सरदारशहर, चूरु:राजस्थान के चूरू जिला का एक नगर सरदारशहर। जिसने अपने साथ न जाने कितने इतिहास को जोड़कर ऐतिहासिक नगर बन गया है और उसके इतिहास में नित नए नवीन अध्याय अभी भी जुड़ते जा रहे हैं। नगरों के सरदार सरदारशहर में मंगलवार को एक और नवीन इतिहास का सृजन जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के सरदार, सरदारशहर के लाल, अध्यात्म जगत के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में हुआ।
सनातन परंपरा व जैन परंपरा सहित अनेक परंपराओं व मान्यताओं में विशेष महत्त्व रखने वाला वैशाख शुक्ला तृतीया अर्थात् अक्षय तृतीया के दिन सरदारशहर की धरा पर विराज रहे अध्यात्म जगत के महासूर्य महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में आस्था, उत्साह, उल्लास व उमंग के ज्वार से भरे देश ही नहीं विदेशी श्रद्धालु भी अक्षय ऊर्जा की प्राप्ति और व्रत के पारणे के लिए अपने आराध्य की मंगल सन्निधि में पहुंचे तो मानों पूरा सरदारशहर ही जनाकीर्ण बन गया। तेरापंथ भवन के निकट बने विशाल और भव्य युगप्रधान समवसरण भी मनों इस ज्वार में बहा चला रहा था। विराट व्यवस्थाएं भी मानों अल्प साबित हो रही थीं।
आस्था के इस सैलाब में जन-जन गोते लगा रहा था। युगप्रधान समवसरण में देश-विदेश से जुटे कुल लगभग 181 तपस्वियों में जहां जीवन के 13वें वर्ष में प्रथम वर्षीतप का पारणा हुआ तो वहीं जीवन के 94वें वर्ष की अवस्था 35वें वर्षीतप की सम्पन्नता हुई। अमेरिका जैसे देशों में रहने के बाद भी अडोल बनी आस्था के कारण सात समन्दर पार भी वर्षीतप करने वाले पांच तपस्वी भी अपने गुरु को इक्षुरस का दान कर अपने व्रत को सम्पन्न किए।
मंगलवार को प्रातः लगभग सवा आठ बजे भव्य व विशाल युगप्रधान समवसरण श्रद्धालुओं की विराट उपस्थिति से मानों छोटा नजर आ रहा था। मंच पर आचार्यश्री के उपस्थित होते ही पूरा वातावरण जयकारों से गुंजायमान हो उठा। अक्षय तृतीया महोत्सव के कार्यक्रम का शुभारम्भ अध्यात्म जगत के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ हुआ। साध्वीवर्या साध्वी संबुद्धयशाजी, मुख्यनियोजिका साध्वी विश्रुतविभाजी व मुख्यमुनिश्री मुनि महावीरकुमारजी ने अक्षय तृतीया, तपस्या व भगवान ऋषभ आदि विषयों उपस्थित जनमेदिनी को उद्बोधित किया।
अध्यात्म जगत के महासूर्य महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अक्षय तृतीया महोत्सव के अवसर पर अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा आध्यात्मिक ग्रंथों में धर्म के तीन प्रकार बताए गए हैं-अहिंसा, संयम और तप। आज तपस्या से संबंधित कार्यक्रम भी आयोज्य है। तपस्या के द्वारा अपनी चेतना को निर्मल और तेजस्वी बनाया जा सकता है। तपस्या एक प्रकार का रजोहरण के रूप में है। चेतना पर जमें रजों को तपस्या रूपी रजोहरण से साफ कर उसे निर्मल और तेजस्वी बनाया जाता है। तप के भी दो प्रकार बताए गए हैं-बाह्य तप और अभ्यांतर तप। उपवास, विगय वर्जन, उनोदरी आदि-आदि तपस्या शरीर से जुड़ा हुआ है। यह बाह्य तप है अभ्यांतर तप जो मानसिक रूप से अंदर की वृत्तियों की निराकरण के लिए किया जाता है। बाह्य तप भी अभ्यांतर तप को पोषण देने वाला होता है।
वर्तमान में किया जाने वाला वर्षीतप भगवान ऋषभ के साधिक तेरह महीनों के अनाहार तप के तुलना में आंशिक रूप में होने वाला है। हालांकि उन्होंने सलक्ष्य तप नहीं किया था, गृहस्थ श्रावकों द्वारा उन्हें आहार का दान न दिए जाने के कारण हो गया था। भगवान ऋषभ गृहस्थावस्था में रहे थे। उन्होंने समाज की सेवा भी की। वे राजनीति से भी जुड़े रहे। वे तीर्थंकर के रूप में अध्यात्म जगत के प्रवक्ता भी बन गए। वर्षीतप साधना का अच्छा माध्यम है। तपस्या के साथ-साथ जप, स्वाध्याय व कषाय मंदता की तपस्या भी करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को गुस्सा, लोभ व राग-द्वेष की भावना को क्षीण करने का भी प्रयास करना चाहिए। तपस्या के दौरान ‘ऊँ ऋषभाय नमः’ की ग्यारह माला के सहित अनेक धार्मिक कार्यों की प्रेरणा आचार्यश्री ने समुपस्थित जनमेदिनी को प्रदान की आचार्यश्री ने आगे कहा कि आज अक्षय तृतीया है। अक्षय का अर्थ होता है जिसका क्षय न हो। इस अवसर पर अक्षय ज्ञान, अक्षय दर्शन और अक्षय चारित्र की शक्ति के विकास प्रयास हो तो तपस्या और भी फलीभूत हो सकती है।
इस दौरान आचार्यश्री ने सम्मुख उपस्थित श्रद्धालुओं तथा टीवी व सोश्यल माध्यम से सीधे प्रसारण से जुड़े हुए तपस्वियों को तपस्या के दौरान लगे दोषों के लिए 51 सामायिक की आलोयणा प्रदान की तथा अगले वर्षीतप का धारण के अनुसार प्रत्याख्यान भी कराया। सम्मुख उपस्थित तपस्वियों ने अपने स्थान पर खड़े होकर अपने आराध्य के श्रीमुख से इन्हें श्रद्धा के साथ स्वीकार किया। आचार्यश्री ने सभी तपस्वियों की तपस्या की अनुमोदना करते हुए उनके प्रति मंगलकामना की।
इस अवसर पर आचार्यश्री ने अपने दीक्षा प्रदाता मंत्रीमुनिश्री सुमेरमलजी स्वामी (लाडनूं) का स्मरण करते हुए उनके वार्षिकी पुण्यतिथि पर अपनी भावांजलि अर्पित की। आचार्यश्री ने कहा कि साध्वीप्रमुखाजी के महाप्रयाण के बाद पहली बार अक्षय तृतीया का समायोजन हो रहा है।
कार्यक्रम में प्रवास व्यवस्था समिति-सरदारशहर की महामंत्री श्रीमती सूरजबाई बरड़िया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल व कन्या मण्डल ने संयुक्त रूप से गीत का संगान किया। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी।
तदुपरान्त आरम्भ हुआ तपस्वियों द्वारा आचार्यश्री के पात्र में इक्षुदान का कार्यक्रम। इसमें सर्वप्रथम आचार्यश्री ने मुनि राजकुमारजी को 25वें वर्षीतप का प्रत्याख्यान कराया। और उन्हें 24वें वर्षीतप की सम्पन्नता पर अपने हाथ से ग्रास प्रदान किया। इस प्रकार आचार्यश्री ने साध्वी गुप्तिप्रभाजी के 17वें वर्षीतप की सम्पन्नता के साथ वर्षीतप करने वाले अनेकों चारित्रात्माओं को अपने हाथ से ग्रास प्रदान किया। आज के आयोजन में उपस्थित 181 तपस्वियों ने आचार्यश्री के पात्र में इक्षुरस का दान कर अपने तप को पूर्ण किया। इसमें 93वें वर्ष की अवस्था में अपने 34वें वर्षीतप का पारणा तथा मात्र तेरह वर्ष की अवस्था में अपना पहला वर्षीतप करने वाला किशोर भी शामिल था। वहीं अमेरिका आदि विदेशों में रहने वाले पांच विदेश प्रवासी तपस्वियों ने भी आचार्यश्री के पात्र में इक्षुरस का दान देकर अपना व्रत सम्पन्न किया।