हिंदू धर्म में शनि प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है, जो शनिवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है। यह व्रत भगवान शिव, माता पार्वती और शनिदेव की पूजा के लिए किया जाता है, और इसे जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति, समस्याओं से मुक्ति और कष्टों का निवारण करने वाला माना जाता है। शनि प्रदोष व्रत के दिन शिव पूजन के साथ व्रत कथा का पाठ किया जाता है।
शनि प्रदोष व्रत कथा:
एक समय की बात है, एक निर्धन ब्राह्मण की पत्नी दरिद्रता से अत्यंत दुखी हो शांडिल्य ऋषि के पास गई और बोली, “हे महामुने! मैं बहुत दुखी हूं, मेरे दोनों पुत्र आपकी शरण में हैं। मेरे ज्येष्ठ पुत्र का नाम धर्म है, जो एक राजपुत्र है, और छोटे पुत्र का नाम शुचिव्रत है। हम दरिद्र हैं, आप ही हमारा उद्धार कर सकते हैं।” ऋषि शांडिल्य ने उन्हें शिव प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। सभी तीनों ने मिलकर प्रदोष व्रत का संकल्प लिया।
कुछ समय बाद, शुचिव्रत नामक लड़के को एक तालाब के पास स्वर्ण कलश मिला, जिसमें धन भरा हुआ था। वह इसे लेकर घर लौट आया और उसकी मां ने धन देखकर शिव महिमा का वर्णन किया। वह माता ने दोनों पुत्रों को आधा-आधा बांटने को कहा, लेकिन धर्म नामक राजपुत्र ने कहा, “मुझे यह धन शिव और पार्वती की कृपा से मिलेगा, मैं इसे नहीं ले सकता।” वह शंकर जी की पूजा में लग गया।
काफी समय बाद, दोनों भाई एक साथ प्रदेश भ्रमण के लिए गए, जहां उन्होंने गंधर्व कन्याओं को खेलते देखा। शुचिव्रत ने कहा, “भैया, हमें आगे नहीं जाना चाहिए,” लेकिन राजपुत्र अकेला ही गंधर्व कन्याओं के पास चला गया। वहां एक सुंदर गंधर्व कन्या ने राजपुत्र को देख मोहित होकर कहा, “हे राजपुत्र! तुम जहां हो वहां से एक सुहावना वन है, तुम वहां जाओ और उसकी शोभा देखो।”
राजपुत्र और गंधर्व कन्या के बीच वार्तालाप हुआ, और कन्या ने मोतियों का हार राजपुत्र के गले में डाल दिया। राजपुत्र ने कहा, “मैं निर्धन हूं, मैं यह हार स्वीकार नहीं कर सकता।” गंधर्व कन्या ने कहा, “मैं वही करूंगी जो मैंने कहा था, अब तुम अपने घर लौट जाओ।”
राजपुत्र ने घर जाकर शुचिव्रत को सब कुछ बताया। तीसरे दिन, दोनों राजपुत्र उसी स्थान पर पहुंचे, जहां गंधर्व राज और उसकी कन्या आ चुके थे। गंधर्व राज ने कहा, “मैं कैलाश पर गया था, जहां शंकर जी ने मुझसे कहा कि धर्मगुप्त नामक राजपुत्र, जो अब निर्धन है, परम भक्त है। मैं उनकी सहायता करूंगा।”
इसके बाद गंधर्व राज ने उस कन्या का विधिवत विवाह किया। राजपुत्र को विशेष धन और सुंदर गंधर्व कन्या मिल गई, और वह शत्रुओं को हराकर राज्य सुख भोगने लगा। इस प्रकार, भगवान शिव की कृपा से उसे जीवन में समृद्धि और सफलता प्राप्त हुई।