सरदारशहर, चूरु:छह दशक पूर्व सरदारशहर में जन्मे बालक मोहन ने सरदारशहर की धरती पर ही जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ की साधु परंपरा में दीक्षा ली और मुनि मुदितकुमार बना। अपने व्यक्तित्त्व, कर्तृत्व, निष्ठा, गुरुभक्ति की अखंड आस्था का परिणाम हुआ कि मुनि मुदित अपने पूवाचार्यों द्वारा ‘महाश्रमण’ पद पर प्रतिष्ठित हुए और अपने दसमें आध्यात्मिक गुरु की मंगल सन्निधि मंे महाश्रमण से युवाचार्य महाश्रमण बने। सरदारशहर में तेरापंथ के दसवें आचार्य महाप्रज्ञजी के महाप्रयाण के पश्चात तेरापंथ के ग्यारहवें अनुशास्ता बने। आचार्य बनने के बाद वैश्विक क्षितिज को मापने निकले आचार्य महाश्रमणजी ने सप्तवर्षीय अहिंसा यात्रा के दौरान नेपाल, भूटान की विदेशी धरती को पावन बनाने के साथ ही भारतवर्ष के 22 राज्यों को पावन बना मानवता का ऐसा शंखनाद किया कि जैन धर्म के पालक महाश्रमण जन-जन के महाश्रमण बन गए। आज ऐसे सदी के महानायक, महातपस्वी आचार्य महाश्रमण के जीवनकाल के साठ वर्षों की सम्पन्नता के सुअवसर के साथ युगप्रधान पदाभिषेक महापर्व के गौरव का क्षण भी सरदारशहर को प्राप्त हो रहा था।
जनमग्न हुआ मार्ग, विशाल जुलूस में संभागी बने 23 राज्यों सहित नेपाल, भूटान के श्रद्धालु
सूर्योदय के कुछ समय पश्चात ही आचार्यश्री महाश्रमण अपने जन्मस्थान से कार्यक्रम स्थल की ओर प्रस्थित हुए। मार्ग के दोनों ओर पंक्तिबद्ध खड़े श्रद्धालुओं के जयघोष से पूरा वातावरण गुंजायमान हो रहा था। वाद्ययंत्रों की मंगल ध्वनि इसे और अधिक प्रभावी बना रही थी। आमतौर पर कोई शहर अथवा नगर भारी वर्षा के कारण जलमग्न होता है लेकिन मंगलवार को सरदारशहर श्रद्धालुओं की भारी उपस्थिति से मार्ग जनमग्न हो रहा था। नगर से लेकर तिरंगा स्टेडियम तक जनता की विराट उपस्थिति नजर आ रही थी। यह पहला अवसर था जब राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखण्ड, ओड़िशा, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, केरल, पुदुचेरी, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, त्रिपुरा, नागालैण्ड, असम, मेघालय राज्यों के हजारों श्रद्धालु किसी एक जुलूस में इस प्रकार संभागी बन हो। नेपाल, व भूटान के श्रद्धालु भी इस ऐतिहासिक समारोह में सोल्लास उपस्थित थे।
मंगल मंत्रों से किया आराध्य का वर्धापन
गूंजते जयकारों, स्वरलहरियों के बीच आचार्यश्री लगभग पांच किलोमीटर का विहार कर धवल सेना संग बीडीएस कॉलेज के तिरंगा स्टेडियम पहुंचे तो साधु, साध्वी, समणी, मुमुक्षु बहनें, जैन संस्कारकों व उपासकों द्वारा आगमसूक्त, लोगस्स व णमोत्थुणं आदि पाठों का वाचन कर अपने आराध्य का भव्य स्वागत किया।
तिरंगा स्टेडियम परिसर में बने विशाल मंच पर अध्यात्म जगत के महासूर्य महातपस्वी महाश्रमण उदित हुए तो विशाल पंडाल उनकी आभावलय में ज्योतित हो उठा। आचार्यश्री के नमस्कार महामंत्रोच्चार से समारोह का शुभारम्भ हुआ।
भावों की अभिव्यक्ति का साधन बनी प्रस्तुतियां
मुख्यनियोजिका साध्वी विश्रुतविभाजी ने युगप्रधान परंपरा व युगप्रधान अर्हता को बताया तो साध्वीवर्या साध्वी संबुद्धयशाजी ने आचार्यश्री महाश्रमणजी के अवदानों को व्याख्यायित किया। मुनि कुमारश्रमणजी, साध्वी सुमतिप्रभाजी, प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री बाबूलाल बोथरा व संसारपक्ष में आचार्यश्री के भाई श्री सुजानमल दूगड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। मुनिवृंद, साध्वीवृंद, समणीवृंद तथा सरदारशहर तेरापंथ समाज द्वारा पृथक्-पृथक् गीत का संगान किया गया। मुनिश्री धर्मरुचिजी द्वारा पूज्यचरणों में काव्यांजलि ग्रंथ समर्पित किया गया। दूगड़ परिवार के नन्हें बच्चों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। स्क्रीन व उन विडियो को भी दर्शाया गया जिसमें गुरुदेव तुलसी, आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के आचार्यश्री के प्रति आशीर्वचन, शासनमाता साध्वी कनकप्रभाजी द्वारा आचार्यश्री से युगप्रधान स्वीकार करने का निवेदन और आचार्यश्री की स्वीकृति प्रदान की थी।
आध्यात्मिक गुरु का अध्यात्ममय युगप्रधान पदाभिषेक
युग को नई दिशा प्रदान करने वाले आचार्यश्री महाश्रमणजी के युगप्रधान पदाभिषेक की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई जो सात चरणों में चली। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी उठे और आचार्यश्री से सिंहासनारूढ़ होने का निवेदन किया। आचार्यश्री के सिंहासनारूढ़ होते ही साध्वीवर्याजी आदि अग्रणी साध्वियों द्वारा नंदीश्लोकों के साथ संघ स्तुति की जाने लगी। फिर आरम्भ हुआ ज्योतिचरण के पदाभिषेक का चरणबद्ध कार्यक्रम। मुख्यमुनिश्री ने प्रथम चरण में पवित्रता जागरण का क्रम किया। जल से आचार्यश्री के पदांगुष्ठ का अभिषेक किया। तदुपरान्त हस्तद्वय अंगुलियों का भी अभिषेक किया। अभिसिक्त जल को उपस्थित साधु-साध्वियों ने अपने मस्तक से लगाकर धन्यता की अनुभूति की। अभिषेक करने के उपरान्त मुख्यमुनिश्री ने पदाभिषेक पत्र का वाचन कर वह पत्र अपने आराध्य के करकमलों में समर्पित कर दिया। तत्पश्चात क्रमशः उत्तरीय वस्त्र अर्पण कर माल्यार्पण किया तो पूरा वातावरण जयघोष से गुंजायमान हो उठा।
युगप्रधान को अर्पित किए गए श्रद्धा भावों से ओत-प्रोत अभिनंदन पत्र व भेंट
युगप्रधान आचार्यश्री की अभिवंदना करते हुए मुख्यमुनिश्री ने गीत का संगान किया और अपने गुरु सविधि तीन बार प्रदक्षिणा कर वंदन किया। मुख्यनियोजिकाजी ने रजोहरण, साध्वीवर्याजी ने प्रमार्जनी, श्रमण-समणी परिवार ने अभिवंदना पत्र प्रस्तुत किया, जिसका वाचन शासन गौरव साध्वी कल्पलताजी ने किया, जिसे अग्रणी संतों ने पूज्यश्री के चरणों में समर्पित किया।
इस दौरान केन्द्रीय संस्थाओं के माध्यम से समस्त श्रावक समाज की ओर अभिनंदन पत्र प्रस्तुत किया गया, जिसका वाचन श्री के.सी. जैन ने किया। सरदारशहर नगरपालिका भी ओर से अभिनंदन पत्र समर्पित किया। गया।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण के श्रीमुख से जन-जन को मिला मंगल पाथेय
मंगलवार का दिन सरदारशहर में मानों चारों ओर मंगल ही मंगल लेकर आया था। इसी धरा पर जन्म, दीक्षा, आचार्य पदाभिषेक के बाद इसी धरा पर युगप्रधान पदाभिषेक पर्व प्राप्त कर सरदारशहर की मातृ धरा गौरवान्वित महसूस कर रही थी। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने श्रीमुख से उपस्थित विराट जनमेदिनी को मंगल पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आज मैं देख रहा हूं कि मेरे प्रति मंगलकामनाएं की जा रही हैं। इस शरीर के साथ जीवन का साठ वर्ष पूर्ण हो गया और अब सातवें दशक में प्रवेश हो गया है। सरदारशहर में जन्म लेने और दीक्षा लेने के उपरान्त परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी और परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने खुले मैदान में दौड़ने का अवसर दिया और खुले आकाश में उड़ान भरने को उत्प्रेरित किया। नौ मई 2010 को सरदारशहर में ही परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के महाप्रयाण के उपरान्त धर्मसंघ ने अमल-धवल चद्दर ओढ़ाई। आचार्यपद के साथ आज सम्पूर्ण धर्मसंघ युगप्रधान के रूप में आभूषण प्रदान किया। चतुर्विध धर्मसंघ से प्राप्त सम्मान को मैं स्वीकार करता हूं। अपने समस्त पूर्वाचार्यों का स्मरण करता हूं, शासनमाता स्मरण करता हूं। हमारा धर्मसंघ साधाना, सेवा के अच्छे कार्यों में समय का नियोजन करे और दूसरों की भी आध्यात्मिक-धार्मिक सेवा करे। मैं सम्पूर्ण धर्मसंघ के प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना करता हूं।
संघगान के साथ नव्य, भव्य कार्यक्रम सम्पन्न
कार्यक्रम के अंत में संघगान हुआ। युगप्रधान आचार्यश्री के साथ चतुर्विध धर्मसंघ ने खड़े होकर संघगान किया। इस नव्य, भव्य कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनिश्री दिनेशकुमारजी ने किया। इस दौरान अनेक प्रदेशों के श्रद्धालुओं ने भी अपनी-अपनी ओर से पूज्यचरणों में भेंट अर्पित की।
हिटवेव में भी अस्थावेव हाई, पारा 43 के पार, फिर भी अडोल रही आस्था
अपने आराध्य के युगप्रधान पदाभिषेक पर्व व षष्टीपूति के सुअवसर पर देश-विदेश उमड़े श्रद्धालुओं के आस्था का वेव इतना हाई था कि राजस्थान के चूरू जिले की हिटवेव भी फिकी नजर आ रही थी। तपती गर्मी और प्रचंड आतप के बाद भी श्रद्धालुओं की आस्था अडोल रही और होने वाले कार्यक्रम के पल-पल को अपने पलकों पर सजाया और नयनों में ही नहीं, अत्याधुनिक उपकरणों में भी ऐसे संजोया मानों जीवन भर के लिए आध्यात्मिक थाति।