सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर दायर जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया। मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने स्पष्ट किया कि भारत की अदालतें किसी विदेशी देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं।
याचिका में क्या था?
लुधियाना स्थित भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा महोत्सव समिति के अध्यक्ष और इस्कॉन मंदिर संचालन बोर्ड के उपाध्यक्ष राजेश ढांडा ने यह जनहित याचिका दायर की थी। इसमें बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों को रोकने और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की गई थी। साथ ही, भारत सरकार से बांग्लादेश में रह रहे हिंदुओं की सहायता करने और वहां की स्थिति पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाने का अनुरोध किया गया था। इसके अलावा, बांग्लादेश से भारत आए हिंदुओं के लिए नागरिकता आवेदन की समय सीमा बढ़ाने की भी अपील की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
सुनवाई के दौरान CJI संजीव खन्ना ने स्पष्ट किया, “यह विदेशी मामला है और यह अदालत दूसरे देश के मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।” उन्होंने कहा कि किसी पड़ोसी देश के आंतरिक मामलों में दखल देना उचित नहीं होगा। इस टिप्पणी के बाद, याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने याचिका वापस ले ली, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।
बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले
बांग्लादेश में हाल के वर्षों में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमलों की घटनाएं बढ़ी हैं। रिपोर्टों के अनुसार, 5 अगस्त से 20 अगस्त 2024 के बीच बांग्लादेश के 49 जिलों में हिंदुओं पर कुल 1,068 हमले हुए थे। इसके अलावा, दिसंबर 2024 तक यह संख्या बढ़कर 2,200 से अधिक हो गई थी। इन हमलों में हिंदू मंदिरों, घरों और दुकानों को नुकसान पहुंचाया गया, साथ ही लूटपाट और हत्याओं की घटनाएं भी सामने आईं।
भारत सरकार की प्रतिक्रिया
अब तक भारत सरकार ने इस मामले पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। विदेश मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि वे पड़ोसी देशों के मामलों पर कूटनीतिक स्तर पर बातचीत के जरिए समाधान निकालने का प्रयास करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से स्पष्ट हो गया है कि भारत की न्यायपालिका किसी दूसरे देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने से परहेज करती है।