संस्कृत साहित्य शास्त्री, भागवत कथा, राम कथा, शिव पुराण, देवी भागवत, जलाराम कथा प्रवक्ता श्री नलिनभाई शास्त्री भारत के शीर्ष कथाकारों में से एक हैं जिन्हें 37 वर्षों का विशाल अनुभव है।
गुजरात में जन्में, भागवत विद्यापीठ सोला, संपूर्णानंद विश्वविद्यालय काशी से संस्कृत साहित्य शास्त्री की उपाधि से अलंकृत श्री नलिनभाई शास्त्री अपने सदगुरु भारतवर्ष में छोटे मोरारी बापू के नाम से प्रख्यात परमपूज्य श्री राम कृष्ण शास्त्री को अपना प्रेरणास्रोत मानते हैं। धार्मिक संगीत व् कथाओं के ज़रिये लोगों को कुमार्ग से सन्मार्ग की ओर बढ़ने हेतु प्रोत्साहित करने वाले नलिनभाई के विचार युवाओं को काफी प्रभावित करते हैं।
‘ऑन द डॉट’ (On the Dot) के मैनेजिंग एडिटर ऋषभ शुक्ला से एक्सक्ल्यूसिव बातचीत के दौरान पूछे गये प्रश्न- ‘व्यक्ति विशेष के सर्वांगीण विकास हेतु आध्यात्मिक विकास जरूरी है। इसके बावजूद लोग भौतिकवादिता के पीछे भाग रहे हैं। यह उचित है या अनुचित? इस गला काट प्रतिस्पर्धा के युग में लोग अपने जीवन में सही सामंजस्य कैसे स्थापित करें?’ का उत्तर बेहद धैर्यपूर्वक देते हुए नलिनभाई ने कहा, “अध्यात्म और भौतिकवाद दोनों ही अपने अपने स्थान पर खड़े हैं। वर्तमान समय में इंसान न केवल भौतिकवाद के सहारे प्रसन्न हो सकता है और न ही सिर्फ अध्यात्म के सहारे जीवन यापन कर सकता है। यदि आज हम इस साक्षात्कार को अपनी सुविधा के अनुसार फोन के माध्यम से सम्पूर्ण कर पा रहे है तो इसके पीछे भौतिकवाद से जुड़ी एक वस्तु ही है। अतः लोगों का भौतिकवाद के प्रति झुकाव पूरी तरह से गलत नहीं परंतु आध्यात्मिक ज्ञान व् विकास जीवन में एक चूर्ण, एक औषधि के समान होता है… हमारे सनातन धर्म के विभिन्न शास्त्र जैसे भागवत कथा, राम कथा आदि के बारे में जाने समझे और उसे अपने जीवन में उतारें, उनका अनुसरण करें तो भौतिकवाद व अध्यात्म के बीच सही सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है। संस्कृत भाषा में एक सूक्ति है “अति सर्वत्र वर्जयेत्” जिसका हिंदी शब्दार्थ है कि “अति करने से हमेशा बचना चाहिए”, अति का परिणाम हमेशा हानिकारक होता है। हमें किस वस्तु का प्रयोग किस प्रकार से करना है, यह बेहद महत्वपूर्ण है। सृष्टि विकास की ओर बढ़ रही है ऐसे में विभिन्न सुविधाओं को ईश्वर का प्रसाद समझकर उसका सदुपयोग करना ही सही मायने में एक सकारात्मक जीवन व्यतीत करने का मार्ग है।”
आध्यात्मिक उत्थान के लिए कौन सा मार्ग अपनाया जाना चाहिए, इस महत्वपूर्ण विषय पर प्रकाश डालते हुए नलिनभाई ने बताया कि आध्यात्मिक उत्थान के लिए सर्वप्रथम संस्कृत भाषा का अध्ययन अति आवश्यक है। यदि आप सनातनी हैं तो यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि आप विभिन्न शास्त्रों का पठन करें। वर्तमान समय की यदि बात करें तो श्रीमद्भगवद्गीता अत्यंत प्रासंगिक है। यदि कहा जाए कि श्रीमद्भगवद्गीता में आपके जीवन व् सांसारिक समस्याओं से जुड़े हर प्रश्न का उत्तर है, तो यह अतिशयोक्ति न होगा। इसे यदि आप एक न्यायिक ग्रन्थ मान कर पढ़ें और अपने जीवन में आत्मसात करें तो निश्चित रूप से आपका आध्यात्मिक उत्थान होगा।
वर्तमान समय में राजनीति की दिशा व् दशा के बार में अपने विचार व्यक्त करते हुए श्री नलिनभाई शास्त्री जी ने कहा कि राजनीति खराब नहीं, यह सेवा पर आधारित है। राजनीति में प्रवेश करने वाले व्यक्ति को सेवक ही माना जाता है।राजनीति में सेवा का भाव हो न कि संग्रह की होड़। राजनेता को लोकप्रिय होना चाहिए जो तभी संभव है जब आप सच्चे भाव से जन सेवा करें। यदि नकारात्मक पहलुओं की बात करें तो मेरा मानना है कि दोनों पक्ष किसी न किसी हद तक गलत हैं। आजकल राजनेता को अपनी जनता से प्रेम नहीं और जनता अपने राजनेता से हद से ज्यादा अपेक्षाएं रखने लगी है। यदि राजनेता और जनता दोनों अपने अधिकारों के साथ अपने कर्त्तव्यों का भी पूर्ण ईमानदारी से वहन करें तो समस्त राजनीतिक समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है।
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की विषम परिस्थिति पर अपने विचार साझा करते हुए नलिनभाई ने कहा कि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के पीछे जो मुख्य बात छिपी है वो यह है कि सत्ता की लालसा, ज़मीन, वर्चस्व, पद, प्रतिष्ठा की भूख मानव को राक्षस बना देती है। कोई भी धर्म, शास्त्र हमें हिंसा नहीं सिखाता। आज कोई भी देश सुरक्षित नहीं क्योंकि हर किसी को अपने क्षेत्र का विस्तार करना है जिसके लिए वो मानवता के चीथड़े उड़ाने में भी परहेज नहीं करते। ईश्वर से बस यही प्रार्थना है कि सभी को सदबुद्धि मिले और जिन लोगों ने इस भीषण युद्ध में अपने जीवन की आहुति दी है, परमात्मा उनकी आत्मा को शान्ति दे और दोनों देशों के बीच जल्द से जल्द शान्ति का माहौल स्थापित हो व् तीसरे विश्व युद्ध की स्थिति उत्पन्न न हो। हमारे देश भारत में रहते हुए हम विश्व कल्याण की बात कर सकते हैं क्योंकि हमें ‘वसुधैव कुटुम्बकम्‘ की विचारधारा पर अटूट विश्वास है जिसके अनुसार पूरा विश्व हमारा परिवार है। अतः पूरे विश्व में सुख शान्ति हो, बस यही प्रार्थना है।
अंत में विश्व कल्याण हेतु अपना सन्देश देते हुए श्री नलिनभाई ने कहा कि आप किसी भी धर्म, संप्रदाय से जुड़े हैं, अपने इष्ट को, अपने सदगुरु का सदैव स्मरण करें पर किसी भी धर्म के लिए द्वेष न रखें। सत्ता की लालच की तरह ही धार्मिक पथ पर भी कभी-कभी लोग खुद के धर्म को सर्वोपरि सिद्ध करने की अंधी दौड़ में जाने अनजाने में अधर्म का आश्रय ले लेते हैं जो गलत है और अस्वीकार्य है।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।
हमारे सभी वेदों उपनिषदों का तत्व यही है कि पृथ्वी, जल, नभ सभी जगह शान्ति बनी रहे व् सभी सुख से रहे, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े। मंगल कामनाएं।