नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को पेश की गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि शारीरिक साक्षरता को एक मौलिक अधिकार का दर्जा दिया जाना चाहिए। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) और काउंसिल आफ इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशन (आइसीएसई) समेत सभी शिक्षा बोर्डों को हर स्कूल में प्रतिदिन 90 मिनट का समय खेलों के लिए सुनिश्चित करने को कहना चाहिए।
यह रिपोर्ट वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने पेश की है। वह खेलों को मौलिक अधिकार बनाने और देश में खेल शिक्षा को बढ़ावा देने के संबंध में की गई एक जनहित याचिका में एमिकस क्यूरी हैं। यह याचिका खेल शोधकर्ता कनिष्क पांडे ने 2018 में दाखिल की थी जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकारों को नोटिस जारी किए थे। याचिका में कहा गया है कि खेल को नर्सरी से परास्नातक स्तर तक पढ़ाई में शामिल किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने शंकरनारायणन को मामले में एमिकस क्यूरी नियुक्त करते हुए मामले का निपटारा करने के लिए सुझाव देने को कहा था।
एमिकस क्यूरी की वृहद रिपोर्ट में संवैधानिक सिद्धांतों और खेल के विभिन्न पहलुओं को समेटा गया है और इस संबंध में लागू किए जाने योग्य कई सुझाव भी दिए गए हैं। ऐसे ही एक सुझाव में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा) के तहत शारीरिक साक्षरता को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया जाना चाहिए। केंद्र को राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा मिशन बनाने को कहा जा सकता है ताकि इस अधिकार को लागू किया जा सके। इसके साथ ही जिम्मेदारी भी तय की जाए जिसमें पाठ्यक्रम का निर्धारण, इसके पालन की निगरानी, समीक्षा और शिकायतों का निपटारा शामिल हो।
रिपोर्ट कहती है कि दीर्घावधि के सुझावों के अमल में समय लग सकता है इसलिए अदालत स्कूलों को हर दिन डेढ़ घंटे का समय खेल गतिविधियों के लिए तय करने को कह सकती है। रिपोर्ट यह भी कहती है कि शैक्षणिक सत्र 2022 से गैर आवासीय स्कूलों को निर्धारित समय के बाद अपने खेल मैदान व सुविधाएं निश्शुल्क पड़ोस के बच्चों को प्रयोग के लिए देने का आदेश भी दिया जाना चाहिए। शकंरनारायणन ने इस प्रस्तुतीकरण में कई खेल विशेषज्ञों की मदद भी ली है जिसमें भारत के महान बैडमिंटन खिलाड़ी पुलेला गोपीचंद भी शामिल हैं।