सरदारशहर, चूरु:राजस्थान के चूरू जिले का सरदारशहर नगर के बाहरी भाग में स्थित ‘अध्यात्म का शांतिपीठ का स्थान। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के दशमाधिशास्ता, प्रज्ञापुरुष, अध्यात्मवेत्ता, महान दार्शनिक आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के 13वें महाप्रयाण दिवस का सुअवसर और तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की सन्निधि में उपस्थित चतुर्विध धर्मसंघ। मंगलवार को प्रातः से ही ‘अध्यात्म का शांतिपीठ’ में देश के विभिन्न हिस्सों से लोगों के आने का क्रम जारी था।
मुख्य कार्यक्रम से पूर्व प्रातः आचार्यश्री अपने सुगुरु प्रज्ञापुरुष आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की समाधि स्थल पर पधारे और नीचे विराजमान होकर ध्यानस्थ हुए। ध्यानस्थ आचार्यश्री के आसपास उपस्थित साधु-साध्वियों की उपस्थिति और समाधि स्थल के बाहरी भाग में उपस्थित जनता अपने मन में मानों यह विचार कर रही थी कि एक सुशिष्य अपने सुगुरु से साक्षात्कार कर अंतरंग ऊर्जा की प्राप्ति कर रहा है।
कार्यक्रम में आचार्यश्री के आगमन से मुख्यनियोजिका साध्वी विश्रुतविभाजी ने श्रद्धालुओं को उद्बोधित किया। साध्वी संगीतप्रभाजी, साध्वी अक्षयप्रभाजी, समणी निर्मलप्रज्ञाजी व समणी रोहिणीप्रज्ञाजी ने अपनी आस्थासिक्त भावांजलि अर्पित की। साध्वीवृन्द ने गीत का संगान किया। आचार्यश्री के मंचासीन होने के उपरान्त साध्वीवर्या साध्वी संबुद्धयशाजी तथा मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने आचायश्री महाप्रज्ञजी के उनके व्यक्तित्व के विभिन्न रूपों को व्याख्यायित किया।
तदुपरान्त आचार्य महाप्रज्ञजी के परंपर पट्टधर, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनमेदिनी को पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि आगम वाङ्मय में महाप्रज्ञ शब्द प्राप्त होता है। यह शब्द आर्षवाणी से प्रदत्त है। परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी ने मुनि नथमलजी स्वामी (टमकोर) को ‘महाप्रज्ञ’ अलंकरण प्रदान किया। विशेष बात यह रही कि वह अलंकरण ही सार्थक बन नामकरण में परिवर्तित हो गया। आज के दिन उनका महाप्रयाण हो गया। टमकोर जैसे छोटे से गांव में उनका जन्म हुआ। सरदारशहर में ही तेरापंथ के आठवें आचार्य परम पूज्य कालूगणी से दीक्षित हुए। बाद में उनमें ज्ञान का ऐसा विकास हुआ वे मुनि नथमल से महाप्रज्ञ हो गए। मुनि अवस्था में विद्वान संतों में उनका नाम आता था। वे पहले निकाय सचिव जैसे महत्त्वपूर्ण पद को सुशोभित किया और आचार्य तुलसी के सहयोगी बने तो बाद में युवाचार्य और फिर अपने आचार्य द्वारा जीवित अवस्था में ही वे आचार्य पद पर आसीन होने वाले प्रथम आचार्य बन गए। युवाचार्यश्री महाप्रज्ञजी के कक्षा का एक विद्यार्थी मैं भी हूं। वे जब पढ़ाते थे तो वे उपाध्याय के रूप में नजर आते। आचार्य तुलसी के निर्देशन व आचार्य महाप्रज्ञजी के संपादन में आगम के बहुत कार्य हुए। आगम कार्य को यदि राष्ट्र कहें तो उसके राष्ट्रपति आचार्य तुलसी तो उसके प्रधानमंत्री आचार्य महाप्रज्ञजी थे। आचार्य महाप्रज्ञजी की समाधिस्थल पर पहली बार इस महाप्रयाण दिवस पर मैं मौजूद हूं। मैं परम पूज्य आचार्य महाप्रज्ञजी के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं और उनके युग में प्रारम्भ हुए आगम संपादन के कार्य को यदि सम्पन्नता तक पहुंचा पाएं हमारी उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
इस दौरान आचार्यश्री ने स्वरचित गीत ‘विभुवर के चरणों में श्रद्धासुमन चढ़ाए हम’ गीत का संगान किया। जैन विश्व भारती द्वारा आचार्य महाप्रज्ञजी के जीवनवृत्त ‘यात्रा अकिंचन की’ अंग्रेजी भाषा में अनुवादित पुस्तक पूज्यप्रवर के समक्ष लोकार्पित की गई। मुख्यनियोजिकाजी ने पुस्तक के संदर्भ में अपनी अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने पुस्तक के संदर्भ में कहा कि यह पुस्तक अंग्रेजी भाषा के जानकर लोगों के लिए अच्छी प्रेरणा प्रदान करने वाली बने। कार्यक्रम में मुनि रजनीशकुमारजी, साध्वी बसंतप्रभाजी, साध्वी गुप्तिप्रभाजी, साध्वी रोहितयशाजी, जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया, महामंत्री श्री विनोद बैद, श्री चैनरूप चण्डालिया, जय तुलसी फाउण्डेशन के मंत्री श्री सुरेन्द्र बोरड़, श्री सम्पत बच्छावत, श्री अशोक पींचा व आचार्य महाप्रज्ञ इण्टरनेशनल स्कूल के शिक्षक श्री कन्हैया मोहन ने भी अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए। मुनि राजकुमारजी, मुनि अनेकांतकुमारजी, साध्वी बसंतप्रभाजी की सहवर्ती साध्वियों, साध्वी मौलिकयशाजी व साध्वी भावितयशाजी, तेरापंथ कन्या मण्डल-सरदारशहर, तेरापंथ महिला मण्डल-सरदारशहर ने पृथक्-पृथक् गीत का संगान कर अपनी भावांजलि अर्पित की।