डेस्क:पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने बुधवार को एक बार फिर भारत से बातचीत की इच्छा जाहिर की। अजरबैजान के लाचिन शहर में आयोजित पाकिस्तान-तुर्किए-अजरबैजान त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए शरीफ ने कहा कि कश्मीर, पानी और आतंकवाद जैसे जटिल मुद्दों का समाधान संवाद से ही संभव है। इस सम्मेलन में तुर्किए के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन और अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव भी मौजूद थे।
शरीफ ने कहा, “हमें शांति के लिए साथ बैठकर बातचीत करनी चाहिए। कुछ ऐसे अहम मुद्दे हैं जिन पर तुरंत ध्यान देने और सौहार्दपूर्ण समाधान की जरूरत है, जिनमें सबसे प्रमुख है कश्मीर, जो संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों और कश्मीरियों की इच्छाओं के अनुसार हल होना चाहिए।”
यह इस सप्ताह के भीतर शरीफ का भारत के प्रति दूसरा संवाद प्रस्ताव है। सोमवार को ईरान की राजधानी तेहरान में भी उन्होंने इसी तरह की टिप्पणी करते हुए कहा था कि पाकिस्तान ‘सभी विवादों के समाधान’ के लिए भारत से बात करने को तैयार है।
प्रधानमंत्री शरीफ ने भारत से व्यापार बहाल करने की भी इच्छा जताई। साथ ही, भारत द्वारा सिंधु जल संधि को आंशिक रूप से निलंबित रखने के फैसले की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि यह पाकिस्तान के किसानों और नागरिकों के लिए जीवनरेखा है।
उन्होंने आतंकवाद पर भी टिप्पणी करते हुए कहा, “अगर भारत ईमानदारी से आतंकवाद के मसले पर बात करना चाहता है, तो पाकिस्तान भी संवाद के लिए तैयार है।”
भारत का दोटूक जवाब
भारत ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि वह पाकिस्तान के साथ तब तक किसी प्रकार की सामान्य बातचीत के लिए तैयार नहीं है, जब तक कि दो मुख्य मुद्दों – पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) की वापसी और आतंकवाद – पर ठोस कार्रवाई नहीं होती।
भारतीय विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने साफ किया कि पाकिस्तान पहले अपनी धरती से संचालित आतंकी ढांचे को खत्म करे और पीओके से अवैध कब्जा हटाने की दिशा में कदम बढ़ाए, तभी कोई सार्थक संवाद संभव है।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद बढ़ा तनाव
यह बयानबाज़ी ऐसे समय पर हो रही है जब भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया सैन्य तनाव चरम पर रहा है। 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले में 26 लोगों की जान जाने के बाद भारत ने 6 मई की रात ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान और पीओके में मौजूद आतंकी ठिकानों पर सटीक और योजनाबद्ध हमले किए थे।
इसके जवाब में पाकिस्तान ने 8, 9 और 10 मई को भारत के सैन्य ठिकानों पर हमलों की कोशिश की, लेकिन भारतीय सेना ने हर बार उन्हें मुंहतोड़ जवाब दिया।
अंततः 10 मई को दोनों देशों के सैन्य अभियान महानिदेशकों (DGMO) के बीच हॉटलाइन पर बातचीत के बाद युद्धविराम की सहमति बनी और दोनों पक्षों ने सैन्य कार्रवाइयों को रोकने पर सहमति जताई।
कूटनीति या रणनीति?
अब शहबाज शरीफ की ओर से लगातार बातचीत की पेशकश को कूटनीतिक नरमी के रूप में देखा जा रहा है या फिर यह अंतरराष्ट्रीय दबाव में किया गया बयान है, इस पर विश्लेषकों की राय बंटी हुई है। एक ओर पाकिस्तान बातचीत की बात कर रहा है, वहीं दूसरी ओर भारत उस पर आतंक के खिलाफ ठोस कार्रवाई की शर्तें दोहराता रहा है।
स्थिति अभी भी संवेदनशील बनी हुई है और देखना होगा कि इस बार बातचीत की पेशकश सचमुच किसी ठोस पहल की ओर बढ़ेगी या यह भी बीते वर्षों की तरह एक और खोखला बयान बनकर रह जाएगी।