मोरबी: गुजरात के कच्छ-भुज की ओर गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी मंगलवार को मोरबी में पधारे तो मानों पूरा मोरबी का वातावरण मंगलमय हो उठा। तेरापंथ के नवमें अधिशास्ता आचार्यश्री तुलसी भी 57 वर्ष पूर्व यहां पधारे थे, उसके बाद आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ पधारे तो मोरबीवासी खुशी से झूम उठे। भारत के अलग-अलग राज्यों में मंगलवार को अलग-अलग नामों से सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने का उत्सव पूरे धूमधाम से मनाया जा रहा है। मकर संक्रांति पंजाब में लोहड़ी, भारत में दक्षिण कई राज्यों में पोंगल तो भारत के अनेक राज्यों में मकर संक्रांति के नाम से मनाया जाता है।
आज युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मोरबी जिला मुख्यालय की ओर प्रस्थान किया। मकर संक्रांति के दिन अपने आराध्य के आगमन से न केवल तेरापंथी श्रद्धालु, अपितु अन्य जैन एवं जैनेतर समाज के लोग भी प्रफुल्लित थे। मकर संक्रांति के संदर्भ में मार्ग में कई स्थानों पर मेले जैसा माहौल दिखाई दे रहा था। कहीं पतंगे तो कहीं बच्चों के खिलौने, गुब्बारे आदि सजे हुए थे। मच्छू नदी पर बने पुल को पावन बनाते हुए आचार्यश्री ने मोरबी में मंगल प्रवेश किया। मोरबी की श्रद्धालु जनता ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। मोरबी सिरेमिक टाईल्स और दीवाल घड़ी के उद्योग में अपना विशेष स्थान रखता है। लगभग नौ किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री स्वागत जुलूस के साथ मोरबी के नोबेल किड्स स्कूल में पधारे।
स्कूल परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित जनता को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि हमारी दुनिया में सुख और दुःख का एक युगल है। जीवन में कभी सुख मिल जाता है तो कभी दुःख भी मिल सकता है। कभी संपदा आ जाती है तो कभी आपदा भी आ सकती है। आदमी दुःखमुक्त रहना चाहता है। साधु-संत का भी लक्ष्य सर्वदुःखमुक्ति की भावना हो सकती है। आपदा-संपदा, सुख-दुःख मानव जीवन में आ सकते हैं। आदमी के मन में यह प्रश्न हो सकता है कि उसे दुःख से छुटकारा कैसे मिले? उसके जीवन में कोई दुःख न रहे, इसके लिए क्या किया जा सकता है? न शारीरिक, न मानसिक, न भावात्मक, न जन्म-मरण का दुःख हो और ही कोई बीमारी हो। सर्वरूपेण दुःखमुक्ति की कामना हो सकती है।
शास्त्र मंे दुःखमुक्ति का मार्ग बताया गया है कि हे पुरुष! तुम अपने आपका अभिनिग्रह करो अर्थात् संयम करो। संयम करने, स्वयं पर अनुशासन करने से दुःख से मुक्ति मिल सकती है। कोई दूसरों पर नियंत्रण न भी कर सके तो स्वयं पर स्वयं द्वारा नियंत्रण रखने का कंट्रोल रखने का प्रयास कर रही सकता है। कोई दूसरा गुस्से में हो तो उसे रोका नहीं जा सकता, लेकिन उसकी बातों या व्यवहार से स्वयं को गुस्से बचाने का प्रयास तो किया ही जा सकता है। स्वयं पर नियंत्रण कर लिया तो स्वयं का निग्रह हो सकता है। इससे आदमी दुःख से मुक्त भी रह सकता है। जिसने अपने से अपना संयम कर लिया, वह दुःख से मुक्त भी रह सकता है।
असंयम के रूप में तमाम खाद्य पदार्थों को खाने लेने से शरीर में तकलीफ हो सकती है। खाने में संयम हो, ऐसे तकलीफ से आदमी बच भी सकता है। संयम हो गया तो दुःख से छुटकारा भी मिल सकता है। इसी वाणी का संयम भी करने का प्रयास करना चाहिए। किसी को गलत बोल दिया तो वह नाराज भी हो सकता है। इसलिए वाणी का संयम करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी जहां भी असंयम करता है, वहां उसे दुःख की प्राप्ति हो सकती है। आदमी को स्वयं अभिनिग्रह करने का प्रयास करना चाहिए। जीवन की प्रत्येक क्रिया में संयम हो पाप कर्म से भी बच सकते हैं और दुःख से भी बच सकते हैं। संयम रखने से कभी मोक्ष की प्राप्ति भी हो सकती है, इसके साथ व्यावहारिक जीवन में काफी शांति रह सकती है।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि आज हमारा मोरबी में पधारना हुआ है। गुरुदेव तुलसी कच्छ से लौटते समय मोरबी पधारते थे और मेरा कच्छ की ओर जाते समय में आना हुआ है। यहां की जनता में खूब धार्मिकता-आध्यात्मिकता आदि के अच्छे संस्कार रहें, मंगलकामना।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने समुपस्थित श्रद्धालु जनता को उद्बोधित किया। आचार्यश्री के स्वागत में मोरबी के श्री चेतन भंसाली ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। बालिका चारवी भंसाली ने भी अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। नोबेल स्कूल के श्री कनकभाई सेठ ने भी आचार्यश्री का हार्दिक स्वागत किया।
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