आनंद:भारत के समृद्ध प्रदेश गुजरात के आनंद जिले में आध्यात्मिक आनंद प्रदान करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ निरंतर गतिमान हैं। रविवार को प्रातःकाल शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी इन्द्रणज से गतिमान हुए तो इन्द्रणज के ग्रामीणों ने मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। आचार्यश्री के गतिमान मंगल चरणों के साथ ही आसमान में सूर्य भी गतिमान थे। मार्ग में दर्शन करने वाले लोगों को अपने आशीष से आच्छादित करते हुए आचार्यश्री निर्धारित गंतव्य की ओर बढ़ रहे थे। आज खेतों में हल्का कोहरा भी दिखाई दे रहा था। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में हांसी, अहमदाबाद और मध्यप्रदेश आदि क्षेत्रों से काफी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे। लगभग चौदह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री गलियाणा में स्थित गलियाणा प्राथमिकशाला में पधारे। गलियाणा के ग्रामीणों ने आचार्यश्री का सादर स्वागत किया।यहां से सायंकाल आचार्यश्री का विहार भी निर्धारित है। आज सायंकाल विहार के दौरान आचार्यश्री अहमदाबाद जिले की सीमा में प्रवेश करेंगे। अहमदाबाद चतुर्मास में कई महीने पहले ही आचार्यश्री अपनी यात्रा के दौरान कुछ दिन के अहमदाबाद जिले में प्रवेश करेंगे, यह श्रद्धालुओं के लिए हर्ष का विषय बना हुआ है।
प्राथमिकशाला परिसर में आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालु जनता को युगप्रधान आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि जीवन में शक्ति का महत्त्व होता है। जिसके पास बल होता है, उसका प्रभाव भी रह सकता है। दुनिया में अनेक प्रकार के बल होते हैं। तन का बल, वचन का बल, मन का बल अर्थात् मनोबल, जनबल अर्थात् जनता का समर्थन, गृहस्थों के पास धनबल भी होता है और आत्मबल भी होता है। आत्मबल को सबसे बड़ा बल कहा जा सकता है। ज्ञान या बुद्धि का बल भी होता है। बुद्धि के बल पर आदमी बहुत बढिया कार्य भी कर सकता है तो उससे घटिया कार्य को भी कर सकता है। कहा गया है जिसके पास बुद्धि होती है, वह बलवान होता है और निर्बुद्धि के पास बल का सर्वथा अभाव होता है अथवा नहीं होता है। ये बल जिसको मिल जाए, वह अपने बल का दुरुपयोग नहीं, बल्कि उसका सदुपयोग करने का प्रयास करे।
जो आदमी शक्ति का दुरुपयोग करता है, उसकी शक्ति कभी रूठ भी सकती है तथा आगे जन्मों में वह शक्तिहीन भी हो सकता है। शक्ति का दुरुपयोग करने से उसके परिणाम भी खराब आ सकते हैं। शास्त्र में सज्जन और दुर्जन व्यक्ति को परिभाषित करते हुए बताया गया है कि दुर्जन के पास यदि विद्या का बल आ जाता है तो वह उसके माध्यम से विवाद उत्पन्न करता है और वहीं सज्जन के पास विद्या की सकती होती है तो वह उसके माध्यम से समाधान प्रदान करता है।
इसलिए आदमी को यह निरंतर प्रयास करना चाहिए कि उसके पास जिस किसी भी रूप में शक्ति हो तो उसका गलत कार्यों में प्रयोग नहीं करना चाहिए। शक्ति का समुचित और अच्छे कार्यों में प्रयोग करने का प्रयास करना चाहिए। शरीर में बल हो तो सेवा का कार्य कर सकते हैं। किसी बीमार, असहाय की सहायता की जा सकती है। धन की शक्ति है तो उससे किसी का कल्याण हो सके, ऐसा प्रयास करना चाहिए। ज्ञान का अच्छा बल हो तो किसी दूसरे को ज्ञान प्रदान करने में सदुपयोग करना चाहिए। वचन का बल हो तो लोगों को अच्छा उद्बोधन भी प्रदान किया जा सकता है। अपनी वाणी का प्रयोग धर्म के प्रचार में भी किया जा सकता है। किसी को अच्छी सलाह भी दी जा सकती है। हालांकि सलाह भी सुपात्र को देने का प्रयास करना चाहिए। शक्ति का प्रयोग स्वयं और दूसरों के कल्याण में करने का प्रयास करना चाहिए और शक्ति के दुरुपयोग से बचने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त मोटेरा-कोटेश्वर ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने आचार्यश्री के समक्ष पुरानी ढाल के कुछ पद्यों की प्रस्तुति दी तो आचार्यश्री ने बच्चों को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।