डेस्क:सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान दहेज के खिलाफ बने कानूनों के दुरुपयोग को लेकर चिंता जताई है। इस दौरान उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि इस कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए दहेज उत्पीड़न के मामलों पर सतर्कता बरतने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने निजी दुश्मनी निकालने या गलत इरादे से दहेज कानूनों के इस्तेमाल को लेकर कड़ी चेतावनी दी है। इस मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने एक शख्स पर पत्नी द्वारा दायर आरोपों को रद्द करने का भी आदेश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने शख्स के खिलाफ लगे आरोपों को खारिज कर दिया। बता दें कि शख्स की पत्नी ने उसके और उसके माता-पिता के खिलाफ आईपीसी की धारा 498-ए, 504, 506, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के तहत आपराधिक मामले दर्ज कराए गए थे। इससे पहले हाई कोर्ट ने शख्स के खिलाफ कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया था। हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील की जांच करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “ऐसी परिस्थितियों में आपराधिक कार्यवाही जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। आपराधिक कानून का इस्तेमाल किसी को परेशान करने या बदला लेने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।”
महिला के आरोप
गौरतलब है कि महिला ने 10 फरवरी, 2019 को दायर अपनी शिकायत में अपने पति पर क्रूरता और उत्पीड़न का आरोप लगाया था। उसने दावा किया कि शादी के समय उसके परिवार ने शख्स को एक स्विफ्ट कार, 80 ग्राम सोने की चेन, एक अंगूठी और 50 ग्राम का कंगन सहित कई चीजें दी थीं और शादी में 45 लाख रुपये खर्च हुए थे। महिला ने बताया कि वह अनुसूचित जाति से है और उसका पति ब्राह्मण था। दोनों ने लव मैरेज की थी। उसने आरोप लगाया कि उसके पिता ने उसके पति को बार-बार पैसे दिए थे। इसके अलावा उसने पति पर उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का आरोप भी लगाया।
वहीं पति की तरफ ने वकील ने तर्क दिया कि यह एक प्रेम विवाह था और पहले दो सालों तक दंपति के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध थे, ऐसे में उत्पीड़न के दावों पर संदेह पैदा होता है। कोर्ट में पति ने तर्क दिया कि यह शिकायत शादी टूटने के बाद सिर्फ बदला लेने के उद्देश्य से की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह माना कि महिला द्वारा पेश किए गए सबूत पर्याप्त नहीं हैं।