भरूच (गुजरात) . 55 हजार किलोमीटर से अधिक की भी पदयात्रा पश्चात भी मानवता के कल्याण हित अनवरत रूप से गतिमान शांतिदूत युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ भरूच, अंकलेश्वर आदि क्षेत्रों की ओर प्रवर्धमान है। सद्भावना, नैतिकता एवं नशामुक्ति की अलख जगाते हुए आचार्य प्रवर अणुव्रत यात्रा द्वारा जनमानस को उन्नत जीवन शैली जीने के लिए प्रेरित कर रहे है। आज प्रातः अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी ने वरेडिया ग्राम से मंगल विहार किया। इस दौरान ग्राम वासियों ने शांतिदूत के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए पुनः गांव में शीघ्र पधारने के लिए निवेदन किया। लगभग 10 किमी विहार कर आचार्यश्री हाई वे पर स्थित गुरुद्वारा परिसर, लुवारा में प्रवास हेतु पधारे।
प्रवचन सभा में उद्बोधन प्रदान करते हुए गुरुदेव ने कहा – थोड़े लाभ के लिए अधिक को गवां देने वाला मूर्ख होता है। एक कांकणी को पाने के लिए हजारों कार्शापण की मूल पूँजी को गँवा देना नासमझी नहीं तो क्या है? जहाँ लाभ कम हो व नुकसान ज्यादा हो ऐसा काम व्यक्ति को नहीं करना चाहिए। व्यक्ति अपने आध्यात्मिक लाभ को थोड़े से भौतिक सुखों के लिए कभी कुर्बान न करें। भोगों के लिए धर्म को छोड़ देना मूढ़ता पूर्ण कार्य है । साधु हो या गृहस्थ अपने ग्रहण किए गए संकल्पों को थोड़े से भौतिक सुखों के लिए कभी नहीं छोड़ना चाहिए ।
गुरुदेव ने आगे कहा कि – मानव जीवन प्राप्त कर व्यक्ति को इसे सफल बनाने की दिशा में कार्य करना चाहिए । इस जन्म को यूहीं व्यर्थ का गंवाएं। अणुव्रत मानव जीवन को संवारने का कार्य करता है। यह छोटे छोटे नियम अगर जीवन में आजाएं, गुण जीवन में आजाएं तो जीवन सफल बन सकता है। भौतिकता के पीछे आध्यात्मिकता को न खोए यह अपेक्षा है ।