नागराजू की हत्या हुए ५० घंटो से ज्यादा हो चुके हैं। क्या आपने इस दौरान किसी कथित बुद्धिजीवी, किसी वामपंथी नेता, किसी कथित धर्मनिरपेक्ष लेखक या पत्रकार का बयान देखा? क्या इनमें से किसी ने नागराजू की हत्या की निंदा की? क्या इनमें से किसी ने धर्म की वजह से एक हिंदू युवक के मर्डर के खिलाफ आवाज उठाई? वो बिलकुल खामोश हैं……. एकदम चुप हैं…… देश में कहीं भी कुछ भी हो अपनी न्यूज़ बाईट देने के लिए उतारू रहने वाले असदुद्दीन ओवैसी भी खामोश है। किसी पार्टी अध्यक्ष की आँखो से भी दो बून्द नहीं गिरे ना ही रुदालियों का जमघट दिखा।
हैदराबाद में हमले की जगह पर लगे CCTV में ये पूरी घटना रिकॉर्ड हो गई। CCTV की क्लिपिंग में आप देखगे कि मोबिन और मसूद के हाथ में लोहे की रॉड थी। वो नागराजू पर वार कर रहे थे। सुल्ताना ने अपने पति को बचाने की पूरी कोशिश कर रही थी। उसने मोबिन और मसूद से गुहार लगाई कि वो नागराजू को छोड़ दें लेकिन वो नहीं माने। सुल्ताना ने आसपास मौजूद लोगों से भी गुहार लगाई लेकिन किसी ने नागराजू को बचाने की कोशिश नहीं की। रॉड और चाकुओं के वार से नागराजू लहूलुहान हो गए। उस वक्त की तस्वीरें विचलित करने वाली हैं। नागराजू की हत्या कर सुल्ताना का भाई मोबिन और मसूद वहां से चलेगए। वहां भारी भीड़ मौजूद थी लेकिन किसी ने न तो हत्यारों को पकड़ने की कोशिश नहीं की, वहां से गाडियां निकल रही थीं लोग आ-जा रहे थे। लेकिन सब तमाशबीन बने रहे जैसे सदा से रहते आये है।
जरा सोचिए – कर कुछ नहीं सकते कम से कम सोचने का कष्ट तो करिये –अगर इसका रिवर्स होता, तो क्या होता– अगर हिंदू लड़की से शादी करने वाले मुस्लिम युवक की इस तरह हॉरर किलिंग कर दी जाती तो क्या ये डिजायनर बुद्धिजीवी, पत्रकार और धर्मनिरपेक्षता का ढोल बजाने वाले नेता क्या ऐसे ही खामोश रहते? जी नहीं, तब वो चुप नहीं रहते। फिर वो ट्विटर और फेसबुक पर बयान जारी करते, धरना प्रदर्शन करते, विरोध में सभाएं करते, कैंडल मार्च निकालते। इस हत्या को अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्याचार का नाम देते। यह भी संभव है कि कुछ लोग अवॉर्ड वापसी का ऐलान भी कर देते,अवॉर्ड का राशि का नहीं। सवाल है कि ये सेलेक्टिव खामोशी क्यों? यहां एक और तर्क दिया जा सकता है कि नागराजू की हत्या हॉरर किलिंग का एक आइसोलेटेड मामला है। इसे पूरे समाज से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए लेकिन ये तर्क देने वाले लोग तब खामोश हो जाते हैं, जब किसी अल्पसंख्यक की हत्या होती है तब वो इसे आइसोलेटेड केस नहीं मानते हैं। वो किसी एक मुसलमान की हत्या को पूरे अल्पसंख्यक समाज के खिलाफ साजिश करार देते हैं। ऐसे लोग धर्मनिरपेक्षता के नाम पर एजेंडा चलाते हैं, प्रोपेगेंडा करते हैं और देश को बदनाम करते हैं।
हमें याद रखना चाहिए कि खून का कोई धर्म नहीं होता पर अधिकतम हिन्दुओ का ही खून होता है. …… जो सदियों से बहाया जा रहा है अफगानिस्तान से ढाका तक कश्मीर से बंगाल तक क्योंकि मारने वाले जानते है यह व्यस्त है अपनीजिंदगी में और इन्हें भ्रम है की ये खत्म नहीं हो सकते …… जब की हो रहे है…….