नई दिल्ली:हमारे देश में मांगलिक कार्यक्रमों में शगुन का लिफाफा देने की परंपरा है। शादी-ब्याह हो या मुंह दिखाई, गृह प्रवेश हो या कोई अन्य कार्यक्रम, लोग अक्सर शगुन के तौर पर मेजबान को कुछ रुपये देकर जाते हैं। आपने नोटिस किया होगा कि शगुन में हमेशा 51, 101, 201, 501 रुपये ही दिए जाते हैं। यानी कि 50, 100, 200, 500 रुपये नहीं दिए जाते, बल्कि इनमें एक रुपया बढ़ाकर शगुन दिया जाता है। आखिर शगुन की राशि में इस एक रुपये का महत्व क्या है? क्यों शगुन में 100, 200, 500 रुपये के बजाय 101, 201 या 501 रुपये दिए जाते हैं? आइए जानते हैं इसके पीछे की वजह।
जीरो यानी शून्य को अंतिम माना जाता है। यानी कि किसी भी रकम में अगर शून्य जुड़ जाए तो वह अंतिम हो जाती है। माना जाता है कि अगर शून्य के आधार पर शगुन दिया जाए, तो सामने वाले के रिश्ते पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वहीं, एक को संख्या की नई शुरुआत के रूप में माना जाता है। इसलिए शगुन देते वक्त राशि में एक रुपये को तरजीह दी जाती है।
गणितीय तौर पर देखा जाए तो 50, 100, 500, 1000 जैसी संख्या विभाज्य होती है। वहीं 101, 1001 जैसी संख्या अभाज्य होती हैं। यानी कि उन्हें विभाजित नहीं किया जा सकता है। शगुन एक तरह का आशीर्वाद होता है जो एक व्यक्ति अपने किसी प्रिय को देता है। हम अपने आशीर्वाद को विभाजित नहीं करना चाहते हैं, इसलिए शगुन 101 रुपये का दिया जाता है।
जैसे कि ऊपर बताया गया है कि एक शून्य को अंत और एक को आरंभ माना जाता है। इसलिए शगुन में एक रुपये को निरंतरता का प्रतीक माना जाता है। 100 एक अंत राशि है, वहीं उसमें एक रुपया जोड़ दिया जाए तो 101 बन जाता है और वह एक प्रारंभ राशि बन जाती है। माना जाता है कि शगुन देने वाले और प्राप्त करने वाले के बीच गहरे संबंध बने रहते हैं। उनका रिश्ता निरंतर चलता रहता है।