22 अप्रैल 2025, जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों ने जो ज़ख्म भारत की आत्मा को दिया, वह केवल एक आतंकी हमला नहीं था, वह एक सभ्यता पर प्रहार था। वहां न केवल गोलियों की गूंज सुनाई दी, बल्कि कुछ मांगों से जबरन मिटा दिया गया वह सिंदूर, जो भारतीय नारी के आत्मगौरव, विश्वास और अस्तित्व का प्रतीक है। परंतु आतंकवादी शायद भूल गए थे कि यह वह भूमि है जहां सिंदूर यदि प्रेम का प्रतीक है तो प्रतिशोध की ज्वाला भी बन सकता है।
भारत ने उत्तर दिया—ओज में, संयम में, पराक्रम में और एक चुटकी सिंदूर की ललकार में।
ऑपरेशन सिंदूर: नारी शक्ति का सशस्त्र प्रतिशोध
6 से 7 मई की रात जब अधिकांश विश्व नींद में डूबा था, भारत की तीनों सेनाओं ने एक ऐसी सुनियोजित सैन्य कार्रवाई को अंजाम दिया जिसे इतिहास आने वाले समय में “ऑपरेशन सिंदूर” के नाम से याद रखेगा। यह नाम केवल एक सैन्य संहिता नहीं था, यह था उस अपमान का उत्तर, जो भारतीय नारी के माथे से जबरन मिटाए गए सिंदूर में समाया था।
कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर वमिका सिंह—इन दो भारतीय वीरांगनाओं के नेतृत्व में हुआ यह अभियान आतंक के लिए वह अग्निवर्षा सिद्ध हुआ जिसने जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठनों की जड़ों को हिला दिया।
जब आतंक की रीढ़ टूटी
इस ऑपरेशन का सबसे करारा प्रहार जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर पर पड़ा। न केवल उसके आतंकी अड्डों को ध्वस्त किया गया, बल्कि उसके परिवार के 10 सदस्य भी मौत के घाट उतार दिए गए। आतंक का यह स्वयंभू मसीहा अब शोकग्रस्त स्वर में यह लिख रहा है—
“अच्छा होता कि मैं भी मर जाता।”
यह शब्द नहीं, एक जलील पराजय की चीख है। वह स्वीकारोक्ति है कि भारत अब चुप नहीं बैठता। संयम की तलवार जब म्यान से निकलती है तो वह दुश्मन को पहचान नहीं छोड़ती, केवल खाक में मिला देती है।
नारी अब प्रतीक्षा नहीं, निर्णायक नेतृत्व है
कर्नल सोफिया—रणनीति की वह धुरी बनीं, जिनकी बौद्धिक युद्धकला ने एक-एक आतंकी ठिकाने को लक्ष्य बनाया। विंग कमांडर वमिका—आकाश की वह सिंहिनी बनीं, जिनकी मिराज से दागी गईं मिसाइलों ने पहाड़ों में छिपे आतंक के गढ़ों को ध्वस्त कर दिया।
इन दोनों ने यह सिद्ध किया कि भारतीय नारी अब केवल प्रेरणा की प्रतिमा नहीं, रण की सूत्रधार भी है। वह सीमा पर युद्ध करती है, आकाश में गरजती है और अपमान का उत्तर जलते हुए ठिकानों की राख से देती है।
सिंदूर: अब यह श्रृंगार नहीं, संहार का प्रतीक है
“एक चुटकी सिंदूर” अब महज़ विवाहित स्त्री का मांग तिलक नहीं रहा। यह अब भारत माता की संतानों की मांग का रक्तलाल विजय तिलक है। यह उस असहनीय अपमान का उत्तर है, जो स्त्रीत्व को लांछित करने का दुस्साहस करता है।
ऑपरेशन सिंदूर ने यह स्पष्ट कर दिया है—भारत की सहनशीलता उसकी कमजोरी नहीं, उसकी शक्ति है। और जब उत्तर आता है तो वह इतना तीव्र होता है कि शत्रु की रूह तक को हिला देता है।
अंतिम शब्द
आज देश की हर बेटी, हर माँ, हर वीरांगना के माथे पर वह रणचंडी सिंदूर चमक रहा है। मसूद अजहर की पीड़ा और पछतावा इस सत्य की गवाही है कि भारत अब वाणी से नहीं, पराक्रम से उत्तर देता है।
“एक चुटकी सिंदूर” अब इतिहास है, चेतावनी है, और भारत के गौरव की अमरगाथा भी।
जय हिंद। जय भारत।