डेस्क:इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संभल जामा मस्जिद के एएसआई सर्वे पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है और एएसआई सर्वे के आदेश के खिलाफ इंतजामिया कमेटी की पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा कि सर्वे कमिश्नर के लिए अर्जी देने के साथ इस मामले में दीवानी वाद भी पोषणीय है। कोर्ट ने इंतजामिया कमेटी के इस तर्क को भी स्वीकार नहीं किया कि दीवानी मुकदमा 1991 के पूजा स्थल अधिनियम के प्रावधानों से बाधित है।
यह आदेश न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने सोमवार को खुली अदालत में सुनाया। कोर्ट ने जामा मस्जिद इंतजामिया कमेटी, हरि शंकर जैन और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के वकीलों को सुनने के बाद गत 13 मई को निर्णय सुरक्षित कर लिया था। जामा मस्जिद की इंतजामिया कमेटी की पुनरीक्षण याचिका में संभल की दीवानी अदालत के आदेश को चुनौती दी गई थी। दीवानी अदालत ने अधिवक्ता आयुक्त के माध्यम से पुरातात्विक सर्वेक्षण के साथ वाद को कायम रखने का भी निर्देश दिया था।
हरि शंकर जैन और सात अन्य ने सिविल जज सीनियर डिवीजन संभल की अदालत में दीवानी मुकदमा दाखिल कर कहा कि संभल में जामा मस्जिद एक मंदिर को ध्वस्त करने के बाद बनाई गई थी। यह भी कि मस्जिद मुगल सम्राट बाबर ने 1526 में संभल में हरिहर मंदिर को ध्वस्त करने के बाद बनवाई थी। हाईकोर्ट ने पहले मूल वाद की दीवानी अदालत की आगे की कार्यवाही पर अगली तारीख तक रोक लगा दी थी। आज के निर्णय से यह अंतरिम आदेश भी समाप्त कर दिया गया। दीवानी मुकदमे में वादी ने इस आशय की घोषणा की मांग की थी कि उन्हें हरिहर मंदिर में प्रवेश का अधिकार है, जो संभल जिले के मोहल्ला कोट पूर्वी में स्थित कथित जामा मस्जिद है।
इंतजामिया कमेटी की पुनरीक्षण याचिका में संभल की दीवानी अदालत के समक्ष पूरी कार्यवाही के साथ वाद की पोषणीयता को चुनौती देते हुए इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के की गई थी। पुनरीक्षण याचिका में आरोप लगाया गया था कि दीवानी मुकदमा 19 नवंबर 2024 की दोपहर को दाखिल किया गया था और कुछ ही घंटों के भीतर पीठासीन अधिकारी ने एक अधिवक्ता आयुक्त नियुक्त किया और उसे मस्जिद में एक प्रारंभिक सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया, जो उसी दिन यानी 19 नवंबर को और फिर 24 नवंबर 2024 को किया गया था। दीवानी अदालत ने यह भी निर्देश दिया था कि सर्वेक्षण की रिपोर्ट 29 नवंबर तक उसके समक्ष दाखिल की जाए।