नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि देश की अर्थव्यवस्था में योगदान देने वाले और आजीविका प्रदान करने वाले उद्योग को केवल तकनीकी अनियमितता (पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी) के आधार पर बंद नहीं किया जा सकता है। न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 बाद में पर्यावरणीय मंजूरी लेने से रोक नहीं लगाता है। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के उस आदेश को खारिज करते हुए की, जिसमें हरियाणा में उन उद्योगों को बंद करने का निर्देश दिया गया था, जिनके पास पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी नहीं थी।
पीठ ने कहा, यदि ऐसी परियोजनाएं पर्यावरण संबंधी मानदंडों का पालन करती हैं तो अदालत परियोजना में कार्यरत सैकड़ों कर्मचारियों और परियोजना पर निर्भर लोगों की आजीविका की रक्षा करने की आवश्यकता से बेखबर नहीं हो सकती है। शीर्ष अदालत ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता है कि पर्यावरणीय मंजूरी प्राप्त करने की आवश्यकता का अनुपालन करने के मामले में समझौता नहीं हो सकता है। पीठ ने कहा, भविष्य की पीढ़ियों की रक्षा के लिए और सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए यह जरूरी है कि प्रदूषण कानूनों को सख्ती से लागू किया जाए। किसी भी परिस्थिति में प्रदूषण करने वाले उद्योगों को अनियंत्रित रूप से संचालित करने और पर्यावरण को खराब करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
हिंदू से अन्य धर्मो में कथित रूप से जबरन मतांतरण का मुद्दा उठाने वाली याचिका पर मद्रास हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सुनवाई करने से इन्कार कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह याचिका जनहित से ज्यादा प्रचार हित में है।जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा, ‘वास्तव में इस तरह की याचिकाओं की जरिये आप सद्भाव बिगाड़ रहे हैं।’ जब पीठ ने कहा कि वह जुर्माने के साथ याचिका खारिज करने की इच्छुक है तो याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता सीआर जय सुकिन ने इस वापस लेने की अनुमति मांगी। पीठ ने वापस लेने के कारण इसे खारिज कर दिया। दरअसल, मद्रास हाई कोर्ट की मदुरई पीठ ने इसी तरह की मांग वाली याचिका पर ‘द तमिलनाडु प्रोहिबिशन आफ फोर्सिबल कंवर्जन आफ रिलिजन एक्ट, 2002’ के प्रविधानों का उल्लेख करते हुए उसका निपटारा कर दिया था।