कनेरा, अहमदाबाद (गुजरात) : 55 हजार किलोमीटर से अधिक की पदयात्रा कर देश–विदेश में अहिंसा, करुणा, मैत्री का संदेश देने वाले मानवता के मसीहा युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी अपनी अणुव्रत यात्रा के साथ सतत जनोद्धार करते हुए प्रवर्धमान है। आज सुबह आचार्यश्री ने असलाली ग्राम से मंगल विहार किया। विहार के दौरान नजर आती विशाल फैक्ट्रियां आदि इस क्षेत्र के औद्योगिक परिदृष्य को दर्शा रही थी। हाईवे पर निरंतर वाहनों का आवागमन में भी समत्व भाव से शांतिदूत गुरुदेव निरंतर गतिमान थे। लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर पुज्यप्रवर कनेरा के दलिया इंस्टिट्यूट ऑफ डिप्लोमा स्टडीज के कैंपस में पधारे। इस दौरान मार्ग में खड़े कुछ स्कूली विद्यार्थियों को गुरुदेव ने प्रेरणा पाथेय प्रदान किया। कैम्पस में गुरुदेव के पदार्पण से आल्हादित प्रबंधकों ने शांतिदूत का भावभीना अभिनंदन किया।
प्रवचन सभा में उद्बोधन प्रदान करते हुए आचार्य श्री ने कहा– हमारे शरीर की इन्द्रियां हमारे ज्ञान व भोग दोनों का साधन होती है। मनुष्य विकसित प्राणी है क्युकी उसे पांचों इंद्रियां प्राप्त है। इन पांचों इंद्रियों का संयम करने का हमे प्रयास करना चाहिए। असंयम सदा नुकसान करने वाला होता है। अति किसी भी कार्य के लिए अच्छी नहीं होती। संयम सुरक्षा है और असंयम असुरक्षा। इन्द्रियों का असंयम शरीर व आत्मा दोनों के लिए अहितकर होता है।
गुरुदेव ने आगे कहा कि पाँचों इन्द्रियों का संयम रखते हुए उनका सदुपयोग करने की दिशा में आगे बढ़े। कानों का उपयोग प्रवचन आदि अच्छी बातों के श्रवण में लगाए। आँखों से सत्साहित्य व आगम वाणी का वाचन हो। इसे ही नाक, जिव्हा और स्पर्श इंद्रिय का सदुपयोग हो। हमारा मन का यह घोड़ा इन्द्रियों के संयम से दुष्ट घोड़ा बन उत्पथ में ले जाने वाला न बने। हम इन्द्रियों को नियंत्रित करने के लिए प्रयास व प्रयोग करते रहें। सर्वेन्द्रिय संयम बाहर से अंदर जाने की एक यात्रा है।
इस अवसर पर गुरुदेव की प्रेरणा से उपस्थित विद्यार्थियों ने सद्भावना, नैतिकता एवं नशा मुक्ति के संकल्पों को स्वीकार किया। स्थानीय प्रिंसिपल डॉ. के. जी. मेहता ने अणुव्रत अनुशास्ता के स्वागत में अपने विचार रखे।