर्नल सोफिया उस जगह पहुँची हैं जहाँ मंत्री विजय शाह जैसे लोग सपना भी नहीं देख सकते। अफ़सोस, सत्ता का गुरूर और नफरत की राजनीति इतनी अंधी हो गई है कि अब वर्दी पहनने वालों की पहचान भी छानी जाती है।
सोचिए—जो मंत्री एक कर्नल के लिए ऐसी भाषा बोल सकता है, वह एक आम महिला के लिए क्या सोचता होगा?
क्या इस देश की बेटियाँ अब सेना में जाने से पहले यह सोचें कि वे किस धर्म, जाति या नाम से पैदा हुई हैं?
और यह वही मंत्री हैं जो अब सुप्रीम कोर्ट में एफआईआर रद्द कराने की गुहार लगाते फिर रहे हैं। मगर देश की अदालत ने उन्हें याद दिलाया—”पद का मतलब है ज़िम्मेदारी, न कि ज़हर उगलने का लाइसेंस।”
तो फिर भाजपा नेतृत्व चुप क्यों है? क्या इसलिए कि विजय शाह ‘अपने’ हैं? क्या पार्टी अब अपने नेताओं की गंदी जुबान पर पर्दा डालने को ही राजनीति समझती है?क्या यही है ‘सबका साथ, सबका विकास’?
क्या अब टिकट उन्हीं को मिलेगा जो सबसे ऊंची आवाज़ में गालियाँ दे सकता है?
क्या स्त्री सम्मान अब सिर्फ चुनावी भाषण का हिस्सा बनकर रह गया है?
कल तक जो पार्टी विरोधियों की नैतिकता पर भाषण देती थी, आज वही पार्टी गटर जैसी भाषा बोलने वालों को बचा रही है। सोशल मीडिया पर उनके समर्थक एक महिला फौजी को ट्रोल कर रहे हैं—”उसका नाम देखो”, “उसका धर्म देखो”।
पूछिए—क्या यही है नया भारत? क्या अब ‘वीरता’ भी हिंदू-मुसलमान में बंटी जाएगी?
ये हमला सिर्फ कर्नल सोफिया पर नहीं है। ये हमला उस हर लड़की पर है जो फौज में, अदालत में, प्रशासन में अपनी जगह बनाना चाहती है। ये उस सोच पर हमला है जो कहती है—”औरत सिर्फ घर की नहीं, देश की भी रखवाली कर सकती है।”
भाजपा को तय करना होगा—वह ‘कैरेक्टर’ को महत्व देगी या ‘कास्ट’ और ‘क्लास’ को?
अगर अब भी यह पार्टी चुप रही, तो यह चुप्पी एक ऐतिहासिक अपराध मानी जाएगी—एक ऐसी सहमति, जो शब्दों में नहीं, मगर नीयत में दर्ज हो चुकी है।
और याद रखिए—जो अहंकार से गिरते हैं, वे सिर्फ चुनाव नहीं हारते, वे आत्मा भी खो देते हैं।
जय माँ भारती