युग प्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के आज्ञानुवर्ती शासन श्री मुनि रविंद्र कुमार जी एवं मुनि श्री अतुल कुमार जी संबोधि से विहार करके आमली का गुड़ा पधारे । यहां शिवसिंह के निवास स्थान पर प्रवचन का आयोजन हुआ। मुनि श्री अतुल कुमार जी ने कहा अच्छी या बुरी सोच हमारे मन में ही बनती है ना कि हमारे शरीर में । पाप भी हमारे मन की ही उपज है। अब हम जो गलत चीज देखेंगे तो उससे मन में एक गलत भावना उत्पन्न भी होगी और यही भावना आगे जाकर पाप बन जाती है । इच्छाएं, कामनाएं ही पाप करवाती हैं । यह विवेक को ढंक लेती हैं। ना बुझने वाली अग्नि है- कामनाएं । मनुष्य का मन स्वभाव से ही लालच, वासना और अहंकार का पुतला है । इन तीनों के कारण ही मन में पाप उत्पन्न होता है । दुर्भाग्य से दुनिया में अधिकांश लोग चेतना के ऐसे स्तरों पर जीते हैं जहां वे मन से पृथक अपने वास्तविक स्वरूप को नहीं जान पाते । जब तक मन है तब तक लालच, अहंकार और वासना है । जैसे-जैसे चेतना का स्तर बढ़ता है वैसे-वैसे मन का अतिक्रमण होता जाता है । आध्यात्मिक जागृति की समस्त साधना का उद्देश्य यही है । मन में किए गए विचारों का पुण्य-पाप फल मिलता है । कहीं ना कहीं कर्मों का डर तो है वरना गंगा पर इतनी भीड़ क्यों है ? लोग गंगा में पाप धोने जाते हैं पर उनको ये नहीं पता कि पाप शरीर से नहीं विचारों से होता है और गंगा शरीर धोती है, विचार नहीं । पाप दूसरों को नहीं स्वयं को प्रभावित करता है । जब आपकी बुद्धि आत्मग्लानि से भर जाए, आपकी आत्मा दरिद्र हो जाए और आपका स्वाभिमान चकनाचूर हो जाए तो समझ जाएं कि जो आपने किया है ये पाप है । भगवान ने कोई भी चीज़ नहीं बनाई है । यह अच्छी व बुरी इंसान की उपज है । अपने बनाए जाल में इंसान खुद उलझा हुआ है । इसलिए उसे निकलने का सही मार्ग नहीं मिल रहा है । जब पाप का घड़ा भर जाता है तो उसके ऐसे पतन की शुरुआत होती है जहां से वह उभर नहीं पाता है । वह ऐसी गलतियां करता है कि सगे संबंधी भी मुंह मोड़ लेने को मजबूर हो जाते हैं, सामाजिक प्रतिष्ठा भी धूल में मिल जाती है ,शरीर भी साथ नहीं देता है, वह गलतियों पर गलतियां करता है, बुद्धि काम नहीं करती है । जिसमें पश्चाताप की संवेदना है वो पापी नहीं रह पाएगा । जिसने पाप को स्वीकार कर लिया, वो इंसान उस कर्म से मुक्त हो जाता है । मनुष्य को बिना जाने-समझे और बिना विचार-विवेक के कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए । यह मनुष्य होने की प्राथमिक जिम्मेदारी और पात्रता है। इसके बगैर मनुष्य नर पशु है और नरपशु के लिए क्या पाप और क्या पुण्य? चेतना और जागृति के साथ जीना एकमात्र पुण्य है । इसके बिना सब कुछ पाप ही है । इससे कोई फर्क नहीं पड़ता वो कौन है और क्या कहलाता है । मुनि श्री रविंद्र कुमार जी ने मंगल पाठ सुनाया । मुनि श्री धीरज कुमार जी ने मधुर आध्यात्मिक गीत की प्रस्तुति दी । प्रवचन के पश्चात मुनिश्री ने जवारिया के लिए प्रस्थान किया । मुनिवर मेहरडा, सियाणा, जेतपुरा होते हुए बिनौल पधारेंगे और यहां अक्षय तृतीया का आयोजन करेंगे । विहार सेवा में संबोधि उपवन मंत्री अशोक गांधी, हनुमान बरडिया, नरेंद्र तातेड , हुकुम सिंह, लाला दास वैष्णव ,कमला वैष्णव, कन्हैया वैष्णव, कंचन वैष्णव, लक्ष्मी देवी, गहरी लाल, शिव सिंह, वीरेंद्र सिंह, चम्पा लाल उपस्थित रहे ।