वाव-थराद (गुजरात) : जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी के पावन प्रवास से वाव धरा पर आध्यात्मिक उल्लास उमंग छाया हुआ है। विशाल वर्धमान समवसरण में गुरुदेव की नित्य मंगल देशना का श्रवण कर हर जाति, वर्ग, संप्रदाय के भाई–बहन ज्ञान गंगा में डुबकी लगा रहे है। विभिन्न कार्यक्रम आदि भी समायोजित हो रहे है इसी कड़ी में आज आचार्य प्रवर के पावन सन्निधि में जैन श्वेतांबर तेरापंथ महासभा के उपक्रम बेटी तेरापंथ की के तहत “डिकरी वाव तेरापंथ नी” सम्मेलन का आयोजन हुआ। जिसमें संभागी बहनों का उत्साह देखते ही बन रहा था। आराध्य के समक्ष प्रस्तुति कर बेटियां भी अपने भीतर आह्लाद की अनुभूति कर रही थी।
धर्म सभा में श्रद्धालुओं को प्रवचन प्रदान करते हुए आचार्य प्रवर ने कहा – जैन आगम में पांच प्रकार के शरीर बताए गए है। देवों और नारकी में वैक्रिय शरीर होता है। हमें औदारिक शरीर प्राप्त है। कुछ कुछ तिर्यंच मनुष्यों के पास भी वैक्रिय शरीर हो सकता है। आहारक शरीर किसी विशिष्ट लब्धि धारी साधुओं के पास हो सकता है। तेजस और कार्मण शरीर प्रत्येक संसारी प्राणी के होते है। तत्व सिद्धांत की दृष्टि से यह इतने साथ होते है की एक जीवन की समाप्ति के बाद दूसरे जीवन जाने की अंतराल गति में भी यह साथ रहते है। यह पांच शरीर जैन वांग्मय में बताए गए है। हमारे पास यह औदारिक शरीर है और पांच इंद्रियां प्राप्त है। श्रोत यानी कान हमारे ज्ञान का एक अच्छा माध्यम बनती है। सुनकर भी कितना ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। वक्ता और श्रोता की जोड़ी होती है। अच्छा वक्ता हो और अच्छा श्रोता हो तो दोनों में ज्ञान का आदान प्रदान हो सकता है। श्रोता समीक्षात्मक बुद्धि से सुने, भीतर में तर्क, जिज्ञासा हो तो सही तत्व का ग्रहण हो सकता है। प्रवचन सुनने से कितने लाभ हो सकते है। आजकल तो यूट्यूब आदि सोशल मीडिया माध्यम भी है। दूर बैठे प्रवचन आदि सुना जा सकता है। प्रवचन सुन रहे है साथ में सामायिक है तो डबल लाभ है, और यहां बैठे है तो कितने सांसारिक कार्यों से भी बचे हुए रह सकते है। सुनते सुनते नए तत्व भी ज्ञात होते है और पूर्व का ज्ञान भी पक्का होता है। कई बार प्रवचन सुनने मात्र से अपनी समस्या का समाधान भी मिल सकता है।
गुरुदेव ने आगे फरमाया कि अच्छी बातों का श्रवण कर जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिए। सुनकर व्यक्ति कल्याण को भी जानता है तो पाप को भी जानता है। जो श्रेय हो उसका जीवन में समाचरण करने का प्रयास करना चाहिए।
तत्पश्चात साध्वीवर्या संबुद्धयशा जी का अभिभाषण हुआ। कार्यक्रम में साध्वी अक्षयप्रभा जी, साध्वी धन्यप्रभा जी, समणी निर्मल प्रज्ञा जी ने आराध्य के प्रति अभिवन्दना व्यक्त की।
डिकरी वाव तेरापंथ नी सम्मेलन आयोजित
गुरुदेव की सुपवन सन्निधि में आज “डिकरी वाव तेरापंथ नी” सम्मेलन का भी आयोजन हुआ। आशीर्वचन फरमाते हुए आचार्य श्री ने कहा कि जिस परिवार में भी रहना हो, धर्म सदा हमारे साथ रहना चाहिए। अर्हणक श्रावक की भांति विषम, कठिन परिस्थिति में भी धर्म के प्रति दृढ़ता के भाव भीतर में रहे। बेटियों का पीहर से भी संबंध और ससुराल में भी संबद्ध होता है। कहा गया कि बेटी पीहर में भी उजाला कर सकती है और ससुराल में भी धर्म का प्रकाश कर सकती है। सभी में धर्म के प्रति निष्ठा बनी रहे, त्याग, संयम की साधना रहे और परिवार भी संस्कार युक्त हो ऐसा प्रयास रहना चाहिए।
इस अवसर पर श्रीमती दीपिका लालन ने अपने विचार रखे। बहनों ने मंगलाचरण का संगान किया। विभिन्न बहनों ने मिलकर काव्य, भाषण आदि की प्रस्तुति दी।
स्वागत के क्रम में मेहता परिवार से नत्थू भाई डूंगरसी भाई, नत्थू भाई कस्तूर भाई, नत्थू भाई न्याल भाई आदि सदस्यों ने गीत की प्रस्तुति दी। कन्नु भाई ने अपने विचार रखे।