सूरत:जहांगीरपुरा का महावीर संस्कार धाम आज हजारों श्रद्धालुओं से खचाखच भरा हुआ था। हर कोई अपने आराध्य के प्रीत मंगल भावना के पलों का साक्षी बनने यहां पहुंचा हुआ था। युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी का इस यात्रा में सूरत शहर का आज अंतिम प्रवास के रूप में महावीर संस्कार धाम में पदार्पण हुआ। इस मौके पर गुरूदेव के सान्निध्य में मंगल भावना समारोह एवं दायित्व हस्तांतरण का आयोजन हुआ। आचार्य प्रवर का सूरत चातुर्मास ऐतिहासिक एवं सफलतम चातुर्मास के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। एक ओर जहां सूरत वासियों के दिलों को यह विदाई वेला भारी कर रही थी तो वहीं आगामी मर्यादा महोत्सव स्थली भुज, कच्छ वासी आराध्य की आगवानी को उत्साहित थे। चातुर्मास पश्चात शहर के विभिन्न उपनगरों में प्रवास कर आचार्यश्री ने मानों अपनी अध्यात्म गंगा से शहर के कोने कोने को पावन बना दिया, श्रद्धालुओं को अपने आशीर्वाद से कृतार्थ कर दिया। अड़ाजन-पाल के कुशल कांति खतरगच्छ भवन से आचार्य श्री ने प्रातः प्रस्थान किया। निकट ही जैन ओंकार भवन में मूर्तिपूजक आचार्य श्री मुनिचंद्र सुरीश्वर जी से अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी की आध्यात्मिक भेंट हुई। कुछ देर धर्म चर्चा पश्चात आचार्य श्री गतिमान हुए। निर्मल हॉस्पिटल में पगलिया कर जगह–जगह समूह रूप में स्वागतोत्सुक श्रद्धालुओं को आशीष प्रदान करते हुए आचार्यश्री जहांगीरपुरा के महावीर संस्कार धाम में पधारे। इस अवसर पर भवन के प्रबंधकों ने गुरुदेव का भावभीना स्वागत किया।
दायित्व हस्तांतरण के तहत कार्यक्रम में आचार्य महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, सूरत के अध्यक्ष श्री संजय सुराणा सहित पदाधिकारियों ने भुज मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति 2025 के पदाधिकारियों को जैन ध्वज सौंप कर दायित्व का हस्तांतरण किया। एवं आराध्य की यात्रा के प्रति मंगल कामना प्रकट की।
चतुर्दशी पर हाजरी के संदर्भ में प्रेरणा देते हुए आचार्यश्री ने कहा – जैन आगम दसवेआलियं में साधुचर्या व भिक्षुचर्या व उससे सम्बद्ध जीवन शैली का अनेक रूपों में विवरण उपलब्ध है। साधु किस प्रकार गोचरी करे, वाणी संयम से लेकर मोक्ष प्राप्ति तक का विस्तृत विवेचन उसमें प्राप्त होता है। दसवेआलियं आगम हर साधु-साध्वी को कंठस्थ हो, यह अपेक्षित है। यदि थोड़ा विस्मृत हो जाय उसे पुनः पक्का कर ले, उसका पुनरावर्तन करते रहे। साथ ही मूल के साथ अर्थ का बोध भी हो। प्रतिक्रमण भी दोनों समय नियमित रूप से व एकाग्र चित से होता रहे। प्रतिक्रमण का अर्थ होता है – विभाव से स्वभाव की ओर लौटना। व्यक्ति के द्वारा कोई अकरणीय कार्य हुआ हो तो उसकी सरल ह्रदय से आलोचना करनी चाहिए। प्रायश्चित के समय तो एक बच्चे के समान हृदय में सरलता रहनी चाहिए। आलोयना कराने वाला भी तटस्थ व न्यायप्रिय हो।
आचार्य प्रवर ने आगे कहा कि आज महावीर संस्कार धाम आना हुआ है। चातुर्मास भगवान महावीर यूनिवर्सिटी में हुआ और यह विदाई के क्षणों में महावीर धाम है। भगवान महावीर हमारे परम आराध्य है, हम सबके मन में बसे रहे। एक तरफ संपन्नता का प्रसंग है तो दूसरी ओर आरम्भ का समय है। सूरत समाज में धर्माराधना बढ़ती रहे। सद्भावना, नैतिकता के गुणों से समाज संस्कारवान बनता रहे।
कार्यक्रम में प्रवास व्यवस्था समिति, सूरत के अध्यक्ष श्री संजय सुराणा, भुज मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति अध्यक्ष श्री कीर्तिभाई संघवी, महावीर संस्कार धाम की ओर से श्री बाबूलाल मंडोत, श्री रमेश बोल्या, गांधीधाम से श्री बाबूलाल सिंघवी ने अपने विचार रखे। गांधीधाम प्रवास का लोगो भी इस मौके पर गुरुचरणों में लॉन्च किया गया।
दीक्षा समारोह की घोषणा
आचार्य प्रवर ने महती कृपा कर मुमुक्षु केविन संघवी को भुज में दिनांक 07 फरवरी 2025 को जैन मुनि दीक्षा प्रदान करने की घोषणा की।