हाल ही में पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर ने ‘टू नेशन थ्योरी’ (दो राष्ट्र सिद्धांत) का हवाला देते हुए एक तीखा बयान दिया, जिसमें उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों को स्वभावतः भिन्न बताया। उनके इस उग्र वक्तव्य के बाद जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादी हमला हुआ, जिसे सीधे तौर पर उनके बयान से जोड़कर देखा गया।
पाकिस्तानी मूल के विख्यात विद्वान प्रोफेसर इश्तियाक अहमद ने इस घटनाक्रम के लिए सीधे तौर पर जनरल मुनीर को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने न केवल मुनीर की आलोचना की, बल्कि पाकिस्तान के इतिहास से जुड़ी एक बड़ी विडंबना भी उजागर की — चौधरी रहमत अली, जिन्होंने ‘पाकिस्तान’ नाम प्रस्तावित किया था, उन्हें ही इस देश में दफनाने की अनुमति नहीं मिली।
चौधरी रहमत अली: पाकिस्तान के नाम के जन्मदाता
प्रोफेसर इश्तियाक अहमद ने बताया कि पाकिस्तान का नाम सबसे पहले चौधरी रहमत अली ने दिया था। वह भारतीय पंजाब के होशियारपुर जिले से संबंध रखते थे और गुर्जर बिरादरी से थे। हालांकि उन्होंने प्रयास किए, किंतु एलएलबी (कानून) की पढ़ाई पूरी नहीं कर सके।
1934 में उन्होंने एक पर्चा प्रकाशित किया, जिसमें “अब नहीं तो कभी नहीं” (Now or Never) का नारा दिया और “PAKISTAN” शब्द प्रस्तुत किया। इस नाम में:
- P से पंजाब,
- A से अफगानिया (वर्तमान खैबर पख्तूनख्वा),
- K से कश्मीर,
- ISTAN से सिंध और बलूचिस्तान का प्रतिनिधित्व था।
इसके बावजूद, चौधरी रहमत अली को कभी भी उनके इस ऐतिहासिक योगदान का पूरा श्रेय नहीं दिया गया। समय बीतने के साथ इस विचारधारा का श्रेय अल्लामा इकबाल और मोहम्मद अली जिन्ना जैसे नेताओं को मिलता रहा।
टू नेशन थ्योरी का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
प्रोफेसर इश्तियाक अहमद ने टू नेशन थ्योरी की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का उल्लेख करते हुए कहा कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के पश्चात भारतीय उपमहाद्वीप में हिंदू और मुसलमानों के बीच दूरी बढ़ने लगी थी। फिर भी, किसी भी बड़े संगठन या समुदाय ने सीधे विभाजन की मांग नहीं की थी।
उन्होंने कहा कि इलाहाबाद में अल्लामा इकबाल के भाषण को बाद में पाकिस्तान के विचार का प्रारंभिक रूप माना गया, लेकिन उस समय मुस्लिम समुदाय में भी इस प्रस्ताव के प्रति उत्साह नहीं था। बताया जाता है कि वहां मुस्लिम व्यापारियों को जबरन सम्मेलन में लाया गया और किसी तरह समर्थन दिलाया गया।
जिन्ना ने कैसे अपनाया रहमत अली का विचार?
इश्तियाक अहमद के अनुसार, मोहम्मद अली जिन्ना ने 1940 से लेकर 1947 तक पाकिस्तान निर्माण के आंदोलन में चौधरी रहमत अली के विचारों का भरपूर उपयोग किया, परंतु कभी भी उन्हें औपचारिक रूप से श्रेय नहीं दिया।
सबसे दुखद पहलू यह रहा कि जब चौधरी रहमत अली विभाजन के बाद पाकिस्तान लौटे तो उन्हें वहां रहने की अनुमति नहीं दी गई। उपेक्षित होकर वह पुनः इंग्लैंड के कैम्ब्रिज लौट गए, जहां 3 फरवरी 1951 को उनका निधन हो गया। उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनके अवशेष पाकिस्तान में दफनाए जाएं, किंतु पाकिस्तान सरकार ने इसकी भी अनुमति नहीं दी। 2017 में उनके अवशेष पाकिस्तान लाने के लिए लंदन में कानूनी कार्यवाही भी हुई, किंतु कोई ठोस परिणाम नहीं निकला।
पाकिस्तान की टूटी हुई विरासत
इश्तियाक अहमद ने कहा कि रहमत अली ने जिस पाकिस्तान की कल्पना की थी, उसमें विशाल मुस्लिम आबादी पीछे छूट गई। भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश मुसलमान विभाजन के पक्षधर नहीं थे। विशेषकर पंजाब जैसे प्रांत में लोग बंटवारा नहीं चाहते थे।
उनके अनुसार, आज भी पाकिस्तान अपनी मूल विचारधारा और इतिहास के साथ न्याय नहीं कर पाया है। जिन लोगों ने इसकी नींव रखी, उन्हें न तो उचित मान्यता मिली, न सम्मान।
जनरल आसिम मुनीर के हालिया बयान ने न केवल हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच खाई को गहरा किया है, बल्कि यह भी उजागर कर दिया है कि पाकिस्तान अब भी अपने ऐतिहासिक कर्तव्यों से विमुख है। चौधरी रहमत अली, जिन्होंने पाकिस्तान का सपना देखा था, आज भी इतिहास के पन्नों में एक अनदेखे नायक के रूप में दर्ज हैं।