राजकोट: गुजरात की धरा को धन्य बनाने, आर्थिक रूप से समृद्ध प्रदेश को आध्यात्मिक संपदा से परिपूर्ण बनाने के लिए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ गुजरात के अनेक जिलों, गांवों, कस्बों, नगरों व शहरों में यात्रा-प्रवास कर रहे हैं। आचार्यश्री का यह प्रवास व यात्रा गुजरात के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले श्रद्धालुओं के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण मानव जाति को मंगल मार्गदर्शन प्रदान कर रही है। ऐसी मंगलकारी यात्रा के साथ मंगलवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी राजकोट शहर की ओर गतिमान हुए। अपने आराध्य के मंगल पदार्पण का प्रसंग राजकोट की श्रद्धालु जनता को हर्षविभोर बना रहा था। केवल तेरापंथ समाज ही नहीं, राजकोट का आम जनमानस भी महामानव के अभिनंदन को लालायित नजर आ रहा था। मंगलवार के दिन राजकोट में चारोंओर मंगलमय वातावरण छाया हुआ था।
मंगलवार को प्रातःकाल शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ सोखड़ा से गतिमान हुए तो राजकोट के काफी संख्या में श्रद्धालु अपने आराध्य के चरणों का अनुगमन करने के लिए पहुंचे हुए थे। जैसे-जैसे शांतिदूत के चरण बढ़ते जा रहे थे, राजकोट के श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ती जा रही थी। बुलंद जयघोष में जन-जन का उत्साह नजर आ रहा था। राजकोट शहर की सीमा में प्रवेश करते मानों श्रद्धा का सैलाब उमड़ आया। स्वागत जुलूस में स्वामीनारायण के स्वामी त्यागवल्लभजी आचार्यश्री की अगवानी में काफी पहले ही पहुंच गए थे और वे आचार्यश्री के साथ लगभग आठ किलोमीटर पैदल भी चले। स्थान-स्थान पर मुस्लिम समुदाय के लोग भी आचार्यश्री का स्वागत कर कर रहे थे। स्कूली बच्चे व एनसीसी के कैडेट भी पंक्तिबद्ध होकर आचार्यश्री का अभिनंदन कर रहे थे। भव्य स्वागत जुलूस के मध्य जन-जन पर आशीषवृष्टि करते हुए शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी राजकोट शहर में स्थित आत्मीय युनिवर्सिटी में पधारे। आचार्यश्री का राजकोट का त्रिदिवसीय प्रवास इसी युनिवर्सिटी परिसर मंे निर्धारित है।
युनिवर्सिटी परिसर में बने वर्धमान समवसरण में प्रवेश के साथ ही त्रिदिवसीय वर्धमान महोत्सव का आयोजन भी प्रारम्भ हो गया। आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ वर्धमान महोत्सव के प्रथम दिवस के कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा-सौराष्ट्र के अध्यक्ष श्री संजय पोरवाल ने पूज्यप्रवर के स्वागत में अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। जैन समाज की ओर से श्री चंन्द्रकांतभाई सेठ ने तेरापंथ महिला मण्डल-राजकोट ने स्वागत गीत का संगान किया।
वर्धमान महोत्सव के प्रथम दिवस पर साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने भी समुपस्थित जनता को सम्बोधित करते हुए तेरापंथ के विकास का वर्णन किया। वर्धमान महोत्सव के प्रथम दिन भगवान वर्धमान के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतमयी वाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आज राजकोट में त्रिदिवसीय वर्धमान महोत्सव का प्रारम्भ हुआ है। हमारे धर्मसंघ में माघ शुक्ला सप्तमी को मुख्यरूपेण मर्यादा महोत्सव का आयोजन होता है। उसका प्रारम्भ हमारे धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य परम पूज्य श्रीमज्जयाचार्यजी ने किया था। सौ से अधिक वर्ष हो गए हैं। परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी के समय में इस वर्धमान महोत्सव का प्रारम्भ हुआ था। वर्धमान का अर्थ बढ़ता हुआ होता है। हमारे अंतिम तीर्थंकर भगवान वर्धमान (महावीर) हुए। उनके नाम से जुड़ा हुआ यह महोत्सव है। मर्यादा महोत्सव से पहले साधु-साध्वियों के बढ़ने का क्रम शुरु हो जाता है तो इस दृष्टि से भी वर्धमानता की बात होती है, इसका यह संदर्भ यह भी लिया जा सकता है कि धर्मसंघ में साधु-साध्वियों और समणियों की संख्या बढ़े, ऐसा प्रयास मुख्यतया करने का प्रयास किया जा सकता है, यह ध्यातव्य विषय है। संख्या वृद्धि के साथ गुणवत्ता की वृद्धि भी आवश्यक है। क्वांटिटी के साथ-साथ क्वालिटी का विकास होना भी अपेक्षित होता है। कितने-कितने साधु-साध्वियां कम अवस्था में भी तपस्या कर लेते हैं।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि साधु-साध्वी ही नहीं, श्रावक-श्राविका समाज भी ज्ञान के क्षेत्र में वर्धमान बने। ज्ञान का बहुत महत्त्व है। ज्ञान के विकास का प्रयास होना चाहिए। कितने-कितने साधु-साध्वियां और समणियां ज्ञान के विकास में लगे हुए भी दिखाई दे रहे हैं। महाप्रज्ञ श्रुताराधना पाठ्यक्रम से अनेक लोग जुड़े हुए हैं। विशेष रूप से साधु-साध्वियां और समणियां भी काफी संख्या में जुड़ी हुई हैं। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल द्वारा चलाया जाने वाला पाठ्यक्रम भी साधु-साध्वियां व समणियों तथा अन्य लोगों के लिए भी ज्ञान के विकास सशक्त माध्यम बन रही है। आदमी को निरंतर ज्ञान के विकास का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान को दुराग्रह से नहीं, बल्कि आग्रहभाव से ग्रहण करने का प्रयास हो। जो सही नहीं हो, उसके प्रति भी दुराग्रह नहीं रखना चाहिए। क्रोध, मान, माया और लोभ रूपी कषायों से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान की दृष्टि से वर्धमान रहें, सम्यक् दर्शन भी वर्धमान हो। साधुपना निर्मल रहे, अध्यात्म की आराधना अच्छी हो। आचार्यश्री ने उपस्थित जनता को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति की पावन प्रेरणा प्रदान की।