झंडाला:भारत में अब मौसम में परिवर्तन स्पष्ट दिखाई दे रहा है। बसंत ऋतु भी विदाई ले चुकी है और अब मौसम में ग्रीष्म ऋतु का पदार्पण हो गया है। इस कारण सूर्य की प्रखरता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। अब लोग धूप से बचने का प्रयास कर रहे हैं। दिन चढ़ने के बाद घरों से निकलने में कतरा रहे हैं, किन्तु ऐसे में एक ऐसे महामानव जो जनकल्याण के लिए निरंतर यात्रायित हैं, वो हैं-जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी। अपनी धवल सेना के साथ जन-जन को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति की प्रेरणा व संकल्प प्रदान करने के साथ ही जीवन को उन्नत बनाने की विशेष प्रेरणा प्रदान करते हैं। ऐसे मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान समय में गुजरात की विस्तृत यात्रा कर रहे हैं। वर्तमान में आचार्यश्री महाश्रमणजी पाटन जिले में विहार व प्रवास कर रहे हैं। इस क्षेत्र में भी गर्मी का प्रभाव स्पष्ट दिखाई दे रहा है। सूर्योदय के कुछ देर बाद ही सूर्य किरणें लोगों को छांव की तलाश करने पर मजबूर कर दे रही हैं, किन्तु समता के साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी निरंतर विहार कर रहे हैं।
सोमवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने कोरडा से गतिमान हुए। रामनवमी के अवसर पर कोरडा गांव में निकाली गई शोभायात्रा आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित होकर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया था। यह ग्रामीणों का उत्साह और आचार्यश्री के प्रति श्रद्धा को दर्शाने वाला था। आज विहार के दौरान भी ग्रामीणों ने आचार्यश्री के दर्शन कर मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। आचार्यश्री लगभग साढे नौ किलोमीटर का विहार कर झंडाला गांव मंे स्थित झंडाला प्राथमिकशाला में पधारे, जहां लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया।
विद्यालय परिसर में समुपस्थित श्रद्धालुजनों को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के व्यवहार में धर्म होना चाहिए। जिस प्रकार पानी में शक्कर मिलाई हुई है तो उस पानी को पीने से मिठास का अनुभव होता है। एक पानी में नमक डाल दिया गया है तो उस पानी को पीने से खारापन का अनुभव होता है। पानी तो पानी है, किन्तु शक्कर का योग मिला तो मीठा और नमक का योग मिला तो पानी खारा हो गया। उसी प्रकार मानव के व्यवहार में अहिंसा, संयम, ईमानदारी जैसे धर्म जुड़ जाता है तो व्यवहार धर्मयुक्त हो जाता है और हिंसा, झूठ, बेईमानी रूपी अधर्म जुड़ जाता है तो व्यवहार अधार्मिक हो जाता है।
जीवन को पानी पानी मान लिया जाए तो गलत, बुरे और अधार्मिक व्यवहार से युक्त लोगों का जीवन पापमय और धार्मिक व्यवहार से युक्त मानव का जीवन धार्मिकता से युक्त हो सकती है और जीवन भी अच्छा हो सकता है। जैसे किसी शुद्ध साधु को सुपात्र दान देना का प्रयास होना चाहिए। सांसारिक जीवन में जितना संभव हो सके, कोई आ जाए तो उसी मदद का भी प्रयास किया जा सकता है। जो आदमी ज्ञान, चारित्र अथवा उम्र से भी बड़ा हो तो उसके प्रति विनय का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। गुरुजनों के प्रति श्रद्धा व प्राणियों को अपनी ओर से कष्ट नहीं पहुंचाने की भावना का विकास हो। दूसरों का आध्यात्मिक हित करना बहुत बड़ा धर्म और किसी दूसरों को कष्ट देना बहुत बड़ा पाप होता है। परोपकार पुण्य और प्रताड़ित करना पाप का कार्य है। ज्ञान को दूसरों को देने का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान के घमण्ड से बचने का प्रयास करना चाहिए। जब भी अवसर मिले तो सत्संगति करने का प्रयास करना चाहिए। बच्चों में ज्ञान के साथ खूब अच्छे संस्कार की शिक्षा मिले।
आचार्यश्री के स्वागत में श्री वैभव शाह, सुश्री पायल शाह, झंडाला के सरपंच श्री पोपटभाई ठाकुर, निवृत्त आचार्य श्री अम्बादान गढवी, सरस्वती नगर स्कूल के आचार्य श्री भरतभाई मकवाणा, झंडाला प्राथमिकशाला के आचार्य श्री जीतूभाई पटेल, श्री कांतिभाई शाह और श्री केशव भाई शाह ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी।