इस्लामाबाद:पाकिस्तानी सेना खुद का महिमामंडन करने और पूर्व प्रधा मंत्री इमरान खान पर सभी विफलताओं को ठीकरा फोड़ने में काफी फेल रही। इसका प्रमुख कारण है कि जनरल कमर जावेद बाजवा आर्थिक मोर्चे पर लिए गए निर्णय के लिए जिम्मेदार थी। विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में वरिष्ठ पदों पर सेवारत और सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों की नियुक्ति उन्होंने कराई थी।
अविश्वास प्रस्ताव हारने के बाद इमरान खान छुपे नहीं। उन्होंने शक्तिशाली अमेरिका और सेना से मुकाबला करने के लिए शहरी मध्यम वर्ग के बीच नया समर्थन हासिल किया है। इमरान खान शहरी युवाओं के बीच एक मजबूत नेता के रूप में उभरे हैं। इस्लाम खबर के अनुसार, सेना इमरान खान के खिलाफ अपनी प्रतिष्ठा और प्रभाव को बचाने के लिए अभियान चला रही है।
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान हालांकि बेपरवाह होकर लड़ाई का डटकर मुकाबला करने के लिए युवाओं के बीच एक नेता के रूप में उभरे हैं। दूसरी ओर सेना ने जनता का विश्वास खो दिया है और नुकसान की भरपाई करने की कोशिश करती दिख रही है।
सेना ने पुराने राजनीतिक नेतृत्व को सावधानीपूर्वक हटाने और उन्हें नए नेताओं के साथ बदलने की योजना बनाई है। हालांकि, सेना के लिए स्थिति कठिन बनी हुई है क्योंकि नए नेताओं को भी अब भ्रष्टाचार और अयोग्यता के आरोपों का सामना करना पड़ा है। इसलिए सेना की यह योजना काफी हद तक विफल हो गई है। सेना के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी भी इमरान खान के समर्थन में उतर आए हैं।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के एक दिन बाद 8 अप्रैल को लेफ्टिनेंट-जनरल (सेवानिवृत्त) तारिक खान ने इमरान खान के खिलाफ कथित “विदेशी साजिश” के आरोप की जांच के लिए संघीय कैबिनेट द्वारा गठित एक आयोग का नेतृत्व करने से इनकार कर दिया। तारिक खान ने तब से इमरान खान का समर्थन करने और सेना को दोष देने के लिए लेख लिखे हैं। लेफ्टिनेंट जनरल असद दुर्रानी ने भी ठीक यही काम किया है।
शीर्ष नेतृत्व के बीच पूर्व पीएम के काफी समर्थक हैं। यही कारण है कि सेना को यकीन नहीं है कि अपने ‘लड़के को दुश्मन’ बनाना एक अच्छा विचार था या नहीं। एक मजबूत भावना है कि इमरान खान को और अधिक सूक्ष्मता से संभाला जाना चाहिए था। सेना ने हील ही में जल्दबाजी में एक सार्वजनिक घोषणा की है कि जनरल बाजवा की सेवा का विस्तार नहीं होगा।