भारत द्वारा सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) को अस्थायी रूप से निलंबित करने के फैसले के बाद भारत-पाक संबंधों में एक बार फिर गंभीर कूटनीतिक तनाव उत्पन्न हो गया है। यह कदम जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले के बाद उठाया गया, जिसमें 26 निर्दोष नागरिकों की जान गई, जिनमें एक विदेशी नागरिक भी शामिल था। भारत ने इस हमले के पीछे पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों का हाथ बताया है।
भारत ने साफ कर दिया है कि जब तक पाकिस्तान “पारस्परिक रूप से, विश्वसनीय और अपरिवर्तनीय रूप से” सीमा पार आतंकवाद का समर्थन समाप्त नहीं करता, तब तक सिंधु जल संधि प्रभावी नहीं होगी।
पाकिस्तान की चार-स्तरीय कानूनी और कूटनीतिक योजना
भारत के इस निर्णय के बाद, पहले से जल संकट झेल रहे पाकिस्तान में हड़कंप मच गया है। पाकिस्तान के कानून एवं न्याय राज्य मंत्री अकील मलिक ने बताया कि इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने के लिए पाकिस्तान चार प्रमुख उपायों पर काम कर रहा है:
- विश्व बैंक के समक्ष मामला रखना – जो इस संधि का मध्यस्थ रहा है।
- स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (Permanent Court of Arbitration – PCA) का रुख करना।
- अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice – ICJ) में संधि उल्लंघन का आरोप लगाना, विशेष रूप से 1969 की वियना संधि कानून पर आधारित तर्कों के आधार पर।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में मामला उठाना।
मलिक ने कहा, “हम अपनी कानूनी रणनीति को अंतिम रूप देने के करीब हैं। बहुत जल्द यह तय कर लिया जाएगा कि किन मंचों पर कार्रवाई की जाएगी, और यह संभव है कि हम एक से अधिक मंचों पर एक साथ जाएं।”
सिंधु जल संधि: एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में बनी सिंधु जल संधि के तहत छह नदियों – सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज – का जल बंटवारा तय किया गया था:
- भारत को पूर्वी नदियों – रावी, ब्यास, और सतलुज – का नियंत्रण प्राप्त है।
- पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों – सिंधु, झेलम और चिनाब – का जल उपयोग करने का अधिकार है, हालांकि ये नदियां भारत से निकलती हैं।
भारत, एक ऊपरी प्रवाह वाला (upper riparian) देश होने के नाते, तकनीकी रूप से सभी नदियों पर अधिकार रखता है, लेकिन संधि के अंतर्गत उसने पश्चिमी नदियों का जल पाकिस्तान को उपयोग हेतु छोड़ा है।
क्यों पाकिस्तान की कानूनी कोशिशें असफल हो सकती हैं
1. अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) की सीमा
भारत ने 2019 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की न्यायिक अनिवार्यता (compulsory jurisdiction) को स्वीकार करते हुए 13 अपवाद (exceptions) घोषित किए थे। इनमें सबसे महत्वपूर्ण हैं:
- बिंदु 2: भारत किसी भी कॉमनवेल्थ राष्ट्र (जैसे पाकिस्तान) के साथ विवाद को ICJ में नहीं ले जाएगा।
- बिंदु 5: ऐसे सभी विवाद जो युद्ध, सुरक्षा, आतंकवाद, आत्मरक्षा या आक्रामकता के प्रतिरोध से जुड़े हों, भारत की न्यायिक स्वीकृति के बाहर होंगे।
इसका अर्थ यह है कि पाकिस्तान, ICJ में भारत के खिलाफ मुकदमा दायर नहीं कर सकता जब तक कि भारत स्वेच्छा से उस विशिष्ट मामले में सहमति न दे।
2. स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (PCA)
PCA भी पारस्परिक सहमति के आधार पर ही मामलों को स्वीकार करता है। जब तक भारत सहमत नहीं होता, PCA भी पाकिस्तान की याचिका को स्वीकार नहीं कर सकता।
3. विश्व बैंक की सीमाएं
विश्व बैंक, जिसने इस संधि का मध्यस्थता में सहयोग किया था, संधि का प्रवर्तक (enforcer) या रक्षक (guarantor) नहीं है। इसका कार्य केवल तकनीकी परामर्श और मध्यस्थ नियुक्तियों तक सीमित है। यह संधि को लागू करने का अधिकार नहीं रखता।
घटना की पृष्ठभूमि: आतंकवाद और वैश्विक निंदा
भारत की इस कार्रवाई का प्रत्यक्ष कारण था पहलगाम आतंकी हमला, जिसमें पाक-आधारित आतंकी संगठन The Resistance Front (TRF) – जो कि प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा है – ने धार्मिक पहचान के आधार पर निर्दोषों की निर्मम हत्या की। इस घटना की वैश्विक स्तर पर निंदा हुई और कश्मीर में भीषण विरोध प्रदर्शन हुए।
भारत ने इसे “मानवता पर कायरतापूर्ण हमला” बताते हुए इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बनाया और संधि के निलंबन को आतंकवाद के खिलाफ दबाव की रणनीति बताया।
निष्कर्ष: कूटनीतिक संतुलन बदलने की दिशा में कदम
पाकिस्तान भले ही कानूनी विकल्पों की तलाश में हो, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों और अंतरराष्ट्रीय विधिक ढांचे को देखते हुए उसकी कोशिशें ठोस परिणाम नहीं ला सकेंगी। भारत की ओर से सिंधु जल संधि को सुरक्षा और आतंकवाद से जोड़ने की नीति, क्षेत्रीय कूटनीति की दिशा को बदल सकती है।
अब भारत की नीति स्पष्ट है – जब तक शांति और जवाबदेही नहीं होगी, तब तक पारस्परिक सहयोग की कोई गारंटी नहीं होगी।