डेस्क:अयोध्या में मिल्कीपुर उपचुनाव अब समाजवादी पार्टी के लिए मौका भी है और चुनौती भी। यहां पीडीए की आंच का परीक्षण होगा तो राममंदिर से उपजी आस्था के जरिए वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश भी। मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर सीधा-सीधा भाजपा व सपा के बीच मुकाबला है। यहां कांग्रेस तो सपा के साथ खड़ी है और बसपा चुनाव मैदान से बाहर है।
पिछली बार जब दस विधानसभा सीटों के उपचुनाव के शोर के बीच मिल्कीपुर का उपचुनाव नहीं कराया गया तो सपा ने इसे भाजपा का डर बताते हुए कहा था कि जिसने जंग टाली समझो उसने जंग हारी। वाकई में मिल्कीपुर सीट का मुकाबला किसी बड़ी जंग से कम नहीं है। अखिलेश फतेह के लिए एड़ी चोटी जोर लगाए हैं।
लेकिन भाजपा की जोरदार तैयारी व आक्रामक तेवर के आगे समाजवादी पार्टी के लिए अपनी सीट बचाना खासा मुश्किल होगा। अखिलेश यादव ने कहा है कि मिल्कीपुर का चुनाव दुनिया भर का मीडिया आकर देखे। यह सीट अवधेश प्रसाद के इस्तीफे से खाली हुई जो फैजाबाद से सांसद हो गए। सपा ने अवधेश प्रसाद को पार्टी के पोस्टर ब्याय की तरह पेश किया और संसद में अखिलेश यादव ने अपने बगल में बिठा कर संदेश दिया कि इन्होंने भाजपा को उस लोकसभा क्षेत्र में हराया जिसमें श्रीराम मंदिर का निर्माण हुआ है।
सपा ने अवधेश प्रसाद के बेटे अजित प्रसाद को पहले से ही प्रत्याशी के रूप में उतार रखा है। अवधेश प्रसाद भी बेटे को अपनी छोड़ी सीट पर जिताने के लिए एड़ी चोटी जोर लगाए हैं।
पीडीए की धमक
मिल्कीपुर की जातीय बिसात पर पीडीए हावी दिखता है। यहां सवा लाख दलित हैं। इनमें पासी बिरादरी के वोट ही करीब 55 हजार हैं। इसके अलावा 30 हजार मुस्लिम हैं तो 55 हजार यादवों की तादाद भी अहम भूमिका में है। सवर्णों में ब्राह्मणों, क्षत्रियों व वैश्य समुदाय की तादाद क्रमश: 60 हजार व 25 हजार व 20 हजार है। कोरी 20 हजार, चौरसिया 18 हजार हैं। पाल व मौर्य बिरादरी की तादाद भी कम नहीं है।
मिल्कीपुर सीट पर बरसों से रहा है सपा का कब्जा
मिल्कीपुर सीट पर सपा अब तक छह बार व बसपा दो बार जीत चुकी है जबकि भाजपा 33 सालों में केवल दो बार जीती है। खास बात यह कि सपा दो बार पहले भी मिल्कीपुर उपचुनाव जीती थी।