नई दिल्ली: देश की विशाल आबादी जहां संघर्ष विराम के पक्ष में थी, वहीं कई लोगों का मानना था कि अभी रुकने का समय नहीं आया है। भारत ने अपनी तीनों सेनाओं के पराक्रम और सटीक लक्ष्य निर्धारण के साथ पाकिस्तान को संघर्ष विराम का प्रस्ताव स्वीकार करने पर मजबूर किया। अब, भारत को तब तक दबाव बनाए रखना चाहिए जब तक आतंकवाद की मूल समस्या का स्थायी समाधान न मिल जाए।
मनोज नरवणे ने कहा- पाकिस्तान पर दबाव बनाए रखना चाहिए
यह टिप्पणी पूर्व सेना प्रमुख जनरल मनोज नरवणे की है। नरवणे और अन्य कुछ सैन्य विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान के मामले में जब तक स्पष्ट लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाते, तब तक भारत को सैन्य अभियान को समाप्त नहीं करना चाहिए। नरवणे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि संघर्ष विराम एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन यह भी जरूरी है कि पाकिस्तान की घेरेबंदी को जारी रखा जाए। इससे ही एक स्थायी और टिकाऊ समाधान मिल सकेगा।
भविष्य में अवसर खोने की कोई जरूरत नहीं – नरवणे
नरवणे ने आगे कहा कि आतंकवाद के कारण मासूम लोगों की जानें जाती रहें और हमारा प्रतिकार घटना आधारित बने, यह ठीक नहीं है। उनका कहना था कि यह तीसरी बार था जब भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की। भविष्य में कोई अवसर गंवाने की जरूरत नहीं है।
वीपी मलिक ने जताई निराशा
पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीपी मलिक ने भी भारत द्वारा संघर्ष विराम को इतनी जल्दी स्वीकार करने पर हल्की निराशा व्यक्त की। उन्होंने एक्स पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए सवाल उठाया कि पुलवामा हमले के बाद भारत द्वारा की गई सैन्य और असैन्य कार्रवाइयों से क्या वास्तविक लाभ मिला? उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि भारत ने एक बार फिर लाभ की स्थिति को गंवाया है।
भारत की परंपरा रही है लाभ की स्थिति को खो देना – ब्रह्म चेलानी
प्रख्यात रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी ने भी यही राय व्यक्त की कि ऑपरेशन सिंदूर को बिना स्पष्ट लक्ष्य प्राप्त किए तीन दिनों के भीतर रोक दिया गया। चेलानी ने 1948 के भारत-पाकिस्तान युद्ध, 1960 के सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर, और 1972 के शिमला समझौते जैसी घटनाओं का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत की यह परंपरा रही है कि उसने लाभ की स्थिति को खुद ही खो दिया है।
कंवल सिब्बल ने भी सवाल उठाए
एक अन्य रक्षा विशेषज्ञ कंवल सिब्बल ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ के संघर्ष विराम के बाद अपनी “जीत” का प्रचार करने पर भी सवाल उठाए। उनका कहना था कि इससे यह प्रतीत होता है कि पाकिस्तान को वह कठोर संदेश नहीं दिया गया, जो उसे दिया जाना चाहिए था।