फतेहगढ़:लगभग ढाई महीने से कच्छ की धरा पर विहार व प्रवास करते-करते जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ सोमवार को उस फतेहगढ़ में स्थित ऐतिहासिक स्थान पर पधारे, जहां तेरापंथ धर्मसंघ के सप्तम आचार्यश्री डालगणी ने अपनी मुनि अवस्था में चतुर्मास किया था। जी हां, सोमवार को अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी फतेहगढ़ के उस स्थान में पहुंचे जहां कच्छी पूज कहे जाने वाले तेरापंथ धर्मसंघ के सप्तम आचार्य ने अपना चतुर्मास किया था। पुराने मिट्टी के घर में बने छत पर स्थित एक पत्थर, जिस पर सप्तमाचार्य विराजमान हुए करते थे, आचार्यश्री उसी पत्थर पर विराजमान हुए। इस दौरान अन्य चारित्रात्माओं के साथ बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की उपस्थिति थी। इस दृश्य को देखने के लिए जन-जन का मन लालायित हो रहा था। आचार्यश्री वहां कुछ देर तक विराजमान होकर सप्तमाचार्य डालगणीजी का स्मरण किया।
इसके पूर्व शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी फतेहगढ़ में नवनिर्मित तेरापंथ भवन में पधारे। जहां आचार्यश्री के पदार्पण के साथ ही भवन का लोकार्पण किया गया। फतेहगढ़वासी अपने आराध्य की इस कृपा को प्राप्त कर अभिभूत थे। आचार्यश्री रविवार की सायं में ही फतेहगढ़ नगर में पधार गए थे। फतेहगढ़ प्रवास के साथ ही आचार्यश्री का कच्छ में ऐतिहासिक विहार व प्रवास का अंतिम दिवस था।
तेरापंथ धर्मसंघ के सप्तमाचार्यश्री डालगणी की चतुर्मासस्थली फतेहगढ़ में आयोजित प्रातःकालीन मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने जनता को उद्बोधित किया। तदुपरान्त युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी कल्याणीवाणी से समुपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि दसवेआलियं के सातवें अध्ययन में भाषा के संदर्भ में दिशा-निर्देश दिए गए हैं। भाषा के द्वारा आदमी अपने विचारों का आदान-प्रदान करता है। भाषा व्यवहार का माध्यम बनती है। भाषा के द्वारा ही तीर्थंकर भगवान देशना देते थे और उसे सुनकर जीव अपना कल्याण करते थे। भाषण से श्रोताओं को भी बहुत लाभ मिलता है। आज के युग में यंत्रों के माध्यम से एक वक्ता की वाणी को कोई हजारों किलोमीटर दूर से भी सुन सकता है।
भाषा के द्वारा कल्याण की बात भी बता सकते हैं। भाषा मित, सीमित व संयमित होनी चाहिए। जो बात थोड़े में कही जा सकती है, उसे अनावश्यक बढ़ाया क्यों जाए। भाषा के दो दोष बताए गए हैं- बात को अनावश्यक लम्बा कर देना दूसरा दोष है बिना अर्थ की बातों को बोलना अथवा असार की बातें बोलना। वाणी के दो गुण बताते हुए कहा गया कि पहली बात है आदमी को परीमित और सारपूर्ण बोलने का प्रयास होना चाहिए और बुद्धि से परीक्षण करने के बाद ही बोलने का प्रयास करना चाहिए। वचन को रत्न के समान माना गया है। आदमी को यत्नापूर्वक रक्षा करने का प्रयास करना चाहिए। जहां बोलना हो, वहां आदमी को सोच-समझकर बोलने का प्रयास करना चाहिए। सोच-समझकर परीमित बोलना लाभदायक बन सकता है।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि सूरत चतुर्मास कर हमारा सौराष्ट्र की यात्रा के बाद कच्छ में प्रवेश हुआ। कच्छ में सबसे पहले हमारे तीसरे आचार्यश्री रायचन्दजी महाराज का पदार्पण हुआ। उसके बाद परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी कच्छ पधारे थे। उसके बाद हमारा सन् 2013 में कच्छ की यात्रा की थी, लेकिन सौराष्ट्र जाना नहीं हुआ। इसबार सौराष्ट्र व कच्छ की यात्रा हुई है। मर्यादा महोत्सव के कार्यक्रम भी भुज में हुआ। अनेक संतों से हमारा मिलना हुआ। यहां मैं डालमुनि के व्याख्यान के स्थान पर भी गया था। अच्छा स्थान लगा। कच्छ मानों डालमुनि की चतुर्मास भूमि है। अब प्रेक्षा विश्व भारती-अहमदाबाद में चतुर्मास होना है। वहां भी अच्छा धार्मिकता-आध्यात्मिकता व जनकल्याण का कार्य हो। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का चतुर्मास स्थल भी है। सब खूब अच्छा रहे।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्याजी व मुख्यमुनिश्री का भी उद्बोधन हुआ। मुनि कैवल्यकुमारजी ने अपनी पैतृक भूमि में आचार्यश्री के स्वागत में अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। साध्वी गौरवयशाजी, साध्वी नवीनप्रभाजी व समणी हिमप्रज्ञाजी ने अपने संसारपक्षीय नगर में अपने आराध्य की अभिवंदना में अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। श्री आदर्श संघवी व श्री हीराभाई पटेल ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। कड़वी समाज के बच्चों ने अपनी प्रस्तुति दी। फतेहगढ़ की ओर से श्री चंदू भाई संघवी, श्री अरविंदभाई दोसी, श्री नरेन्द्रभाई मेहता, श्री मोहनभाई संघवी व श्री महेश गांधी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। साध्वी मूलांजी की जीवनी ‘कच्छ की पहली किरण’ साध्वी मंगलयशाजी द्वारा लिखित पुस्तक को आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित किया गया। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।
अहमदाबाद चतुर्मास व्यवस्था समिति ने संभाला दायित्व
आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आज ध्वज हस्तांतरण का आयोजन भी था। इस संदर्भ में कच्छ-भुज के लोग व अहमदाबाद से भी काफी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे। इस संदर्भ में भुज मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री कीर्तिभाई संघवी व चतुर्मास व्यवस्था समिति-अहमदाबाद के अध्यक्ष श्री अरविंद संचेती ने अपनी-अपनी अभिव्यक्ति दी। इसके उपरान्त भुज व्यवस्था समिति के लोगों द्वारा अहमदाबाद चतुर्मास व्यवस्था समिति को ध्वज हस्तांतरित किया। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में मंगल आशीर्वाद प्रदान करते हुए मंगलपाठ भी सुनाया।