इस बार का महाकुम्भ कई मायनों में विशेष है, और इसे अंकगणित, ज्योतिषीय और धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यधिक पुण्यदायक माना जा रहा है। आइए जानते हैं इस विशेष महाकुम्भ के बारे में विस्तार से:
पूर्ण महाकुंभ
- अंतराल और विशेषता: महाकुम्भ प्रत्येक 12 साल के अंतराल पर होता है, लेकिन जब 12-12 चरण पूरे होते हैं, तब उसे पूर्ण महाकुम्भ कहा जाता है। यह पूर्ण महाकुम्भ 144 साल में एक बार होता है। इस बार का महाकुम्भ 2025 में आयोजित हो रहा है, जो कि आखिरी पूर्ण महाकुम्भ के 144 साल बाद हो रहा है।
ज्योतिषीय विश्लेषण
- देवगुरु बृहस्पति का गोचर: महाकुम्भ का ज्योतिषीय विश्लेषण इस बार विशेष महत्व रखता है क्योंकि देवगुरु बृहस्पति का वृष राशि में गोचर हो रहा है। जब सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करेंगे, तब देवगुरु बृहस्पति की नवम दृष्टि सूर्य पर पड़ेगी। यह अवधि परम पुण्यकारक होती है।
- ग्रहों का संयोग: इस वर्ष भी देवगुरु बृहस्पति वृष राशि में 14 मई 2025 तक स्थित रहेंगे। साथ ही 14 जनवरी 2025 को सूर्य का मकर राशि में गोचर शुरू होगा, जिससे देवगुरु बृहस्पति की नवम दृष्टि सूर्य पर पड़ेगी। इस विशेष संयोग में महाकुम्भ का आयोजन होता है।
- लाभकारी शुभ योग: इस दौरान शनि अपनी राशि कुम्भ में गोचर कर रहे हैं, जो एक श्रेष्ठ संयोग है। इसी अवधि में ऐश्वर्य, सौभाग्य, आकर्षक, प्रेम, सुख आदि के कारक ग्रह शुक्र अपनी उच्चाभिलाषी स्थिति शनि देव की राशि कुम्भ में गोचर करेंगे।
- राजयोग का निर्माण: देवगुरु बृहस्पति के साथ राशि परिवर्तन से बुधादित्य योग, गजकेसरी योग, गुरुआदित्य योग, शश व मालव्य नामक पंच महापुरुष योग का निर्माण होगा। ये सभी योग इस महाकुम्भ को अत्यधिक पुण्य प्रदायक बनाते हैं।
अंकगणितीय संयोग
- वर्ष 2025 का अंकगणित: इस वर्ष 2+2+5 का योग 9 होता है। अंक 9 को पूरी तरह से पूर्णता और सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है। यह अंक इस महाकुम्भ में पुण्यदायक संयोग को और भी बढ़ाता है।
- गणितीय विश्लेषण: 144 का योग भी 9 है, जो इस महाकुम्भ को विशेष बनाता है।
इस विशेष संयोग का लाभ लेने के लिए 14 जनवरी 2025 से 31 मई 2025 के बीच आयोजित होने वाले महाकुम्भ में भाग लेना अत्यधिक पुण्यदायक होगा। यह संयोग श्रद्धालुओं के लिए धार्मिक और व्यक्तिगत लाभों को समाहित करने वाला है।