डेस्क:सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान देश की अलग अलग विकास परियोजनाओं को लेकर विरोध प्रदर्शनों के बढ़ते मामलों पर संज्ञान लिया है। कोर्ट ने इस दौरान महाराष्ट्र के जयकवाड़ी बांध में एक ऊर्जा परियोजना का विरोध करने के लिए एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) को फटकार लगाई है। मंगलवार को उच्चतम न्यायालय ने NGO के विरोध पर सवाल उठाते हुए कहा है कि अगर हर परियोजना का इसी तरह विरोध होता रहा, तो देश तरक्की कैसे करेगा।
गौरतलब है कि जयकवाड़ी बांध क्षेत्र को एक आरक्षित पक्षी अभयारण्य और एक संवेदनशील क्षेत्र के रूप में नामित किया गया है। सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने एनजीओ ‘कहार समाज पंच समिति’ की प्रामाणिकता पर भी सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने पूछा है कि NGO को किसने खड़ा किया है और इसका वित्त पोषित कौन करता है। कोर्ट ने यह भी पूछा है कि पर्यावरण संरक्षण में NGO का क्या अनुभव रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने एनजीओ की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के नौ सितंबर 2024 के आदेश को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने कहा है कि एनजीटी ने एनजीओ की याचिका का सही आकलन किया और कोर्ट को अधिकरण के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं मिला। पीठ ने कहा, “आप एक भी परियोजना को काम करने नहीं दे रहे हैं। अगर हर परियोजना का विरोध किया जाएगा, तो देश कैसे तरक्की करेगा? यहां तक कि सौर ऊर्जा परियोजना के साथ भी आपको समस्या है।”
इससे पहले एनजीओ की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि जयकवाड़ी बांध क्षेत्र पारिस्थितिकी के लिहाज से संवेदनशील इलाका है और इस परियोजना से वहां की जैव विविधता प्रभावित होगी। इस पर पीठ ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि निविदा हासिल करने में नाकाम रहने वाली कंपनी ने एनजीओ को वित्त पोषित किया है और अब वह “तुच्छ मुकदमेबाजी” में लिप्त होकर परियोजना को बाधित करने की कोशिश कर रही है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि एनजीटी ने केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से जवाब मांगकर सही किया, जिसने स्थिति स्पष्ट की और केंद्र की 12 जुलाई 2017 की अधिसूचना पेश की, जिसमें कहा गया है कि नवीकरणीय ऊर्जा एवं ईंधन का उत्पादन उन गतिविधियों में शामिल है, जिन्हें बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे लहकर एनजीटी की पश्चिमी जोन ने पिछले साल नौ दिसंबर को एनजीओ की याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि याचिकाकर्ता किसी भी ऐसे कानून का उदाहरण पेश करने में नाकाम रहा, जो पारिस्थितिकी के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों में इस तरह की गतिविधियों पर रोक लगाता है। NGO ने दलील दी थी कि तैरता हुआ सौर ऊर्जा संयंत्र बांध के पानी में मौजूद जलीय जीवों के लिए हानिकारक होगा और क्षेत्र में जैव विविधता को स्थायी नुकसान पहुंचा सकता है।