18 मई 1974 — यह वह दिन था जब भारत ने विश्व मंच पर अपनी वैज्ञानिक और सैन्य शक्ति का ऐतिहासिक प्रदर्शन किया। राजस्थान के रेगिस्तान में पोखरण की तपती रेत पर हुए उस विस्फोट ने भारत को दुनिया की छठी परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित कर दिया। इस मिशन को कोडनेम दिया गया था — ‘स्माइलिंग बुद्धा’। लेकिन इसके पीछे छुपा संदेश गंभीर था: भारत अब केवल शांति और आध्यात्म का प्रतीक नहीं, बल्कि जरूरत पड़ने पर निर्णायक शक्ति दिखाने वाला राष्ट्र भी है।
पहली परमाणु छलांग: भारत का आत्मविश्वास
अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन के बाद भारत ऐसा छठा देश बना जिसने अपनी स्वदेशी तकनीक के दम पर परमाणु हथियार बनाने की क्षमता हासिल की। इस परीक्षण ने यह भी सिद्ध कर दिया कि भारत तकनीकी और वैज्ञानिक मामलों में किसी से पीछे नहीं है।
यह मिशन उस समय पूरा हुआ जब दुनिया दो ध्रुवों में बंटी थी और परमाणु ताकतें अपने प्रभुत्व की होड़ में थीं। भारत ने स्पष्ट किया कि हम यह शक्ति न आक्रामकता के लिए, बल्कि आत्मरक्षा और रणनीतिक संतुलन के लिए विकसित कर रहे हैं।
प्रतिबंधों के बीच तकनीकी आत्मनिर्भरता की कहानी
पोखरण-I के बाद भारत पर अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों ने कई तरह के प्रतिबंध लगाए। लेकिन इसके बावजूद भारत ने झुकने के बजाय आत्मनिर्भरता का मार्ग चुना। DRDO, BARC और ISRO जैसे संस्थानों ने मिलकर देश को वैज्ञानिक और रक्षा तकनीक के क्षेत्र में आगे बढ़ाया।
1998 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भारत ने पोखरण में पांच और परमाणु परीक्षण किए, जिन्हें पोखरण-2 कहा गया। इसके साथ ही भारत ने खुद को एक “परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र” घोषित कर दिया।
भारत की परमाणु नीति: संतुलन और जिम्मेदारी
भारत ने शुरुआत से ही दो प्रमुख सिद्धांतों का पालन किया:
- नो फर्स्ट यूज (पहले परमाणु हमला नहीं करेगा)
- न्यूनतम लेकिन विश्वसनीय प्रतिरोध क्षमता (Minimum Credible Deterrence)
भारत की परमाणु नीति अब भी संतुलित, परिपक्व और अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियों के अनुरूप मानी जाती है। हालांकि हाल के वर्षों में “नो फर्स्ट यूज” की समीक्षा की मांगें उठी हैं, लेकिन आधिकारिक नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
आज का भारत: तीनों सेनाओं में परमाणु शक्ति की क्षमता
2024 तक स्वीडिश थिंक टैंक SIPRI के अनुसार भारत के पास करीब 160–170 परमाणु हथियार हैं। लेकिन केवल संख्या ही नहीं, भारत ने परमाणु हथियारों के तीनों प्लेटफॉर्म विकसित किए हैं — थल, जल और वायु:
- थल: अग्नि-1 से लेकर अग्नि-5 तक लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलें
- जल: INS Arihant जैसी परमाणु-सक्षम पनडुब्बियां
- नभ: Mirage-2000 और Su-30MKI जैसे परमाणु-सक्षम लड़ाकू विमान
भारत की परमाणु यात्रा के पांच निर्णायक पड़ाव
- 1974: पोखरण-1 परीक्षण से भारत की परमाणु यात्रा की शुरुआत
- 1998: पोखरण-2 से भारत की आधिकारिक परमाणु शक्ति के रूप में मान्यता
- 2003: भारत ने अपनी राष्ट्रीय परमाणु नीति (Nuclear Doctrine) को औपचारिक रूप दिया
- 2016: परमाणु-सक्षम पनडुब्बी INS Arihant की तैनाती
- 2020 के बाद: MIRV टेक्नोलॉजी और अग्नि-5 जैसी अत्याधुनिक मिसाइलों का समावेश
निष्कर्ष
आज, 51 साल बाद जब हम ‘स्माइलिंग बुद्धा’ की ओर पलटकर देखते हैं, तो वह सिर्फ एक परमाणु परीक्षण नहीं था, वह भारत के आत्मविश्वास, वैज्ञानिक प्रतिभा और रणनीतिक संकल्प का प्रतीक था। यह मिशन आज भी हमें याद दिलाता है कि जब इरादे अडिग हों और विज्ञान को राष्ट्र सेवा से जोड़ा जाए, तो कोई भी बाधा रोकी नहीं जा सकती।
भारत अब केवल एक परमाणु शक्ति नहीं, बल्कि एक जिम्मेदार वैश्विक शक्ति के रूप में अपने रास्ते पर अग्रसर है — शांत, पर सजग।
जय हिंद।