नई दिल्ली:राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत नई मुश्किल में घिरते नजर आ रहे हैं। पूर्व कैबिनेट मंत्री और पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश चौधरी ने मुख्यमंत्री के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए तत्काल ओबीसी और पूर्व सैनिकों के आरक्षण की विसंगतियों को ठीक करने का मुद्दा उठाया है। अशोक गहलोत के वफादार रहे हरीश चौधरी ने कहा है कि पूर्व सैनिकों को मिल रहा आरक्षण ओबीसी आरक्षण को कमजोर कर रहा है। इसलिए इसे तत्काल ओबीसी कोटे से अलग किया जाना चाहिए।
हरीश चौधरी ने कहा कि वह इस बात से स्तब्ध हैं कि राज्य मंत्रिमंडल की हालिया बैठक में इस मामले पर “उचित निर्णय” नहीं लिया गया और चर्चा को टाल दिया गया।
ओबीसी समुदायों के कई सदस्यों ने अशोक गहलोत सरकार से पिछली भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान 2018 में जारी राज्य के कार्मिक विभाग की अधिसूचना को वापस लेने के लिए कहा है। अधिसूचना में निर्देश दिया गया है कि मंत्रालयों और अधीनस्थ सेवाओं में 12.5 प्रतिशत पद भूतपूर्व सैनिकों के लिए आरक्षित किए जाएं। ओबीसी समुदायों ने मांग की है कि मौजूदा व्यवस्था के बजाय पूर्व सैनिकों के लिए महिलाओं के लिए उपलब्ध आरक्षण की तर्ज पर कोटा तय किया जाए।
शुक्रवार को ओबीसी नेताओं की मांग का जवाब देते हुए सर्व ब्राह्मण महासभा भी इसमें कूद पड़ा। संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष और कांग्रेस नेता पंडित सुरेश मिश्रा, जो पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के करीबी सहयोगी हैं, ने एक बयान जारी कर कहा कि 2018 की अधिसूचना “सही” है और उनका संगठन उसमें किसी भी तरह के बदलाव की अनुमति नहीं देगा।
आरक्षण के इस मामले पर राजनीतिक दांवपेच का नया दौर गुरुवार को तब शुरू हुआ जब हरीश चौधरी, जो बाड़मेर जिले के बायतू से मौजूदा विधायक और ओबीसी आरक्षण संघर्ष समिति के नेता हैं, ने ट्विटर पर राज्य मंत्रिमंडल द्वारा निर्णय नहीं लिए जाने पर अपनी निराशा व्यक्त की। उन्होंने लिखा, “कल कैबिनेट की बैठक में ओबीसी आरक्षण को विसंगति का मुद्दा रखने के बावजूद एक विचारधारा विशेष द्वारा इसका विरोध चौंकाने वाला है। सीएम अशोक गहलोत जी, मैं स्तब्ध हूं, आप क्या चाहते हैं? मैं ओबीसी वर्ग को विश्वास दिलाता हूं कि इस मामले में जो भी लड़ाई लड़नी होगी मैं लड़ूंगा।’
हरीश चौधरी, राज्य के पूर्व राजस्व मंत्री हैं और जाट समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। उन्होंने यादव और कुमावत जैसे अन्य ओबीसी समुदायों के साथ मिलकर 2018 की अधिसूचना को वापस लेने का आह्वान किया है। बाद में उन्होंने ओबीसी आरक्षण संघर्ष समिति की बैठक बुलाने से पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा से मुलाकात की। डोटासरा भी जाट हैं।
चौधरी ने कहा कि अप्रैल 2018 की अधिसूचना के मुताबिक, पूर्व सैनिकों को दिया जा रहा आरक्षण क्षैतिज होना चाहिए और इसे सभी वर्गों में समायोजित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं होने से ओबीसी समुदाय के युवाओं की हकमारी हो रही है। राजस्थान की आधी से ज्यादा आबादी ओबीसी समुदाय की है।
सचिन पायलट के वफादार विधायक मुकेश भाकर ने भी ट्वीट कर कहा है, “अगर सरकार ओबीसी के हित में त्वरित निर्णय नहीं लेती है, तो राज्य में जो माहौल बनेगा, उसके लिए मुख्यमंत्री खुद जिम्मेदार होंगे। मेरे लिए युवाओं को अधिकार मिलना सरकार में कोई पद पाने से ज्यादा महत्वपूर्ण है।”
अशोक गहलोत के लिए, जो इस मुद्दे को हल करने का वादा कर रहे हैं, यह नाराजगी ऐसे समय में उभर कर सामने आई है, जब उनके प्रतिद्वंद्वी सचिन पायलट ने फिर से यह मांग उठाई है कि “अनिर्णय के माहौल को समाप्त किया जाए।”