21 अप्रैल 2025 को पोप फ्रांसिस के निधन ने न केवल कैथोलिक समुदाय को शोक में डुबो दिया, बल्कि पूरी दुनिया का ध्यान फिर से चर्च और उसके ऐतिहासिक फैसलों की ओर खींचा। अपने प्रगतिशील विचारों, सामाजिक समावेशिता और करुणा से भरपूर दृष्टिकोण के लिए पहचाने जाने वाले पोप फ्रांसिस ने चर्च के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा। लेकिन यह इतिहास केवल सुधारों और समावेशिता की दास्तानों से नहीं भरा है — इसमें कुछ ऐसे रहस्यमय और विवादास्पद प्रसंग भी हैं, जो समय-समय पर लोगों की जिज्ञासा जगाते रहते हैं। ऐसा ही एक किस्सा है 13वीं सदी के पोप ग्रेगरी IX और काली बिल्लियों से जुड़े “अभिशाप” का।
मध्ययुगीन यूरोप: अंधविश्वास, धर्म और डर का संगम
13वीं सदी का यूरोप वह दौर था जब कैथोलिक चर्च का प्रभाव अपने चरम पर था। धर्म केवल आध्यात्मिक मार्गदर्शन का साधन नहीं था, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक जीवन पर भी इसका गहरा असर था। पोप ग्रेगरी IX (कार्यकाल: 1227-1241) एक प्रभावशाली और सख्त विचारों वाले धार्मिक नेता थे। उन्होंने चर्च की ताकत को बढ़ाने और विधर्मियों के विरुद्ध कठोर नीतियाँ अपनाने का प्रयास किया।
यह वह समय भी था जब लोगों के मन में प्राकृतिक आपदाओं, बीमारियों और जीवन की कठिनाइयों को लेकर गहरी धार्मिक और अलौकिक मान्यताएँ थीं। जादू-टोना, शैतान और रहस्यमय प्राणियों को लेकर अंधविश्वास आम था।
“Vox in Rama” – पोप ग्रेगरी IX का रहस्यमय पापल बुल
सन् 1233 में पोप ग्रेगरी IX ने “Vox in Rama” नामक एक पापल बुल (आधिकारिक आदेश) जारी किया, जिसे मध्ययुगीन यूरोप के सबसे रहस्यमय दस्तावेजों में से एक माना जाता है। यह आदेश जर्मनी के माइंट्स क्षेत्र के आर्कबिशप और अन्य चर्च अधिकारियों को संबोधित था, जिसमें कथित “लूसिफेरियन” नामक विधर्मी संप्रदाय की गतिविधियों की जानकारी दी गई थी।
इस दस्तावेज़ में कहा गया था कि ये विधर्मी शैतान की पूजा करते हैं और उनके अनुष्ठानों में एक काले बिल्ले की मूर्ति या काली बिल्ली को शामिल किया जाता है। इसमें यह भी उल्लेख था कि शैतान कभी-कभी बिल्ली के रूप में प्रकट होता है।
हालाँकि, दस्तावेज़ का मुख्य उद्देश्य केवल इन विधर्मी गतिविधियों पर रोक लगाना था — इसमें कहीं भी बिल्लियों को व्यापक स्तर पर शैतानी घोषित कर के उनके विनाश का आह्वान नहीं किया गया था। परंतु उस समय के डर और अंधविश्वास से भरे वातावरण में, इस बुल की व्याख्या कई जगहों पर अतिरंजित और भ्रामक तरीके से की गई।
मिथक या सच्चाई: क्या सच में बिल्लियों पर टूटा था कहर?
“Vox in Rama” के बाद से, कई कथाएँ प्रचलित हुईं कि यूरोप में विशेषकर काली बिल्लियों को शैतान का प्रतीक मानकर मारा जाने लगा। कुछ लोककथाओं में यह तक कहा गया कि इन बिल्लियों को जला दिया जाता था या उनका उपयोग जादुई अनुष्ठानों में बलिदान स्वरूप किया जाता था।
और फिर जब 14वीं सदी में ब्लैक डेथ यानी प्लेग ने यूरोप में तबाही मचाई, तब एक सिद्धांत ने और जोर पकड़ा — कि चूहों को खाने वाली बिल्लियों की हत्या के चलते चूहे बढ़ गए और वे प्लेग फैलाने वाले पिस्सुओं के माध्यम से बीमारी को फैलाने लगे। यानी बिल्लियों का सफाया, बीमारी के प्रसार में एक अप्रत्यक्ष कारण बना।
ऐतिहासिक नजरिया: कितनी है इस कहानी में सच्चाई?
हालाँकि, आधुनिक इतिहासकार इस कथा को पूरी तरह सच नहीं मानते। डोनाल्ड एंगेल्स जैसे विद्वानों का मानना है कि बिल्लियों के खिलाफ कोई संगठित नरसंहार नहीं हुआ था। उनका कहना है कि Vox in Rama का प्रभाव कुछ सीमित क्षेत्रों तक ही था और यह कोई व्यापक आदेश नहीं था।
इसके विपरीत, कई मध्ययुगीन दस्तावेज़ों और चित्रों में बिल्लियों को सकारात्मक रूप में भी दर्शाया गया है। मठों और गांवों में उन्हें चूहों से बचाव के लिए पालना आम बात थी। यानी बिल्लियों को पूरी तरह से खलनायक बना देना ऐतिहासिक रूप से उचित नहीं है।
निष्कर्ष: जब अंधविश्वास ने रचा एक ऐतिहासिक भ्रम
पोप ग्रेगरी IX और “बिल्लियों के अभिशाप” की यह कहानी इतिहास और मिथक के बीच की उस धुंधली रेखा को दर्शाती है, जहाँ भय, अज्ञानता और शक्ति के मेल से कई असत्य लंबे समय तक जीवित रह जाते हैं। आज भी काली बिल्लियों को लेकर कई अंधविश्वास ज़िंदा हैं — चाहे वो रास्ता काटने वाली बात हो या बुरी किस्मत की आशंका।
हालाँकि, आधुनिक युग में, पोप फ्रांसिस जैसे नेताओं ने विज्ञान, तर्क और करुणा को आगे रखकर ऐसे अंधविश्वासों को तोड़ने की कोशिश की। उनकी विरासत हमें सिखाती है कि इतिहास की गलतियों से सीख लेकर भविष्य को ज्यादा समझदार और सहिष्णु बनाना ही सच्ची प्रगति है।