श्रावण मास में पार्थिव पूजा (शिवार्चन) का बेहद धार्मिक महत्व है। कहा जाता है भगवान शिव के लिंग रूप में पूजा की शुरुआत ही जागेश्वर धाम से हुई थी। यही वजह है खासतौर पर कुमाऊं के लोग पार्थिव पूजा की शुरुआत को जागेश्वर पहुंचते हैं। कई भक्त उसके बाद श्रावण या अन्य पावन महीनों में पार्थिव पूजन अपने घर में ही संपन्न कराते हैं। उनमें से अधिकतर लोग उद्यापन की पार्थिव पूजा भी जागेश्वर में कराने पहुंचते हैं।
जागेश्वर धाम में हरेला पर्व से श्रावण मास के तहत विभिन्न अनुष्ठान शुरू हो जाते हैं। इस पावन माह में पार्थिव पूजन को विशेष धार्मिक महत्व है। इसे देखते हुए महीने भर चलने वाले मेले के दौरान जागेश्वर धाम में पार्थिव पूजा कराने पहुंचते हैं। मंदिर परिसर के चारों ओर पुजारियों के पंडाल लग जाते हैं। उन पांडालों में बैठकर भक्तजन शिवार्चन करवाते हैं। इस धाम में ज्योर्तिलिंग जागेश्वर, महामृत्युंजय, पुष्टि माता, केदारनाथ, लकुलीश, हवन कुंड, नीलकंठ समेत कई मंदिरों के आसपास पांडालों में भक्तजन पार्थिव पूजा करवाते हैं।
विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का होगा आयोजन : जागेश्वर में एक माह तक चलने वाले श्रावणी मेले के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। जिसमें स्कूली बच्चों समेत सांस्कृतिक टीमें प्रतिभाग करेंगी।
14 साल बाद करते हैं उद्यापन : भगवान शिव को प्रसन्न कराने के लिए भक्त पार्थिव पूजा करते हैं। कई श्रद्धालु लगातार 14 साल तक पार्थिव पूजा करवाते हैं।