कोरडा:जन-जन के मानस को आध्यात्मिक अभिसिंचन देने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी रविवार को प्रातःकाल सिधाड़ा से अपनी धवल सेना के साथ गतिमान हुए। आचार्यश्री की यात्रा अब धीरे-धीरे डीसा की ओर बढ़ रही है, जहां वर्ष 2025 की अक्षय तृतीया आयोजित है। उससे पहले आचार्यश्री वाव पथक क्षेत्र को भी पावन बनाएंगे। आचार्यश्री के आगमन की खुशी में इस क्षेत्र के श्रद्धालु हर्षविभोर बने हुए हैं और आराध्य के मंगल पदार्पण की प्रतीक्षा कर रहे हैं। लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी कोरडा गांव में स्थित शांतिधाम आश्रम में स्थित सच्चिदानंदजी विद्यालय में पधारे। इस आश्रम और विद्यालय से जुड़े लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया।
विद्यालय परिसर में आयोजित प्रातःकाल के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित श्रद्धालु जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आज चैत्र शुक्ला नवमी है, जिसे रामनवमी के रूप में भी जाना जाता है। इसके साथ भिक्षु नवमी भी है। आचार्यश्री भिक्षु हमारे तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य आचार्य हुए हैं। तेरापंथ के प्रारम्भ होने से पूर्व उन्होंने आज के दिन अभिनिष्क्रमण किया था। आज के दिन उन्होंने एक आम्नाय से निष्क्रमण किया था। वे राजस्थान के बगड़ी गांव में हुआ था। इस अभिनिष्क्रमण से हम सभी यह प्रेरणा लें कि हम सभी प्रभु के पथ पर चलते रहें।
आचार्यश्री भिक्षु स्वामी ने क्रांति की। उसके लिए उनके भीतर मजबूत मनोबल था तो उन्होंने एक स्वस्थ क्रांति की। आदमी को शांति में भी रहने का प्रयास करना चाहिए। जहां तक संभव हो सके, आदमी को शांति में रहने का प्रयास करना चाहिए। किसी से फालतू लड़ाई-झगड़ा नहीं होना चाहिए। आवश्यकता हो तो शांति के साथ क्रांति की जा सकती है। क्रांति भी शक्ति मांगती है। शक्ति के बिना क्रांति नहीं हो सकती है।
आज रामनवमी है। रामराज्य चाहिए तो सभी को जागरूक रहना चाहिए। जहां सभी सुखमय रहें। भगवान राम का वर्णन जैनिज्म में भी आता है। रामनवमी और भिक्षु नवमी भी है। आज से लगभग 265 वर्ष पूर्व उन्होंने बगड़ी में अभिनिष्क्रमण किया तो उन्हें कठिनाई भी झेलनी पड़ी। श्मसान में रहना पड़ा तो भी शांति भाव के साथ रह गए। भिक्षु स्वामी का उनका जीवनकाल के आठवें दशक में थे। जीवन के कितने प्रसंग हैं। उन्होंने कितने विरोधों को झेला था। उनमें बहुत ही साहस रहा होगा। ऐसे भिक्षु स्वामी के लिए बार-बार अभिवंदन, वंदन, नमन है। उनकी परंपरा में आज 700 से अधिक साधु-साध्वियां हैं। दस आचार्यों का दशक सम्पन्न हो गया है। दूसरे दशक की प्रथम पीढ़ी चल रही है। हम सभी के भीतर संकल्प शक्ति पुष्ट रहे।
आचार्यश्री के स्वागत में श्री अमृत शाह, दीपाली पारेख, श्री यश शाह, श्री रमणीकभाई शाह, श्री अरविंदभाई दोसी, शांतिधाम के मालिक श्री युवराजसिंह जाडेजा ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी।