भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं में कपूर (कैंपफर) का विशेष स्थान है। पूजा-पाठ, आरती और धार्मिक अनुष्ठानों में कपूर का उपयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है। इसका वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और स्वास्थ्य से जुड़ा महत्व भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
आध्यात्मिक महत्व
कपूर को शुद्धता का प्रतीक माना जाता है। जब कपूर जलाया जाता है, तो यह बिना कोई राख छोड़े पूरी तरह जलकर समाप्त हो जाता है। यह आत्म-समर्पण और त्याग का प्रतीक माना जाता है — जैसे आत्मा ईश्वर में लीन हो जाती है। आरती के समय कपूर जलाकर भगवान के समक्ष प्रस्तुत करना भक्त का संपूर्ण समर्पण दर्शाता है।
वातावरण की शुद्धता
कपूर जलाने से वातावरण में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। इसकी सुगंध वातावरण को शुद्ध और सकारात्मक बनाती है। यह घर में सुख-शांति और ऊर्जा का संचार करता है। वैज्ञानिक रूप से देखा जाए तो कपूर में जीवाणुनाशक गुण होते हैं जो वायुमंडल को स्वच्छ बनाते हैं।
स्वास्थ्य लाभ
कपूर की सुगंध मानसिक तनाव को दूर करती है। यह मन को शांत करने में सहायक होती है और ध्यान केंद्रित करने में मदद करती है। आयुर्वेद में भी कपूर का उपयोग कई औषधियों में किया जाता है। यह सर्दी-खांसी, सिरदर्द और अन्य कई रोगों में लाभकारी होता है।
कीट-नाशक गुण
कपूर को जलाने से मच्छर और कीड़े भागते हैं। विशेषकर मानसून या सर्दियों में जब मच्छरों का प्रकोप बढ़ता है, कपूर का प्रयोग एक प्राकृतिक उपाय के रूप में किया जाता है।
धार्मिक मान्यता
मान्यता है कि कपूर जलाने से पितृदोष, वास्तुदोष और ग्रह दोष का निवारण होता है। कई भक्त नित्य पूजा में कपूर जलाकर घर के कोनों में उसकी धूनी देते हैं, जिससे घर का वातावरण सकारात्मक रहता है।
निष्कर्ष:कपूर केवल एक धार्मिक वस्तु नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत उपयोगी सामग्री है। इसकी सुगंध न केवल पूजा में भक्ति का वातावरण तैयार करती है, बल्कि मानसिक, शारीरिक और पर्यावरणीय रूप से भी लाभकारी सिद्ध होती है।